रविवार, 24 दिसंबर 2017

परीक्षित का पहला प्रश्न 26

राजा ने कहा- यह समय बड़ा मूल्यवान है, इसे मैं व्यर्थ के क्रियाकलापों में चर्चाओं में नष्ट नहीं करूंगा। इसलिए भगवन मुझे आप यह बताइए, जिसको 7 दिन में मर जाना है उसके मुक्ति का उपाय क्या है?

यह सुनकर भगवान शुकदेव जी बड़े प्रसन्न हुए। कहते हैं! परीक्षित के प्रश्न को सुनकर शुकदेव जी इतने प्रसन्न हुए, कि भगवान की स्तुति भी नहीं गाई। नियम है ना, कि कथा शुरु करते हैं तो भगवान की स्तुति करते हैं, भजन करते हैं तब कथा कहते हैं। लेकिन यहां परीक्षित ने प्रश्न किया, कि 7 दिन में मरने वाले की मुक्ति का उपाय क्या है? यह प्रश्न ही उनको इतना अच्छा लगा कि उन्होंने ना तो स्तुति गाई, ना भजन किया बस कथा शुरू कर दी।

शुकदेव जी कहते हैं!
वरीयानेष ते प्रश्न: कृतो लोक हितं नृप।
आत्मवित्सम्मत: पुंसां श्रोतव्यादिषु यः परः।।
शुकदेव जी कहते हैं- राजन! आपने यह प्रश्न अपने लिए नहीं किया, यह प्रश्न तो संसार के लिए किया गया है, लोक कल्याण के लिए किया है। “कृतो लोक हितं नृप” अच्छा प्रश्न है। पर मेरा निवेदन सिर्फ इतना है महाराज! की सभी को 7 दिन में ही मरना है। आठवां दिन तो ही नहीं। हमने ऋषियों से सुना है, कि सतयुग में मनुष्य 100,000 वर्ष तक जीते हैं। सतयुग के बाद जब त्रेता युग आता है, तो एक 0 कम हो जाता है। त्रेतायुग में लोगों की उम्र 10,000 वर्ष रह जाती है। त्रेतायुग के बाद जब द्वापर आता है, तब एक 0 और हट जाता है। तो द्वापर में लोगों की उम्र 1000 वर्ष की रह जाती है। द्वापर के बाद आया कलियुग यहाँ भी एक 0 और हट गया, कलियुग में लोगों की उम्र 100 वर्ष की रह गई। शुकदेव जी कहते हैं! प्रश्न; जीने और मरने का नहीं है राजन, हम जितने दिन भी जीते हैं। करते क्या हैं?

100 वर्ष में 50 वर्ष तो सोने में निकल जाते हैं। अब कितनी उम्र बची। बोले 50 बची। 50 में 25 निकले श्रीमती जी की सेवा में, उनकी आज्ञापालन में।

गोस्वामी तुलसी दासजी कहते हैं- ससुरारी पियारी भई जब ते, रिपु रूप कुटुंब भई तब ते। ससुराल जब से प्यारी लगने लगती है, लोग घर पर ध्यान कम देने लगते हैं। एक बात और कहूं एक बार ससुराल जाने से चारों धाम की यात्रा का फल मिल जाता है।
         ।।बोलो जय श्री कृष्ण।।

25 वर्ष इन कार्यों में व्यतीत हो गया, अब बचे 25 वर्ष; तो कभी बेटी के लिए वर ढूंढना। तो कभी बेटे के लिए लड़की ढूंढना। कभी खेती का टेंशन, तो कभी नौकरी की चिंता, कभी तो इस बात की टेंशन की मुझे कोई टेंशन नहीं है। सारी उम्र इसमें निकल गई। बोले कितनी बची। कुछ भी नहीं।
इसलिए राजन! जल्दी मरने वाले की मुक्ति का उपाय सिर्फ एक है।
तस्माद्भारत सर्वात्मा भगवानीश्वरो हरि:।
श्रोतवय: कीर्तितव्यश्च स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्।।

शीघ्र मरने वाले की मुक्ति का सर्वोत्तम साधन है। परीक्षित सब जगह से मन को हटाओ और गोविंद में लगाओ। इसके सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं है।
     “कर से कर्म करै विधि नाना।
     मन राखो जहां कृपा निधाना”।।

काम करते चलो नाम जपते चलो।
हर समय कृष्ण का ध्यान धरते चलो।।
काम की वासना को हटाते चलो।
कृष्ण गोविंद गोपाल गाते चलो।।

प्रत्येक परिस्थिति में हाथों से कोई भी कर्म करते हैं संसार का, पर कनेक्शन गोविंद से जोड़कर रखो। “बस हो गई मुक्ति” यही तो होता है। पर गुरु जी हमारा यह मन बहुत भटकता है, एक जगह कहीं लगता ही नहीं।

शरीर कथा में बैठा है और हमारा मन कई कामों में भटक रहा है। पण्डित जी ने कहा- भगवान को पुष्प चढ़ा, हमने चढ़ा दिया। कहा चंदन चढ़ा मैंने चढ़ा दिया। आप बोले वस्त्र चढा, हमने बछड़ा दिया। कहा अब मन चढाओ तो मैं यह मन कैसे चढ़ाऊं? वह तो मेरे बस में नहीं है। मन लगे कैसे?

गुरु जी! पहले यह बताओ ना यह मन बस में कैसे हो? तो शुकदेव जी महाराज ने बहुत सुंदर बात कही है। सुनने लायक! बोले- मन को यदि बस में करना है तो चार बातों को ध्यान में रखना होगा।
राजन!
जितासनो जितश्वासो जितसंगो जितेंद्रिय:।
स्थूल भगवतो रूपे मन: सन्धार येद्धिया।।

राजन! यदि मन को जीतना है, तो सबसे पहले आसन को जीतो। एक आसन से बैठने का प्रयास करो। उसे कहते हैं जितासनो आसन को जीतो। दूसरा है- जितश्वासो हर व्यक्ति को रोज प्राणायाम करना चाहिए। शरीर में चमक दिखेगी, पाउडर के रगड़ने से महंगी वाली साबुन के लगाने से शरीर चमक सकता है। लेकिन अंदर वाली जो चमक है, जो मजबूती है, वह मिलेगी नहीं। वह तो प्राणायाम से ही संभव है।

इसलिए हर व्यक्ति को सुबह उठकर के नित्य प्राणायाम करना चाहिए। कुंभक रेचक प्राणायाम से ह्रदय मजबूत होता है और ऐसा करने से व्यक्ति अपने स्वास्थ्य पर विजय प्राप्त करता है। तीसरी बात है- जितसंगो व्यक्ति में दोष भी आएंगे संग से और गुण भी आएंगे संग से। इसलिए अच्छा संग करो और चौथी बात है- जितेंद्रिय: इंद्रियों को जीतो।
देखना इंद्रियों के न घोड़े भगे।
उनमें संयम के हरदम ही कोड़े लगे।।

अपने रथ को सुमारग लगाते चलो।
कृष्ण गोविंद गोपाल गाते चलो।।

याद आएगी उसको कभी ना कभी।
कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी ना कभी।।

ऐसा विश्वास मन में जमाते चलो।
कृष्ण गोविंद गोपाल गाते चलो।।

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