और तभी प्रभावती घूँघट निकाले द्वार पर आई, पीछे ग्वालों की टोली है। माँ… ओ मइया जशोदा! निकलो बाहर, तुम मानती नहीं न! कहती हो रंगे हाथ पकड़ के लाओ। आज मेरे घर में चोरी करता पकड़ा गया है। इसके मुख में माखन लगा है, इसके कपड़ों में माखन लगा है। आज यदि इसकी मेरे सामने पिटाई न हुई तो मैं यहीं बैठी रहूंगी, जाऊंगी नहीं। जब तक इसकी पिटाई होगी।
कन्हैया ने कहा- देखा मइया…! अपने देवर को पकड़ कर लाई है और कहती है पिटाई की बात। अब मइया यशोदा यह देख कर प्रसन्न हो हंस पड़ी। ये पागल तो नहीं हो गई..। अपने देवर को लेकर पिटाई कराने आई है।
अब यह सुनकर प्रभावती को बड़ा आश्चर्य हुआ???.. मइया हंस रही हो… अब तो इसे पीटो, यह रंगे हाथ पकड़ा गया है आज। तब यशोदा मइया बोलीं- प्रभावती देख यहां बाबा नन्द नहीं बैठे अब तू अपना घूँघट उठा और देख। प्रभावती ने घूँघट उठाया और सामने देखा तो मइया के पास कन्हैया खड़े। प्रभावती ने सोचा ये यहां कैसे?..
और मैंने हाथ किसका पकड़ रखा है?.. जैसे देखा!.. तो उसका देवर… मुए तू यहाँ कैसे आया। भाभी मैं क्या जानूं तुमने ही तो पकड़ कर लाया। अब प्रभावती समझी, कि वो जो हाथ बदलने वाली बात थी न, उसी में कुछ चाल चली है। मां यशोदा ने कहा- प्रभावती क्यों मेरे बच्चे के पीछे पड़ गई है। क्या मिलता है तुम्हें?.. आओ तुम्हारा मेरे घर बैठो, चाय नाश्ता करो। मेरे बच्चे के पीछे क्यों पड़ी हो,.. जाओ घर जाओ। अब प्रभावती को काटो तो खून नहीं, ऐसी बुरी दशा हुई। इस प्रकार से कन्हैया की माखन लीला चल रही है।
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