एक बार बछड़ों को लेकर गए भगवान मित्रों के साथ, बछड़े सब चर रहे थे। भगवान अपने मित्रों के साथ खेल रहे थे। तभी बत्सासुर आया बछड़े का रूप लेकर, बत्सासुर ने सोचा- कृष्ण बछड़ों में मोहित हैं और मैं भी यदि बछड़ा बन कर जाऊं तो कृष्ण मुझ पर भी मोहित हो जायेंगे, तब मैं उनको मार दूंगा।
लेकिन उनका तो नाम ही मोहन है, सबको मोहित करने वाले खुद मोहित होने वाले नहीं। पहचान लिया कन्हैया ने कहा- दादा! देखते हो उस बछड़े को ये बछड़ा अपना नहीं है और सुन लो यह बछड़ा भी नहीं है। मैं इस दुष्ट को जानता हूँ यह बत्सासुर है, असुर है, बछड़े का रूप लेकर आया है। वह आया है मारने के लिए लेकिन अभी इसे मज़ा चखाता हूँ। गए हैं भगवान धीरे-धीरे उसके पास और उसके माथे पर हाथ फेरा तो बत्सासुर को लगा कि यह फंसा, तब कन्हैया हंसे बेटा तू फंसा देख अब मैं क्या करता हूँ, हाथ फेरते हुए गए पीछे की ओर। बत्सासुर तो मौका ढूंढ रहा था, कि कब इसको खत्म कर दूं। लेकिन पहले तो मोहन ने ही मौका प्राप्त किया पीछे गए और पीछे वाले दोनों पैर पकड़कर ऐसे घुमाया और पछाड़ा एक वृक्ष में की बत्सासुर के प्राण निकल गए। सब ग्वाल नाचने लगे- बोले वृंदावन बिहारी लाल की जय!
बत्सासुर को मारने के बाद भगवान ने बकासुर को मारा यह बकासुर पूतना का भाई था। भगवान काया को नहीं देखते, भाव को देखते हैं, हृदय को देखते हैं। बत्सासुर का ही रूप लेकर आया था और वत्स में मिल गया, वत्स का अर्थ प्रिय भी होता है और भगवान तो प्रिय यानी वैष्णव की रक्षा करते हैं उन्हें चराते हैं। उनका पोषण करते हैं और उसका रक्षण करते हैं। वैष्णवों की रक्षा करने वाले हैं भगवान! तो वत्स ने क्या किया?.. वैष्णव वृन्द में वत्स का रूप रखकर घुस गया। तिलक लगाया, रामनामी, पीतांबरी पहन ली दो चार माला पहन लिया। परंतु भगवान बाहरी रूप को नहीं देखते वो अंदर बैठे है न सबके, इसलिए अंदर की बात को जानते हैं कि यह वत्स नहीं, यह संत वैष्णव नहीं यह तो राक्षस है। ढोंगी पाखंडी हैं। तो भगवान ने क्या किया?.. उसे खत्म कर दिया। सच में उसे वैष्णव बना दिया और उसे मुक्ति दे दी। पाखंडी को मारते हैं मतलब उसके असुरत्व को खत्म करते हैं और सदा के लिए बैष्णव बनाकर अपने पास स्थान देते हैं। इस प्रकार बत्सासुर मारा गया। अब वहाँ से आए यमुना तट पर वहाँ बैठा था बकासुर बगुले का रूप लिए, कृष्ण कन्हैया को देखते ही उसे बड़ा क्रोध आया। कि इसी ने मेरी बहन पूतना को मारा है, अब इसे मार कर मैं बदला लूँगा। दौड़ता हुआ आया वह भयंकर बगुला चोंच से उठाया श्रीकृष्ण को और खा लिया। मूर्ख हैं वह, यदि कृष्ण बहुत प्यारे लग रहे हैं तो उनका नाम मुख में लेना चाहिए न कि कृष्ण को ही मुख में ले। अब खाना एक बात है और पचाना दूसरी बात। पेट में जलन होने लगी सहन नहीं हुआ तो उसने वमन कर दिया। फिर भगवान ने उसके दोनों चोंच पकड़कर बीच से दो हिस्से कर दिए और बकासुर मारा गया। सब ग्वाल बाल उत्साहित हो कृष्ण की जय-जय कार करते सब लौटकर आए। शाम का समय था, रात्रि में भोजन किया और सो गए।
अब सुबह हुआ भोर काल में ही बाबा नन्द गाय दुहने पहुंचे। यह गाय गंगी गाय है, जो कन्हैया को बहुत पसंद है। कन्हैया इसी का दूध पीते थे। बाबा गाय का दूध निकाल रहे थे कि तभी कन्हैया वहाँ पर पहुंचे, बोले- बाबा! मैं भी गाय को दुहुंगा।
बाबा ने कहा- बेटा! तनिक बड़े हो जाओ फिर गायों को दुहना बाबा तो बैठे हैं। तभी कन्हैया ने अपनी एड़ी उठाई और दोनों हाथ ऊपर किए और इस प्रकार वे बाबा की पगड़ी से अंगुली भर ऊंचे रहे बाबा से कहने लगे बाबा ज़रा देखो तो सही मैं तो सही में आपसे भी बड़ा हो गया। बाबा ने कहा- हां! बेटा बड़े तो हो, पर गइया नहीं दुहोगे। कन्हैया ने सोचा यहां तो बात नहीं बनी, चलो मइया के पास चलते हैं। मईया ने भी मना कर दिया और कहा- कन्हैया! अगर गइया पैर मार दे, कहीं चोट लग जाए तो तुम रोने लग जाओगे। तुम बड़े हो जाओ फिर गइया दुहना। कन्हैया ने सोचा यहाँ भी बात नहीं बनी अब कन्हैया ने सोचा बाबा बड़े हैं तो बड़ी गइया।
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