चौथी बात है- इंद्रियों को जीतना। यह चार कर्म यदि हम धीरे-धीरे कर पाएंगे तो मन एकाग्र होगा। इन चारो वाक्यों से पहले तो मैं समझता हूं, परीक्षित! वह है प्रातः जल्दी उठना। सुबह 4:00 बजे से 5:30 बजे तक का जो समय है उसे हम ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं, अमृत वेला कहते हैं। उस अमृत वेला के समय में उठ जाना चाहिए। फिर अपनी हथेलियों को देखना चाहिए।
कराग्रे वस्ते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तू गोविंदं प्रभाते कर दर्शनम।।
बड़ा सुंदर श्लोक है! यानी हम कर्म करेंगे तो लक्ष्मी प्राप्त होगी और जब कर्म के पथ पर आगे चलेंगे तो ज्ञान भी हमें प्राप्त होगा। कर्म के माध्यम से और कर मूले तू गोविंदं कर्म करते-करते जब कर्म में निष्कामता आ जाए, तो गोविंद को भी हम प्राप्त कर सकते हैं।
इसलिए प्रभाते कर दर्शनम् प्रभाते कर दर्शन करो। अपनी हथेलियों का दर्शन करना चाहिए। मैंने कई लोगों को देखा है सुबह जब नींद से जागते हैं तो अपने श्रीमती से पूछते हैं, चाय बन गई क्या? तब वहां से आवाज आती है। अजी लाई…. और जब श्रीमती जी चाय लेकर आती हैं, तो अपने मुखारविंद को चदरिया से निकालते हैं और फिर प्रभाते कप दर्शनम् लेकिन प्रभाते कर दर्शनं।
इसलिए इतनी सुंदर पद्धति ऋषियों ने बनाई है।
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श समझ मे।।
हे भू-माता मुझे क्षमा करना मैं कर्म करने के लिए आप पर पैर रखने में विवश हूं, मुझे क्षमा करें। यह भावना है। फिर अपने कर्म से निवृत्त हो जाएं। फिर इन चार बातों का ध्यान रखें आसन को जीतना प्राणायाम के माध्यम से स्वास्थ्य को जीतना। अच्छा संग जीतना। और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना। फिर एकांत में बैठ कर स्थूल रुप से परमात्मा का चिंतन करें।
इस प्रकार चिंतन करते-करते मन एकाग्र हो जाएगा। बस सीधी सी बात है, कि चिंतन को बढ़ाओ और चिंता को मिटाओ। हमारे में समस्या क्या है, हम चिंता कभी छोड़ते नहीं और चिंतन कभी करते नहीं। चिंता को त्यागो और चिंतन को बढ़ाओ, तो मुरली वाला मिल जाएगा। चिंता संसार की है और चिंतन गोविंद का, यह सुनकर के परीक्षित को अच्छा लगा।
लेकिन प्रभु! किसके प्रति आस्था ज्यादा रखें? यह भी बताएं। शुकदेव जी कहते हैं- राजन! वैसे तो परमात्मा अनेक रूपों में है। पर सबका मूल तो परात्पर नारायण है। क्योंकि सृष्टि के आदि-मध्य-अंत में वही हैं, और सब में समाया है। सारी सृष्टि में पहले बिल्कुल कुछ भी नहीं था परीक्षित।
अस्थावर, जंगम, अंडज, उद्भिज सृष्टि थी ही नहीं। केवल एक ही परब्रह्म श्रीमन्नारायण अपनी आद्या शक्ति के साथ में विद्यमान थे। बिना शक्ति की तो शक्तिमान होता ही नहीं एक ही तत्व में समाहित थे।
वेद में लिखा है- “सअकामयत एकोहं बहुश्याम” उनके मन में इच्छा हुई, कि मैं एक से अनेक हो जाऊं, तो उनकी नाभि से सुंदर कमल उत्पन्न हुआ, और उसी कमल पर विधाता प्रकट हुए। चारों दिशाओं में देखने का समर्थ उनको दी प्रभु ने। चतुर्दिश में चतुर्मुखारबिंद। लेकिन यह ब्रह्मा समझने में असमर्थ रहे कि मैं उत्पन्न कैसे हुआ। तो कहते हैं कमल नाल की तंतु में ब्रह्मा प्रवेश कर गए। उस नाल का चोर ढूंढते-ढूंढते लाखों वर्ष बीत गए जब ब्रह्मा थोड़ा शांत मन से बैठे।
स्पर्शेषु यतषोडशमेकविंशं निष्किञ्चनानां नृप यद् धनं विदुः। कादयो मा बसानास्पर्सा:।।
“क से म” पर्यंत जो वर्ण हैं। उन्हें स्पर्श वर्ण बोलते हैं। तो उसमें “षोडशमेक विंशं” सोलहवां और 21वां वर्ण ब्रह्मा को सुनाई दिया। वह कौन से हैं त और प ब्रह्मा समझ गए यानी तपस्या करो। तप करो।
ब्रह्मा जी तप करने बैठ गए। जब बहुत वर्षों तक तप किया तब नारायण का दर्शन हो गया। इतनी सुंदर मेरे प्रभु की झांकी ब्रह्मा निहाल हो गए। भगवान ने अपना हाथ बढ़ाया और ब्रह्मा का हाथ पकड़ लिया और बड़े प्यार से कहा वि-धा-ता यह नाम दे दिया तुम्हें, अब सृष्टि का सृजन करो। ब्रह्मा बोले थोड़ा पद मिलने पर लोग अहंकारी हो जाते हैं। आपने इतना ऊंचा पद प्रदान कर दिया मुझे, मैं भी अहंकारी हो गया तो? प्रभु मुस्करा करके बोले- व्यक्ति को अभिमान कब होता है जब उसको मेरी सत्ता का ज्ञान नहीं होता। जब तक ईश्वरीय सत्ता का बोध मनुष्य को ना हो, तो वह अहंकारी हो जाता है। भागवत में आया है कि भगवान के रोम-रोम में करोड़ों ब्रह्मांड लुढ़कते हैं। समाज में थोड़ी सा मान-प्रतिष्ठा हो गई, घर पर दो चार गाड़ी हो गई, दो-चार बंगले हो गए, हम भूल जाते है। यही कारण है कि भगवान को हमने समझा नहीं।
ध्यान देना एक मनुष्य के शरीर में 350 करोड़ रोए होते हैं, तो भगवान के श्री विग्रह में भी 350 करोड़ रोए तो होंगे ही और एक रोम में करोड़ों ब्रह्मांड लुढ़कते हैं। आप विचार करना कभी कि, हमें करोड़ों वर्ष तो तब लग जाएंगे कि भगवान के एक रूम में हमारा ब्रह्मांड कौन सा है यह ढूंढने में। और अपना ब्रह्मांड मानलो मिल भी गया, तो हमारे ब्रह्मांड में फिर 14 लोक हैं और 14 लोकों में मुख्य तीन लोक हैं, और तीन लोकों में एक मुख्य लोक हैं मृत्यु लोक, मृत्यु लोक में फिर सात द्वीप हैं। सात द्वीपों में फिर एक जंबूद्वीप है, जंबूद्वीप में फिर 9 वर्ष हैं 9 वर्षों में फिर एक भारत वर्ष है। भारत वर्ष में एक मध्य प्रदेश है। मध्यप्रदेश में एक बघेलखंड है। जिसमें एक उमरिया जिला है, जहाँ हमारी कथा चल रही है।
।।बोलो जय श्री कृष्णा।।
श्री कृष्णचंद्र शास्त्री जी द्वारा श्री श्री कात्यायनी मंदिर परिसर में सुनाई गई कथा में ., का भी अंतर नहीं है वाह! जय हो
जवाब देंहटाएंजय श्रीराम
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