रविवार, 17 नवंबर 2024

यमलार्जुन उद्धार भाग - 1 (94)

एक बार मां यशोदा को विचार आया मेरे घर में इतना सारा माखन है फिर भी कन्हैया मेरे घर का माखन नहीं खाता है। पूरे गोकुल में चोरी करता फिरता है, भला घर में क्यों नहीं खाता होगा?..

 

मां ने विचार किया तब मां को लगा, गोपियां स्वयं माखन उतारती हैं, स्वयं दधि मंथन करती हैं और मेरे घर तो दास दासियां दधि मंथन करती हैं। भगवान की सेवा दूसरों से करानी नहीं चाहिए, स्वयं ही करनी चाहिए। मैं खिलाती हूं तो खाता नहीं और गोपियों से छीनकर-लूटकर खाता है। आज से लाला के लिए मैं स्वयं दधि मंथन करूंगी और अपने लाला को अपने हाथों से खिलाऊंगी। आज मइया ने स्वयं दधि मंथन प्रारंभ किया। दधि मंथन करती हुई माँ का शब्द चित्र श्री शुकाचार्य जी ने यहां बताया।

क्षौमं बासः प्रथुकटीतटे, विभृती सूत्रनध्दं पुत्रस्नेहस्नुतकुचयुगं, जात कम्पं च सुभ्रूः। रज्ज्वाकर्षश्रमभुजचलत्, कड़्कणौ कुण्डले च, स्विन्नं बक्त्रं कवरबिगलन् मालती निर्ममन्थ।। ३//१०

बैठी है माँ छोटी सी खटिया पर दधि मंथन कर रही है और हाथों में जो कंगन पहने हुए हैं, उसका मधुर स्वर आ रहा है। माँ का पूरा शरीर हिल रहा है। जरा ध्यान दें! मां ने कानों में कुंडल पहने हुए हैं जो हिल रहे हैं, मां ने अपने बालों में जो फूल लगाएं हैं। वह नीचे गिर रहे हैं, मां को कृष्ण के प्रति वात्सल्य के कारण दूध अपने आप बह रहा है। यह ज्ञाननिष्ठ, कर्मनिष्ठ और भक्तिनिष्ठ की क्रियाओं का दर्शन है। इसका संतों ने अर्थ निकाला है।

 

हाथ के कंगन कर्मनिष्ठ की क्रिया है, कानों के कुंडल ज्ञाननिष्ठ की क्रिया बताती है और स्नेह के कारण दूध का अपने आप बहना भक्ति को बताती है। देखो मइया दधि मंथन कर रही है यह कर्म हुआ और किसके लिए है?. कृष्ण के लिए! तो कृष्ण मन में समाया है। कि मैं माखन निकालूंगी अपने कन्हैया को खिलाऊंगी यह भक्ति को बताता है और यदि ज्ञान नहीं तो कर्म में कुशलता नहीं हो सकती और जब तक कुसलता नहीं आएगी, तब तक हम योगी कैसे बन सकते हैं। भगवान योग की परिभाषा देते हुए कहते हैं। योग: कर्म सुकौसलम् अपने कर्म में माहिर बने कुसल बने यह भी योग है।

बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

कान्हा की मिट्टी लीला 96

लेकिन एक दिन कन्हैया पकड़े गए इस दिन कन्हैया अकेले हैं अचानक बैठे बैठे मिट्टी उठाई और खाली ओर बल्लू दादा ने देख लिया बोले क्यों कन्हैया मिट्टी खा रहे हो छोड़ो बरना जाकर मैया से कहता हूँ पर कन्हैया ने मिट्टी नहीं छोड़ी और यहाँ बल्लू दादा आये और माँ से सिकायत करदी ओमिया कन्हैया मिट्टी का रहा है।

आई मैया कन्हैया के पास क्यों रे तुझे माखन कम पड़ गया जो अब मिट्टी खा रहा है। तब कन्हैया बोले-

नाहं भक्षितवानम्ब सर्वे मिथ्याभिशंसिन:।

यदि सत्यगिरस्तर्हि समक्षं पश्य ये मुखम्।। ३५//१०

मां! हे अम्ब!.. मैं ने नहीं खाई, सब झूठे हैं। यदि तुम इनकी बात सच मानती हो तो मेरा मुख तुम्हारे सामने ही है, तुम अपनी आंखों से ही देख लो अब यशोदा जी ने कहा- बताओ अपना मुख और जब कन्हैया ने अपना मुख खोला तो माँ यशोदा ने देखा।

सा तत्र ददृशे विश्वं जगत स्थास्नु च खं दिश: ।

साद्रि द्वीपाब्धि भूगोलं सवाश्वग्नीन्दुतारकम्।।३७//१०

मां ने पूरा विश्व देखा भगवान के मुख में, पुनः कन्हैया ने जब यह बताया कि माँ मैंने नहीं खाई। तो क्या भगवान झूठे हैं?

भगवान तो सत्यव्रत हैं, परमसत्य ही कृष्ण हैं। तो क्या भगवान ही असत्य बोले, कि  मैंने नहीं खाई। अगर भगवान ही असत्य बोलने लगे तो जीव क्या करेगा। जरा संस्कृत में शब्द को समझें कि कन्हैया ने क्या कहा- अहं “भक्षितवानम्ब” अहं कर्ता, अम्ब सम्बोधन, भक्षितवान क्रिया पद और वाक्य नकारात्मक। अब क्या नहीं खाया ये उन्होंने नहीं बताया। मतलब कन्हैया कहना चाहते हैं, मां! हम भोक्ता नहीं, हमने कुछ खाया नहीं। इस पद में क्रिया है, कर्ता है, पर कर्म नहीं है। क्या नहीं खाई यह नहीं बताया।

कोई बोले- क्या नहीं खाई? तो बताते मिट्टी नहीं खाई! तब यह कर्म होता, मिट्टी माने कर्म। क्रिया प्रकृति है, स्वभावगत है। क्रिया करनी नहीं पड़ती, क्रिया हो जाती है। यह क्रिया वाचक नहीं, कर्म वाचक है। जैसे- आंखों की पलकों का गिरना क्रिया है और किसी चीज को देखना कर्म वाचक है।

पलकों का गिरना, धड़कन का धड़कना, भूख लगना ये सब क्रिया है यह अपने आप होता है, इसमें हमारा कोई बस नहीं। क्रिया में न पुण्य होता और न पाप होता। कर्म के साथ पाप पुण्य जुड़ते हैं, क्रिया के साथ नहीं। तो भगवान की यह सहज क्रिया है, एक लीला है, इसमें कर्म है ही नहीं।

शेर प्राणी को मार कर खा जाता है, यह उसका सहज स्वभाव या प्राकृतिक क्रिया है। ऐसा करने पर शेर को कोई पाप य पुण्य नहीं होता क्योंकि शेर को पाप पुण्य का कोई ज्ञान नहीं। पर मानव को ज्ञान है पाप पुण्य का। बेचारे शेर को खेती करना रोटी पकाना तो आता नहीं। मानव को आता है फिर भी मानव जीव खाता है। इसलिए मानव को पाप लगेगा।

भगवान कर्म के बंधन में नहीं आते क्योंकि वे लीला करते हैं। एक तो उन्हें अभिमान नहीं, दूसरा कर्म के फल की कोई इच्छा भी नहीं है। इसलिए भगवान बंधन मुक्त हैं। भगवान की जो भी क्रिया हो रही है वह मात्र एक लीला । यहां पर भगवान ने कह दिया मां मैं भोक्ता नहीं, मिट्टी उठाई मुख में रखी पर मैंने भक्षण नहीं किया।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं

न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञ:।

अहं भोजनं नैव भक्ष्यं न भोक्ता

चिदा नंद रूप: शिवोहम् शिवोहम्।।

इस प्रकार भगवान ने अपने मुख में समूचे विश्व का दर्शन कराया। ऐसा विराट रूप देखा मां ने, जो कुछ है सब भगवान में ही है। सब लोग भगवान में हैं भगवान से अलग कुछ भी नहीं है। इस बात का ज्ञान जब मां को हुआ कि सारी धरती ही भगवान के अंदर है तो फिर खा क्या सकते हैं। मुझसे अलग कुछ है ही नहीं तो मैं खा क्या सकता हूँ। खाई तो वह जाती है जो स्वयं से अलग होमां को बताया! मां सर्वत्र और सर्वदा मैं ही हूं। 


माँ ने जब भगवान के इस विराट रूप को देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ, कि मैं अपने बच्चे के मुख में ये क्या देख रही हूं। यह स्वप्न है या माया, क्या यह मेरे बच्चे का स्वाभाविक ऐश्वर्य है?.. फिर माँ ने निर्णय लिया, नहीं-नहीं यह स्वप्न नहीं! मैं तो जागृत हूं और यह  देवमाया भी नहीं है।

 

अब यह देवमाया नहीं, स्वप्न नहीं तो फिर क्या है? मेरे बच्चे का स्वाभाविक ऐश्वर्य है। तो आज माँ को ज्ञान हो गया कि जिनको मैं पुत्र मान रही हूँ, वह सच में परमात्मा ही है। भगवान ही आए हैं मेरे घर पुत्र बनकर, कहते हैं! जिसके पास धन होता है उसे धनवान कहते हैं। उसी तरह जिसके पास भग होता है, उसे भगवान कहते हैं। छः प्रकार के भग हैं- ऐश्वर्य, वीर, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य इसे कहते हैं “षडभग”। ये छः भग से जो युक्त है वह भगवान हैं, ब्रह्म है, निराकार हैं, साकार है। और ईश्वर जब अवतरित होता है तब भगवान कहलाता है। ब्रह्म, ईश्वर और भगवान इन तीनों शब्दों में इतना अंतर है। षडेश्वर्य  संपन्न होकर जब आते हैं तो भगवान कहलाते हैं। मां ने समझ लिया यह मेरे बच्चे का स्वाभाविक ऐश्वर्य है। भगवान ही मेरे यहाँ पुत्र बनकर आये हैं।

 

माँ ने यहां पर भगवान के चरणों में वंदना किया, यह देख कन्हैया को अच्छा नहीं लगा। ऐसे में तो सारी लीला ही समाप्त हो जाएगी। मैं इनका पुत्र बनाकर आया हूँ, अब यह मुझे अपने गोद में नहीं बैठायेगी। हमारी पूजा होने लगेगी, हमारी आरती, स्तुति होने लगेगी। मैं तो यहां लीला करने आया हूँ यह क्या हो गया। तब भगवान ने अपनी माया का प्रयोग किया माँ पर।

 

महाराज इन्होंने अपनी मां को भी नहीं छोड़ा, मां पर भी माया का प्रयोग किया और यह कोई साधारण माया नहीं है, यह वैष्णवी माया है। भगवान अपने भगतों पर वैष्णवी माया का प्रयोग किया करते हैं। भगवान के प्रति जो अशक्ति है, वही वैष्णवी माया है और संसार के प्रति जो मोह है वह योगमाया है। हमारी आसक्ति संसार को छोड़कर यदि भगवान में लग जाये तो जीवन धन्य हो जाये। यह जो मोह है, इसे भक्ति कहते हैं। गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति जो मोह है वह भक्ति है।

 

इस प्रकार जब वैष्णवी माया का प्रयोग किया तो माता का श्रीकृष्ण के प्रति ईश्वरीय भाव पुत्र में परिवर्तित हो गया और जो देखा वह सब भूल गई। झट से अपने लल्ला को गोद में उठा लिया और पहले की भांति लाड़ लड़ाने लगीं।

 

यहां पर परीक्षित ने श्री शुकाचार्य जी से पूछा- महाराज! श्रीकृष्ण के जन्मदाता माता पिता तो वसुदेव देवकी हैं, इनको जो सौभाग्य नहीं मिला वह सौभाग्य नंद यशोदा को मिला। नंद यशोदा ने ऐसा कौन सा पुण्य किया था?.

 

तब शुकदेव जी बोले- परीक्षित पूर्व जन्म में ये दोनों द्रोण नाम के वसु और उनकी धरा नाम की पत्नी थी। ब्रह्मा जी के कहने से इन्होंने गायों की बहुत सेवा की, तब भगवान ने वरदान दिया कि मैं तुम्हारे घर गोपाल बनकर आऊंगा। भले ही मेरे माता पिता कोई अन्य हों, पर मां हम तुम्हारा ही दुग्ध पान कर बड़े होंगे। तुम्हारी अंगूरी पकड़कर चलना सीखेंगे। इसलिए द्रोण नाम के वसु और उनकी पत्नी धरा, आज नंद यशोदा बनकर आये हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज रज अपने मुख में रख दी, और ब्रजरज की महिमा बढ़ गई। ब्रज में तो रज की ही महिमा है। ब्रह्म बेटा बनकर आया है माँ यशोदा का, खुले चरण भगवान ने विचरण किया है वृंदावन में इसलिए भी ब्रजरज की महिमा बड़ी है।

रविवार, 20 अक्तूबर 2024

प्रभावती और नटखट कान्हा की टोली भाग 3 (95)

और तभी प्रभावती घूँघट निकाले द्वार पर आई, पीछे ग्वालों की टोली है। माँ… ओ मइया जशोदा! निकलो बाहर, तुम मानती नहीं न! कहती हो रंगे हाथ पकड़ के लाओ। आज मेरे घर में चोरी करता पकड़ा गया है। इसके मुख में माखन लगा है, इसके कपड़ों में माखन लगा है। आज यदि इसकी मेरे सामने पिटाई न हुई तो मैं यहीं बैठी रहूंगी, जाऊंगी नहीं। जब तक इसकी पिटाई होगी। 

कन्हैया ने कहा- देखा मइया…! अपने देवर को पकड़ कर लाई है और कहती है पिटाई की बात। अब मइया यशोदा यह देख कर प्रसन्न हो हंस पड़ी। ये पागल तो नहीं हो गई..। अपने देवर को लेकर पिटाई कराने आई है। 

अब यह सुनकर प्रभावती को बड़ा आश्चर्य हुआ???.. मइया हंस रही हो… अब तो इसे पीटो, यह रंगे हाथ पकड़ा गया है आज। तब यशोदा मइया बोलीं- प्रभावती देख यहां बाबा नन्द नहीं बैठे अब तू अपना घूँघट उठा और देख। प्रभावती ने घूँघट उठाया और सामने देखा तो मइया के पास कन्हैया खड़े। प्रभावती ने सोचा ये यहां कैसे?..

और मैंने हाथ किसका पकड़ रखा है?.. जैसे देखा!.. तो उसका देवर… मुए तू यहाँ कैसे आया। भाभी मैं क्या जानूं तुमने ही तो पकड़ कर लाया। अब प्रभावती समझी, कि वो जो हाथ बदलने वाली बात थी न, उसी में कुछ चाल चली है। मां यशोदा ने कहा- प्रभावती क्यों मेरे बच्चे के पीछे पड़ गई है। क्या मिलता है तुम्हें?.. आओ तुम्हारा मेरे घर बैठो, चाय नाश्ता करो। मेरे बच्चे के पीछे क्यों पड़ी हो,.. जाओ घर जाओ। अब प्रभावती को काटो तो खून नहीं, ऐसी बुरी दशा हुई। इस प्रकार से कन्हैया की माखन लीला चल रही है।

शनिवार, 19 अक्तूबर 2024

प्रभावती और नटखट कान्हा की टोली भाग- 2 (94)

अब दूसरे दिन ग्वालों ने पूछा लाला आज कहाँ जानो है?.. तो एक बोला- कन्हैया वही चलते हैं प्रभावती के घर, वहाँ बड़ा मजा आता है, कल बड़ा आनंद आया, वहीं जाते हैं। जो चिढ़ता है ना, बच्चे उसे ही ज्यादा चिढ़ाते हैं। कन्हैया ने कहा- तो फिर चलो; वही चलते हैं। 


यहाँ प्रभावती को भी भरोसा था कि आज फिर वह आएगा। तो बढ़िया ताजा-ताजा माखन निकाली और मटके में भरी फिर ऊपर छींके ऊपर टांग दिया और द्वार बंद करके स्वयं अंदर छिप गईं। आई टोली देखा कि दरवाजा बंद है, तो सोचा जमुना जल भरने गयी होगी, कल की तरह। कन्हैया ने कहा- दो खड़े रहो बरामदे में जब आए तो आवाज देना। दरवाज़ा खोला धक्का मार मारकर अब इस टोली में प्रभावती का देवर भी था। बुलाया कन्हैया ने; छोटा सा था देवर, पूछा- कहाँ रखा है माखन?. बताया इस कमरे में छींके में, सुनते ही बड़ी क्रोधित हुई प्रभावती अपने देवर पर। तुझे भी देख लूंगी; तू ही सब समाचार पहुंचाता है। प्रभावती ने सोचा इतना ऊपर है ये कैसे निकालेंगे?.. लेकिन उनके पास भी तरीका था पहले पांच फिर तीन फिर दो और उसके सबसे ऊपर कन्हैया। जैसे कन्हैया ने मटका पकड़ा मित्रों ने पूछा लाला पकड़ लियो। बोले- हाँ भैया! पकड़ लियो। ठीक उसी समय प्रभावती प्रगट हो गई। अभी ठहरो, देखती हूँ सबको; अरे भागो-भागो यहाँ तो प्रभावती है। गिरे सब नीचे गिरते पड़ते भागने लगे सब और कन्हैया लटके रह गए। 

प्रभावती ने कहा- वाह! बहुत सुन्दर लाला; तेरी मइया मानती नहीं ना, ऐसे लटके रहियो। अभी बुलाकर लाती हूँ तेरी माँ को और बताती हूँ की ये है तुम्हारे लाला का पराक्रम; तब तो पिटाई होगी तुम्हारी। 

कन्हैया ने कहा- ओए प्रभावती देख, मेरी बात सुन; तू घर पर जावेगी, माँ को बुलावेगी तब तक तो बहुत देर हो जाएगी और मैं लटका रह नहीं सकता। ऐसा कर ना मुझे ही ले कर चल मेरी माँ के पास, तुझे पिटाई ही करवानी है तो ऐसे करवा। तब तक तो मेरा हाथ दुखने लगेगा। 

प्रभावती ने कहा- आए ना ठिकाने पर; कहा- लाला को, अच्छा आ जाओ! अब कन्हैया नीचे आए, मुख साफ करने लगे तो प्रभावती ने कहा- खबरदार! साफ मत करना। रंगे हाथों पकड़ के ले जाना है यशोदा मइया के पास, अब अपनी दाएं हाथ से कृष्ण का बायां हाथ पकड़ा और घूंघट निकला, क्योंकि गली में बड़े बुजुर्ग बैठे रहते है। यह मर्यादा है, ले जाने लगी हाथ पकड़ के और कन्हैया की टोली भी पीछे-पीछे चली, बाहर खड़े इंतजार कर रहे थे ना! कब निकालेगा कन्हैया?.. देखा तो उनके पीछे-पीछे चल पड़े। आगे कन्हैया को पकड़ के प्रभावती पीछे-पीछे ग्वालों की टोली, मित्र बड़े चिंतित हो गए, आज हमारा सरदार पकड़ा गया। आज इसकी पिटाई होगी, क्या करें?.. घर नजदीक ही है, लाला ने भी सोचा यदि इस स्थिति में माँ के हाथ में देती है मुझे, तो मइया नहीं छोड़ने वाली, पिटाई अवश्य होगी। कुछ तो करना पड़ेगा! 


कन्हैया ने पीछे देखा तो प्रभावती का देवर भी आ रहा था, उसे इशारा किया नजदीक आओ और प्रभावती घूंघट निकाले हुए जा रही थी, माँ के पास और कहती जाती है। चल आज तेरी पिटाई करवाती हूँ। कन्हैया ने कहा- ठीक है पर तुमने मेरी कलाई कितनी कसके पकड़ी है,  हाथ लाल हो गए। देखो; बायां हाथ छोड़ो, दायां हाथ पकड़ो, ये हाथ मेरा दुखने लगा। 

प्रभावती ने कहा- यहाँ तो तुम्हारा हाथ लाल हुआ है! घर पहुंचो माँ ऐसी थप्पड़ लगाएगी के तुम्हारा गाल लाल हो जाएगा। आज तो पिटाई करवाऊंगी, पिटवाकर ही छोडूंगी मेरा नाम प्रभावती है। लाओ अपना हाथ। कन्हैया ने हाथ छोड़ा और दूसरा हाथ दिया प्रभावती के हाथ में, लेकिन अपना नहीं; उसके देवर का! ले.. जा; तेरा तुझको समर्पित। 

अब प्रभावती ने तो लंबा घूँघट निकाला हुआ है यह देख पीछे सब ग्वाल बाल हंसने लगे। वाह कन्हैया बढ़िया तरकीब निकाली। अब कन्हैया ने अपना मुख हाथ साफ किया और दौड़ते हुए गए जहां माँ यशोदा बैठीं थी आंगन में; उनकी गोद में जाकर बैठ गए और बोले- मैया! ओ प्यारी मैया! मैया ने कहा- काह बात है बेटा कन्हैया ने कहा बस यूं ही कन्हैया का बात है बताओ भैया ये गोपियां मुझे बहुत बदनाम करती है गोकुल में भला मैं क्यों चोरी करूँ हमारे पास तो इतनी सारी गाय है इतना सारा मक्खन है मैया साँची कहूँ ये सब गोपियां तुम्हारी ईर्ष्या करती हैं। माँ यशोदा बोलीं- ईर्ष्या वो क्यों करने लगी। कन्हैया ने कहा- तेरे जैसा लाला किसी को नहीं है ना, इसलिए! मैया बोली- चुप बदमाश अपने मुंह अपनी बड़ाई करता है। नहीं माँ!.. सच में, सब गोपियां ईर्ष्या करती है। इसलिए बार बार यहाँ शिकायत लेकर आती हैं। भला मैं क्यों चोरी करने लगा, झूठ मूठ मुझे बदनाम करती हैं। मैया- ने कहा- लाला! मैं जानती हूँ मेरा लाला बहुत सीधा है, बहुत अच्छा है। 

सच में बहुत बुरी आदत है इन गोपियन की जब देखो शिकायत लेकर मेरे घर चली आती है। इसलिए तो मैं उनकी एक नहीं सुनती। फिर कन्हैया ने रोने का बहाना बनाया और बोले- क्या नहीं सुनती माँ! बस यह मुझे बदनाम किए जा रही है। देखो अब तो मुझे लोग ही चोर कहने लगे, रोज़ मुझे चिढ़ाते हैं रोज़ कोई न कोई आ जाती है। देखना अभी कोई न कोई झूठी शिकायत लेकर आती ही होगी और मैं तो बैठा हूँ तुम्हारी गोद में और मुझे चोर कहेंगे। माँ जसोदा ने कहा- अच्छा तो आने दो उसे देख लूंगी मैं। लाला शांत! हाँ माँ… देखना।

सोमवार, 18 दिसंबर 2023

प्रभावती और नटखट कान्हा की टोली भाग-1 (93)

बड़ी नटखट लीलाएं हैं, नंदनंदन की, एक बार ऐसा हुआ कि कुछ गोपियां गई जमुना जी जल भरने, तो वहाँ चर्चा हो रही थी गोपियों में। ये यशोदा के लाला ने तो बहुत उपद्रव मचायो है सारे गोकुल में, वैसे है बड़ो सुंदर। 
एक गोपी बोली- बस लगता है उसे देखते ही रहें, इतनी मनमोहनी सूरत है। 
दूसरी ने कहा- लेकिन थोड़ा काला है। 
तीसरी बोली लेकिन मतवाला है। 
चौथी बोली- बड़ा नटखट है, एक बार ऐसा हुआ। मैं और ललिता सखी दोनों बात कर रही थीं, तो न जाने कब वो पीछे से आया और चोटी बांध कर चला गया दोनों की। फिर जैसे तैसे हम दोनों उठ खड़ी हुई और अलग हुए तो धड़ाम से गिरी नीचे, बहुत उपद्रव मचाता है। 

एक गोपी ने कहा- क्या बताऊँ! मेरी चोटी तो मेरे पति के दाड़ी से बांध दी थी उसने, सुबह-सुबह मैं उठी की पहली पहल नहा धो के तैयार हो जाएं अब उठकर जैसे चलने लगी तो पति देव भी पीछे-पीछे खींचे चले आए। 

एक गोपी ने कहा- मैं पानी भर के मटके में जा रही थी की रास्ते में मिल गया और पूछने लगा तुमने नहा लिया, मैंने कहा नहीं! बस तभी एक पत्थर उठा कर मेरी मटके में दे मारा, मेरा मटका भी फूटा और मैं भी भीग गई और फिर क्या कहता है मालूम?. कि पहले नहाया करो फिर घर का काम किया करो। सच बहुत नटखट है। 

पर एक गोपी थी जिसका नाम था प्रभावती उसने कहा- वो आता होगा तुम्हारे घर चोरी करने शरारत करता होगा तुम्हारे साथ! आवे मेरे घर, ऐसा सबक सिखाऊंगी कि सब भूल जावेगो, फिर आने का नाम ही ना लेगो। तो एक गोपी का लड़का अपनी माँ के साथ आया था जमुना जी में नहाने जब उसने सुनी यह प्रभावती की बात और वो कन्हैया का CID था, गुप्तचर दौड़ता हुआ गया यह समाचार कृष्ण को देने।

एक वृक्ष के नीचे टोली बैठी थी ठिठोली करती हुई और बीच में बैठा है नायक, पीली पीतांबर है मोर पंख का मुकुट है। आकर कहा- मित्र एक समाचार लाया हूँ! क्या?.. बोला- जमुना तट पर गया था नहाने अपनी माँ के साथ, तो प्रभावती ऐसा कह रही थी। कन्हैया ने कहा- ऐसी बात है! ठीक है तो आज उसी का घर एक बाकी रह गया था। चलो आज वही होगा भंडारा, वो हमें सबक सिखाएगी आज देखते हैं। 
अब प्रभावती तो गई थी जल भरने जमुना जी में, इधर मंडली प्रभावती के घर पहुंची और किवाड़ खोला घुसे सब घर में, मटका ऊपर छींके में था तो पांच नीचे फिर तीन ऊपर चढ़े, फिर दो उनके बाद कन्हैया चढ़े, मटका उतारा नीचे और सब माखन खाने लगे। 

जमके माखन खाया अब ये जहाँ जाते थे, बंदरों की टोली भी साथ-साथ पहुँच जाती थी। तो खुद खाएं बंदरों को भी खिलाएं जब सबका पेट भर गया फिर आधा मटका माखन अभी बचा था। कन्हैया ने कहा- खाओ-खाओ! ग्वालों ने कहा- बस कन्हैया! अब तो पेट भर गया। तो फिर ऐसा करो, ये प्रभावती बहुत आलसी है, देखें लीपा पोती ठीक से करती नहीं है। अब हमने इसका माखन खाया है, बदले में कुछ तो करें। लिया एक डंडा और मारी मटका में तो सारा माखन बिखर गया और माखन लीपने लगे पूरे घर में और भी जितने दही की हांडिया थीं, सब को फोड़ दिया और बाहर निकल के जैसी कुंडी लगी थी लगा दी और पास में ही एक वृक्ष में छिप गए, अब मज़ा आएगा। 

आई प्रभावती!... हाथी जैसी चाल ठुमक-ठुमक करती हुई, नूपुर बज रहे है उसके और जमुना जल से भरा है मटका, ग्वाल सभी देखते जा रहे हैं। अब सर पे तो मटकी है, नीचे देख नहीं सकती। कुंडी खोली धक्का देकर, किवाड़ खोला और ज्यों ही पग उठाया घर में जाने के लिए, ग्वालों के मुख में मुस्कान आई। पग रखा अंदर गई की पैर फिसला गिरी धड़ाम और फिसलते हुए सामने वाली दीवार पर जाकर टकराई, वह गिरी तो मटका भी गिर के फूट गया और माखन में मिल गया। तो दीवार का आधार लेकर जो ही खड़े होने का प्रयास किया, तो फिर से फिसल गई और पहुंची फिसलती दरवाजे तक द्वार से देखा तो छींके पर मटका नहीं। नीचे देखा तो माखन लिपा है माखन का मटका भी फूटा है। उसके पूरे शरीर में माखन लगा है। अब तो सर पकड़ के बैठ गयी, क्या करूँ??..

सब ग्वाल ऐसा हंसे, लाला आज तो बहुत आनंद आया, ये हम को सबक सिखाने वाली थी। अब तो प्रभावित बैठी-बैठी बाहर निकली। खड़ा होने का प्रयास ही नहीं किया। चल पड़ी कमर पे हाथ रख के मैया यशोदा के पास!.. ओह यशोदा मैया.. जानती हो?.. तुम्हारे लाला ने आज क्या किया?.. देखो! मेरा नाम प्रभावती है। छोडूंगी नहीं, ऐसा सबक सिखाऊंगी, याद रखेगा। 

मैया ने कहा- क्या हुआ?.. प्रभावती! आओ तो… शांति से बैठो! बताओ… क्या हुआ?.. बैठने नहीं आई मैं, मेरा नाम प्रभावती है। आज मेरे घर में उपद्रव मचाया है, संभालो अपने छोरा को, नहीं एक दो थप्पड़ लगाऊंगी। मेरा नाम प्रभावती है। 

मैया बोली- मैं जानती हूँ; तेरा नाम प्रभावती है, बार-बार बताने की आवश्यकता नहीं है। क्या किया है; मेरे लाला ने?. कहा- आकर देखो मेरे घर में, चोर कहीं का! अब तो यशोदा मैया को भी गुस्सा आया। बोली- क्या किया है? सुन; देख प्रभावती! मेरे लाला को चोर मत कहियो। चोर होगा तेरा पति। हकीकत में तुम सब गोपियों के बच्चों ने मिलकर मेरे लाला को बिगाड़ दिया। वह तो जानता ही नहीं कि चोरी कहते किसे हैं और आकर मेरे लाला को खरी खोटी सुनाती हो, उसे चोर कहती हो। देखो ऐसे ही चोर मत कहना, रंगे हाथों पकड़ के लाओ तो मैं सुनूंगी तुम्हारी शिकायत, अभी तुम जाओ यहाँ से। 
अब प्रभावती ने भी ठान लिया, मैया! अब इस बार कन्हैया को तुम्हारे हाथ में पकड़ा नहीं दिया; तो मेरा नाम प्रभावती नहीं। इतना कहकर वह अपने घर गई और कन्हैया बड़े प्रसन्न हुए। 

शनिवार, 16 दिसंबर 2023

माखन चोरी लीला 92

“अति प्रिय मधुर तोतरी बोली” 
अब भगवान श्रीकृष्ण बोलना सीख गए, उनकी बोली अति मधुर और तोतरी है। अब बहुत सारे इनके मित्र हुए, इन मित्रों के साथ में खेलते हैं कृष्ण और बलदाऊ। श्रीदामा, सुबल, मधुमंगल, मनसुख बहुत सारे मित्र हैं। तो मनसुख जो था वह दुबला पतला था। कन्हैया ने पूंछा! मित्र  तो तुम्हारा नाम क्या है? उसने बताया मनसुख। कन्हैया बोले- तुम मन सुख भी नहीं हो और तन सुख भी नहीं हो, कैसे दुबले पतले हो। 

देखो मनसुख मुझे अच्छा नहीं लगता कि मेरा कोई मित्र पतला दुबला हो, तुम माखन खाकर तगड़े क्यों नहीं होते। देखो मैं कैसो तगड़ा दिखूँ..

मनसुख बोल्यो! वो तो तुम हो गे ही, रोज खूब मक्खन, खूब घी जो खातो है। मोपे नाय इतनो दूध घी काह करूँ। तो तू पड़ोसन कुं मांग लियो कर। बोलो! मोपे माँगनों न बने, कब तक मागूंगों। 

कन्हैया बोले- तो चोरी कर लियो कर, पै मक्खन खायो कर। अच्छा लाला! तो तू मोय चोरी करानो सिखायेगो मोपे मार पड़ेगी तो बचावेगो तू..? दारी को भागतो नजर आवेगो।

कन्हैया बोले- साची कहूँ लाला तेरी सौ मैं न भागूँगो, चिन्तो नाय करे, आगे मैं ही रहूंगो। अब तो महराज बन गई मण्डली माखन चोरी की, मण्डली को नाम है- चौर विद्या प्रचार मण्डली। चोरी की विद्या का प्रचार कैसे हो, यह मण्डली का उद्देश्य था। अब तो जिसके यहां देखो उसी के यहां चोरी की खबर सुनने को मिल जाती, अब तो ऐसा हंगामा मचाया की सारी गोपियां सिकायत लेके आने लगीं जशोदा मईया के पास, कन्हैया छिपे हैं। और सारी गोपियां मां के सामने शिकायत को खड़ी हैं। 

एक गोपी ने शिकायत करते हुए कहा- मईया! सम्हालो अपना कन्हैया। मईया बोली- पर हुआ क्या? गोपी बोली- हमारे घर माखन आके खाता है। मईया बोली- री गोपी! यदी मेरा लाला, मेरे घर में नहीं पेट भर खाता, यदि तेरे घर आकर खा लिया तो तू कौन सी दरिद्र हो गई। देखो गोपी यदि मेरा कन्हैया तेरे घर आकर दो लोंदा माखन खा भी लेता है तो तू ऐसा करना, मेरे घर से चार लोंदा माखन के ले जाना, लेकिन मेरे लाला को चोर-चोर कहके बदनाम मत करना नहीं तो उसको अपनी लड़की कौन देगा?..

गोपी ने कहा- मैया तेरे चार लोंदा तू रख अपने पास। अरे तुम्हारा कन्हैया सो हमारा कन्हैया। आवे खूब खाबे कोई बात नहीं, हम तो प्रसन्न हैं, पर जब अकेला आवे तब न, सारी मण्डली को लेके आता है, सब को खिलाता है। मईया ने कहा- यही मेरे लाला का सद्गुण है वह अकेले नहीं खाता, पहले सब का पेट भरता है, फिर स्वयं खाता है। यह तो हमें भी सीखनों चाहिए। की सब मिल बांट कर खाएं और मक्खन तो खाने के लिए ही है, बो कोई मुख में लगाने के लिए थोड़ी है। अरे जाता है तो बच्चों के पेट में ही तो जाता है। उसमें तुम रो क्यों रही हो। भला ये भी कोई शिकायत करने की बात है। 

कन्हैया मां के पीछे छिपे हैं, बड़े प्रसन्न हैं, की वाह मईया हमारा बड़ा अच्छा बचाव कर रही है। फिर गोपी ने कहा- ठीक है मईया! स्वयं खाये बच्चों को भी खिलाये, लेकिन बंदरों को भी खिलाता है। “मरकान भोच्छन्” मईया ने कहा- वे भी तो विचारे जीव हैं। उनको भी तो भूख लगती है, और मेरा लाला ऐसा है उसको प्राणी मात्र के लिए दया है। तो हमें जीव मात्र के लिए दया का भाव होना चाहिए। 

यह तो मेरे लाला का सद्गुण हुआ। अच्छा मैया यह भी मान लिया लेकिन “भाण्डम भिनक्ती” फिर मटके तोड़ फोड़ देता है, उसका क्या.? मैया ने कहा- तो हम बड़े हैं, हमें समझना चाहिए, छींके में क्यों नहीं रखती मटके को, वोतो बच्चे है शरारती तो होते ही है और हमारा कन्हैया तो सबकी खबर रखता है। तुम्हारी कब की पुरानी मटकी हो गई थी, अब हम नहीं खरीदेंगे तो कुम्हार की मटकी बिके कैसे? उसे भी तो अपना पेट भरना हैं। गोपियों ने सोचा अब क्या करें…? 

ये मैया तो मानती ही नहीं। एक गोपी आई और उसने कहा- मैया अभी तो गाय दुहने का भी समय नहीं हुआ और कन्हैया आकर उन्हें छोड़ देता है और बछड़े जाकर गाय का सारा दूध पी जाते हैं, अब दुहने जाती तो कुछ बचता ही नहीं। मैया बोली- री गोपी तू अपने लाला को अपना दूध नहीं पिलातीं, ऐसे ही बछड़े को भी तो पहले पूरा अधिकार है माँ का दूध पीने का मेरा कन्हैया उनके अधिकार के लिए लड़ता है इसमें भला शिकायत करने की क्या बात है। माता यशोदा ने गोपियों की एक भी बात नहीं मानी, नहीं सुनी। 

आज की यशोदा भी अपने कन्हैया की शिकायत नहीं सुनती, न हो ही नहीं सकता। मेरा लाला तो बड़ा सुधा है। भगवान कन्हैया की लीलाओं में रहस्य भरा पड़ा है। यह माखन की चोरी नहीं, यह मन की चोरी है। वैष्णव यानी हमारा मन यदि माखन जैसा हो जाए सात्विक तत्व से पूर्ण माखन सफेद होता है और सफेद सत्व का रंग है। रक्त यानी लाल रजोगुण का रंग है और काला तमोगुण का रंग है। 

तो हम सत्व से परिपूर्ण हो जाएं, माखन जैसे कोमल हो जाए। भगवान को माखन अति प्रिय है निस्साधन जीवो का यह साधन है। भक्त भगवान से कहता है- भगवन् मेरा मन बड़ा चंचल है “पुन: पुन: चल इति चञ्न्चल:” मन चलायमान है, यदि वह चलायमान नहीं होता तो आप यहाँ बैठ के घर की चिंता या चिंतन नहीं कर पाते यही मन की चंचलता है। जीव को परेशान करता है यह मन, हमने अपने मन को काबू में करने का बहुत प्रयास किया। अब तो एक ही उपाय है, यह तब ही आप में लग सकता है जब आप ही हमारे मन की चोरी करके ले जाओ। निस्साधन जीव होवे निस्साधन हो गया, साधक की अब मेरे पास कोई उपाय ही नहीं है। मतलब पूर्ण शरणागति। अब तुम जो चाहो करो, अब तो मन तुम पर तब ही लगे जब तुम चोरी करके ले जाओ इसलिए ऐसा अधिकारी जो मन की चोरी श्रीकृष्ण ने की मन की चोरी करते हैं वही मनमोहन है। चित्तचोर है।

 “वत्सान” तो वत्स का मतलब बछड़ा भी है और वैष्णव भी तो वे वैष्णवों को मुक्त करते हैं। जन्म मरण से ये देखते नहीं कि इसने फिर कितना जप तप किया। इसलिए तो किसी भक्त ने कहा पहले हम भजन करें, फिर बाद में तुम हमें मुक्ति दे दो। ये तो सौदेबाजी हुई, यह कोई इनाम नहीं यह तो परिश्रम हुआ और मैं जानता हूँ भगवन तुम्हें आज तक तुमने जितनो को तारा है उनमें कहीं न कहीं स्वार्थ था तुम्हारा भी ऐसे  मुफ्त में नहीं तारा। बताऊं वह क्या है?. मैं तो स्पष्ट कहने बालों में से हूँ और तुम को सुनना पड़ेगा।

गजराज तारो तूने आवने को जावने को, खावने पकावने को मीराबाई तारी है।
रोहिदास तारो तूने चावड़ा मढ़ावने को, गावने वजावने को गड़िका तारी है।।
नरसिमेहता को तारो व्यापार चलावने को, वेदन सुनावने को जयदेव तारो है।
तूने सबको तारा क्योंकि इनमें कुछ न कुछ खास बात थी, पर मैं तो किसी काम का नहीं हूं। न मैं नाचना जानता हूं, न गाना, न मैं विद्वान हूं न मैं व्यापारी, इसलिए….
मुझे तारो वामे आपकी बड़ाई है।
यदि पूर्ण शरणागत हुए तो फिर भगवान यह नहीं देखते की इसने क्या जप-तप किया, क्या साधना की। साधना के फलस्वरूप मुक्त करते हो ऐसी बात नहीं है। अपने जो प्रियजन हैं, वत्स हैं उनको भी मुक्त कर देते हैं।

बुधवार, 6 दिसंबर 2023

गोपी कौन?.91

इस प्रकार से नाम धरके श्री कृष्ण छटा को हृदयंगम करके गर्गाचार्यजी चले गए। अब दोनों लाला धीरे-धीरे घुटनों के बल मैया के आँगन में चलना प्रारंभ कर दिये। मैया लालाओं की उँगली पकड़ के धीरे-धीरे पैया-पैया चलाना प्रारंभ करती है।

आंखों में मोटा-मोटा काजल लगाती हैं, कमर में करधनियां है, मोर की मुकुट है। पांव में पैजनिया है और कन्हैया जब ठुमक-ठुमक के चलते हैं तो देवता भी इनकी झांकी को देखने के लिए तरसते हैं।
कालेन ब्रजताल्पेन गोकुले रामकेशवौ। 
जानुभ्यां सह पाणिभ्यां रिड़्गमाणौ बिजह्रतुः।।
दोनों लाला मैया की उंगली पकड़कर चलना सीख रहे हैं। कभी मैया लाला का दिव्य श्रृंगार करती है और लाला घुटनों के बल चलकर गौशाला में जा पहुंचते हैं। अब वहां जब गोबर दिखाई पड़ता है तो गोविंद गोबर  लेके पूरे शरीर की मालिस करने लगते हैं। मैया मोय यायी गोबर में नहवावे, अरे आज अपने मन ते ही नहायलो। 
मईया जब गाय के गोबर में सने गोविंद को देखती है। तो कान पकड़ के डाँटवे लगती है। क्यों रे कनुआ! जब देखे तो गोबर कीचड़ में नहातो दीखे।

शुकदेवजी कहते हैं परीक्षित! बाल कृष्ण चाहे कीचड़ में लिपटे हों या गोबर में, उनके सौंदर्य में तनिक भी कमी नहीं होती। सुन्दरे किं न सुन्दरं सुन्दर तो हर परिस्थिति में सुन्दर होता है। पड़्काड़्गरागरुचिरौ पड़्क माने कीचड़ तो कीचड़ से सने कृष्ण भी रुचिकर नजर आते हैं। हम लोग तो कितना पाउडर क्रीम लगाते मसाज कराते हैं फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ता। यही प्रभु के सौंदर्य का चमत्कार है। अब कन्हैया तनिक बड़े हो गए हैं। कभी बछड़ों के मुख के दांत गिनने लगते हैं, कभी जलती आग की लकड़ी लैके घुमाने लग जाते हैं। कभी चंदा को माखन को लोंदा समझकर उसको पाने के लिए खीझ जाते हैं। ये सब क्रीड़ा करते अपने आंगन में अब घर के बाहर भी दौड़ने लगे और गोपियाँ उनकी एक छटा को पाने के लिए तरसती है, लालायित रहती हैं।

अब यहां पर जरा ध्यान दीजिए―
गोकुल माने ? गो यानी इंद्रियां और कुल माने समूह तो इंद्रियों का समूह ऐसा गोकुल जहां रहती हैं गोपियाँ। अब गोपी माने?.. गोभि: पिवति भक्ती रसम् स गोपी। 
अपने इंद्रियों के द्वारा जो भक्ति रस का पान करे वह गोपी। गोपियों की सभी इंद्रियां भगवान में लग गई। आंख में कृष्ण हैं, कान में कृष्ण हैं, रोम-रोम में कृष्ण हैं।
“गोभि: पिवति भक्तिरसम्” गोपी आंखों के द्वारा भक्ति रस का पान करती हैं। कान के द्वारा भक्ति रस का पान करती हैं। इसका अर्थ क्या कि गोपी आंखों के द्वारा श्रीकृष्ण का दर्शन करती है, जिसके कान श्रीहरि कथा का श्रवण करते हैं। जिसका मुख, जिह्वा सिर्फ कृष्ण नाम का संकीर्तन करती है। जिसकी सारी इंद्रियां भगवान में लगी हैं। अपनी इंद्रियों से जो भक्ति रसामृत का पान कर रही हैं, उनका नाम है गोपी। 

गोपी कोई स्त्री विशेष का नाम नहीं है, वह पुरुष भी हो सकता है, स्त्री भी हो सकती है, बालक भी हो सकता है, वृद्ध भी हो सकता है। गोपी शब्द का दूसरा अर्थ भी बताया.. गोपायति श्री कृष्णं स्वहृदये स गोपी।
श्री कृष्ण को जो अपने हृदय में छुपाये रखती हैं उसका नाम गोपी, जिसमे गोपनीयता होती है उसके प्रेम में वह किसी को दिखाती या बताती नहीं कि मैं कृष्ण भक्त हूं। समाज जिसको जानता ही नहीं कि यह कृष्ण भक्त है, वह गोपी है। तो ऐसी हैं ब्रज की गोपियाँ।