सोमवार, 22 दिसंबर 2014

प्रथम स्कन्ध​ 1 (शुकदेव जी का जन्म​)12

अब हम नैमिषारण्य चलते हैं जहाँ पर शौनकजी के साथ 88 हजार महात्मा जो सूतजी के सानिध्य में कथा श्रवण कर रहे हैं। सौनक जी ने यहाँ पर सूतजी से छ​: प्रश्न किये हैं। इन्हीं छ​: प्रश्नों पर आधारित हमारी पूरी भागवत कथा है । हमारे जीवन के जितने भी प्रश्न हैं, उन सभी प्रश्नों के उत्तर हमें भागवात जी से प्राप्त होता है । इसलिए छ​: प्रश्न और छ​: दिन, एक दिन तो माहात्म्य का है । पर ये छ: प्रश्नों का जवाब हमें इन छ​: दिनों में मिलेंगे । इसलिए हमसे हमारे छ​: प्रश्न छूटें न, इसका प्रयास हमें करना है ।
ध्यान दें पहला प्रश्न क्या है:- 

1.प्राणी मात्र का कल्याण कैसे होगा, प्राणी का परम धर्म क्या है जिससे उसका कल्याण हो ? 
2. हमारे शास्त्र अनेक हैं और देवता भी तो इन शास्त्रों का निचोड़ क्या है ? 
3. परमात्मा कर्तुमा अकर्तुमा अनेकात्मा ईश्वर है, तो वह जन्म क्यों लेता है, उन्हे जन्म लेने की क्या आवश्यकता ? 
4. यदि परमात्मा जन्म लेते हैं तो अब तक कितने अवतार हुए, कोई 10 कहते हैं तो कोई 24 ? 
5. प्राणी मात्र का कर्तव्य क्या है ? 
6. भगवान जब लीला सम्पन्न करके स्वधाम जाते हैं तो धर्म किसकी शरण में जाता है ?

शौनकजी के ये छ​: प्रश्न सुनकर गद-गद हो गये 
बोले- ऋषियो आपने बड़े सुन्दर प्रश्न किये, पर आपके इन प्रश्नो के उत्तर देने से पहले मैं अपने गुरुदेव को वन्दन करना चाहता हूँ । वैसे तो मेरे गुरु व्यासजी हैं पर यह दिव्य कथा मैनें शुकाचार जी से सुना इसलिए पहले उनको प्रणाम करते हैं ।

यं प्रव्रजन्त मनु पेतमपेत कृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव ।
पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु:तं सर्वभूतह्रदयं मुनिमानतोऽस्मि॥

जो शुकदेवजी महराज ! जन्म लेते हि वन को प्रस्थान कर गये उन शुकाचार्यजी को नमस्कार है । यहाँ पर शुकाचार्यजी का ध्यान सांकेतिक ढंग से किया गया है, पर शुकाचार्यजी के जन्म की कथा बड़े विस्तार से कही है। शुकाचार्यजी प्रधान व्यास है श्रीमद्भागवतजी के, शुकदेवजी कोई साधारण प्राणी नहीं बल्की श्री राधाजी के द्वारा लालित पालित शुक हैं ।  यह कथा गर्ग संहिता में आती है। कि एक बार रास रासेस्वरी श्रीराधा रानी जब श्री हरि के साथ व्रज मण्डल में अवतरित होने लगीं तब वह शुक भी साथ चलने के लिए ललायित हुआ । तब शुकदेव जी से राधा जी बोलीं- शुक हम अभी व्रजभूमि में लीला करने जा रहे हैं, तुम वहाँ क्या करोगे । यह सुन शुकदेवजी घबराए और बोले माँ मै आपसे दूर,,, नहीं नहीं मैं आपके साथ चलूँगा माँ.. आप वहाँ लीलाएँ करना मैं आपकी लीलाओं को गया करूँगा । पर आपके बिना मैं नहीं रह सकता माँ ! तब माँ राधा जी झट से शुक को ह्रदय से लगाकर बोलीं ठीक है चलो ! इस तरह से वही शुक व्यासजी के पुत्र रूप जन्म लेकर भगवान श्री के कथा का गान करने लगे ।

कुछ कथा वाचक यहाँ पर शुकदेव जी के जन्म की कथा के लिए अमर कथा का वर्णन करते हैं । शुकाचार्य जी का जन्म व्यास जी की पत्नी आरुणी से हुआ, शुकदेव जी अपनी माता के गर्भ में 12 वर्ष तक रहे, जब पिता व्यास जी ने उन्हें बाहर आने को बोले तब शुक जी बोले पृथ्वी में भगवान हरि की माया विराजती है वह जीव के विवेक को हर लेती है। जब तक स्वयं श्रीहरि आकर मुझे आस्वस्थ्य न कर दें तब तक मैं पृथ्वी पर नहीं आऊँगा । इसप्रकार वेदव्यासजी ने भगवान श्रीहरि का आवाहन किया और भगवान श्रीहरि प्रकट हो शुक जी से बोले पुत्र तुम बाहर आओ तुम्हें मेरी माया स्पर्स भी न करेगी ।

इस प्रकार जब शुकदेव जी को माधव की वाणी प्राप्त हुई तो शुकजी ने जन्म लिया, और जन्म लेते ही माया से अनाशक्त हो वन की ओर चल पड़े । व्यास जी शुकदेव जी का उपनयन संस्कार तक नहीं कर पाये इस चिन्ता में व्यास जी उअनके पीछे दौड़े। अरे बेटा तनिक मेरी बात तो सुनो.. पर पुत्र तो निकल गया यहाँ पर शुक जी की ओर से वृक्षों ने उत्तर दिया । पिता जी इस मरण शील संसार में कौन किसका पुत्र होता है और कौन किसका पिता । यह जगत चक्र है चलता रहता है । इसलिए हम सत्य की सोध में जाते हैं । ऐसे हैं हमारे शुकाचार्य जी महराज ।

इस प्रकार शुकाचार्य जी वन में ब्रह्म ध्यान में लीन हो गये । बाद में इन्हीं शुकाचार्य जी को व्यासजी ने भागवत ज्ञान दिया ।

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