इन्द्रप्रस्थ वासी भगवान की इस झांकी का दर्शन कर आनंद ले रहे हैं की अचानक एक अवला उस भीड़ को चीरती हुई, चीखती, पुकारती हुई वहां आई और तुरत कन्हैया के चरणों में गिरकर कहने लगी।
पाहि पाहि महायोगिन देवदेव जगत्पते।
नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्यु: परस्परम्॥
पाहिमाम्, पाहिमाम्, हे गोविन्द मेरी रक्षा करो। कन्हैया ने जब उस अबला पर दृष्टी डाली, श्वेत वस्त्र में वह अबला उत्तरा थी। श्रीकृष्ण बोले बेटी क्या हुआ?
उत्तरा महरानी ने तुरत उंगली उठाई बोली प्रभू! देखिए यह प्रकाश पुंञ्ज जो मेरी ओर चला आ रहा है। लगता है वह मुझे नस्ट कर देगा। गोविन्द मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं! भय है तो अपने इस शिशुका, क्योकि यह पाण्डव कुल का एक मात्र वीज है। कौरव, पाण्डवों में केवल यही पुत्र बचा है। जो इनका वंश चलायेगा इसके नष्ट होते ही यह वंश भी नष्ट हो जायेगा, आप इसकी रक्षा करें।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने एक ही क्षण में सारी घटना को जान लिया निश्चित ही यह अश्वत्थामा की करतूत है। उसी ने ब्राह्मास्त्र छोड़ा है। भगवान बोले- बेटी तुम तनिक भी चिन्ता मत करो, मैं तेरी रक्षा करूँगा। अब देखिए उसी समय में गोविन्द अभय मुद्रा में खड़े हैं और साथ सूक्ष्म रूप से उत्तरा क गर्भ में प्रवेश करगये।
बोलिए श्री द्वारिका नाथ की॥
शंख, चक्र, गदा, पद्म लिए चतुर्भुज रूप में गोविन्द उत्तरा के गर्भ में पहुँचे
उसी समय ब्रह्मास्त्र आया पर श्री गोविन्द के दिव्य तेज को देख प्रणाम किया और वापस लौट गया। यहां यह सब लीला मां के गर्भ में देख रहे हैं, यह कौन है जो मेरे चक्कर काट रहा है? धन्य है परीक्षित का भाग्य और उत्तरा के भाग्य की तो बात ही अलग है। अपने गर्भ में भक्त और भगवान को एक साथ जो लिये है। देखो लोग कहते हैं भगवान प्रकट होते हैं लीला करते हैं और स्वधाम चले जाते हैं।
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशिल्या हितकारी॥
और कुछ लोगों का कहना है नहीं नहीं वे जब लीला करने आते हैं तो गर्भ में उन्हें आना ही पड़ता है।
सो मम उरवासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहे ॥
मतभेद है। तो भगवान किसी के गर्भ में गये हों या नहीं पर उत्तरा के गर्भ में गये हैं इसमे कोई संदेह नहीं है। क्योंकि परीक्षित जी ने गर्भ में भगवान को साक्षातरूप से दर्शन किया है। मानों यहांपर भगवान श्रीकृष्ण हमें यह बताना चाहते हैं कि मैं किसी के गर्भ में भले ही न जाऊँ पर भक्त के संकट पर भक्त के माता के गर्भ में भी जाकर अपने भक्त की रक्षा करता हूँ। इस प्रकार भगवान अपने भक्त की रक्षा नर्क में भी जाकर किया करते हैं। यह आज भगवान ने सिद्धकरके दिखाया।
दूसरी विशेषता- अभी जितनी माताएं हुई हैं उन्होनें या तो भक्त को गर्भ में धारण किया है या भिर भगवान को पर उत्तरा ही एक ऐसी मां हैं जो अपने गर्भ भक्त और भगवान दोनो धारण किया। यह सौभाग्य माता उत्तरा को कब मिला जब उन्होंने गोविद पर पूर्ण विश्वास किया। हम विश्वास तो करते हैं श्रद्धा तो रखते हैं पर कब जब इस संसार के दरबाजे बंद हो जाते हैं तब। द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था। तब द्रोपदी ने विश्वास किया पर किसपे संसार पे! अपने पतियों से, पितामह भीष्म से, गुरु द्रोणाचार्य से, राजा धृतराष्ट्र से अरे उस दरबार में उपस्थित हर एक उस व्यक्ती से रक्षा करने की गुहार द्रोपदी ने लगाई जो उसकी रक्षा करसकते थे पर किया किसी ने नहीं। जब आप संसार से कुछ चाहते हो तो यह बात अवश्य जान लेना चाहिये की यह संसार स्वयं उस परमात्मा पर आश्रित है वह आपकी रक्षा कैसे कर सकता है। जब सब ओर से द्रोपदी निरास हुई तब गोविन्द की शरण मे पहुंची।
बिमारी ग्रसित व्यक्ति को तुरंत ही डाक्टर के पार चले जाना चाहिए। अगर झाड़ फूँक में लग गये तो वहां से एक मात्र निराशा ही मिलेगी। द्रोपदी ने गोविन्द को पुकारा पर कब जब सब सब ओर से निराशा मिली। पर धन्य है उत्तरा जिसने संसारियों से आस न रखते हुएअ सीधे गोविन्द की शरण में पहुँची।
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