बड़ी नटखट लीलाएं हैं, नंदनंदन की, एक बार ऐसा हुआ कि कुछ गोपियां गई जमुना जी जल भरने, तो वहाँ चर्चा हो रही थी गोपियों में। ये यशोदा के लाला ने तो बहुत उपद्रव मचायो है सारे गोकुल में, वैसे है बड़ो सुंदर।
एक गोपी बोली- बस लगता है उसे देखते ही रहें, इतनी मनमोहनी सूरत है।
दूसरी ने कहा- लेकिन थोड़ा काला है।
तीसरी बोली लेकिन मतवाला है।
चौथी बोली- बड़ा नटखट है, एक बार ऐसा हुआ। मैं और ललिता सखी दोनों बात कर रही थीं, तो न जाने कब वो पीछे से आया और चोटी बांध कर चला गया दोनों की। फिर जैसे तैसे हम दोनों उठ खड़ी हुई और अलग हुए तो धड़ाम से गिरी नीचे, बहुत उपद्रव मचाता है।
एक गोपी ने कहा- क्या बताऊँ! मेरी चोटी तो मेरे पति के दाड़ी से बांध दी थी उसने, सुबह-सुबह मैं उठी की पहली पहल नहा धो के तैयार हो जाएं अब उठकर जैसे चलने लगी तो पति देव भी पीछे-पीछे खींचे चले आए।
एक गोपी ने कहा- मैं पानी भर के मटके में जा रही थी की रास्ते में मिल गया और पूछने लगा तुमने नहा लिया, मैंने कहा नहीं! बस तभी एक पत्थर उठा कर मेरी मटके में दे मारा, मेरा मटका भी फूटा और मैं भी भीग गई और फिर क्या कहता है मालूम?. कि पहले नहाया करो फिर घर का काम किया करो। सच बहुत नटखट है।
पर एक गोपी थी जिसका नाम था प्रभावती उसने कहा- वो आता होगा तुम्हारे घर चोरी करने शरारत करता होगा तुम्हारे साथ! आवे मेरे घर, ऐसा सबक सिखाऊंगी कि सब भूल जावेगो, फिर आने का नाम ही ना लेगो। तो एक गोपी का लड़का अपनी माँ के साथ आया था जमुना जी में नहाने जब उसने सुनी यह प्रभावती की बात और वो कन्हैया का CID था, गुप्तचर दौड़ता हुआ गया यह समाचार कृष्ण को देने।
एक वृक्ष के नीचे टोली बैठी थी ठिठोली करती हुई और बीच में बैठा है नायक, पीली पीतांबर है मोर पंख का मुकुट है। आकर कहा- मित्र एक समाचार लाया हूँ! क्या?.. बोला- जमुना तट पर गया था नहाने अपनी माँ के साथ, तो प्रभावती ऐसा कह रही थी। कन्हैया ने कहा- ऐसी बात है! ठीक है तो आज उसी का घर एक बाकी रह गया था। चलो आज वही होगा भंडारा, वो हमें सबक सिखाएगी आज देखते हैं।
अब प्रभावती तो गई थी जल भरने जमुना जी में, इधर मंडली प्रभावती के घर पहुंची और किवाड़ खोला घुसे सब घर में, मटका ऊपर छींके में था तो पांच नीचे फिर तीन ऊपर चढ़े, फिर दो उनके बाद कन्हैया चढ़े, मटका उतारा नीचे और सब माखन खाने लगे।
जमके माखन खाया अब ये जहाँ जाते थे, बंदरों की टोली भी साथ-साथ पहुँच जाती थी। तो खुद खाएं बंदरों को भी खिलाएं जब सबका पेट भर गया फिर आधा मटका माखन अभी बचा था। कन्हैया ने कहा- खाओ-खाओ! ग्वालों ने कहा- बस कन्हैया! अब तो पेट भर गया। तो फिर ऐसा करो, ये प्रभावती बहुत आलसी है, देखें लीपा पोती ठीक से करती नहीं है। अब हमने इसका माखन खाया है, बदले में कुछ तो करें। लिया एक डंडा और मारी मटका में तो सारा माखन बिखर गया और माखन लीपने लगे पूरे घर में और भी जितने दही की हांडिया थीं, सब को फोड़ दिया और बाहर निकल के जैसी कुंडी लगी थी लगा दी और पास में ही एक वृक्ष में छिप गए, अब मज़ा आएगा।
आई प्रभावती!... हाथी जैसी चाल ठुमक-ठुमक करती हुई, नूपुर बज रहे है उसके और जमुना जल से भरा है मटका, ग्वाल सभी देखते जा रहे हैं। अब सर पे तो मटकी है, नीचे देख नहीं सकती। कुंडी खोली धक्का देकर, किवाड़ खोला और ज्यों ही पग उठाया घर में जाने के लिए, ग्वालों के मुख में मुस्कान आई। पग रखा अंदर गई की पैर फिसला गिरी धड़ाम और फिसलते हुए सामने वाली दीवार पर जाकर टकराई, वह गिरी तो मटका भी गिर के फूट गया और माखन में मिल गया। तो दीवार का आधार लेकर जो ही खड़े होने का प्रयास किया, तो फिर से फिसल गई और पहुंची फिसलती दरवाजे तक द्वार से देखा तो छींके पर मटका नहीं। नीचे देखा तो माखन लिपा है माखन का मटका भी फूटा है। उसके पूरे शरीर में माखन लगा है। अब तो सर पकड़ के बैठ गयी, क्या करूँ??..
सब ग्वाल ऐसा हंसे, लाला आज तो बहुत आनंद आया, ये हम को सबक सिखाने वाली थी। अब तो प्रभावित बैठी-बैठी बाहर निकली। खड़ा होने का प्रयास ही नहीं किया। चल पड़ी कमर पे हाथ रख के मैया यशोदा के पास!.. ओह यशोदा मैया.. जानती हो?.. तुम्हारे लाला ने आज क्या किया?.. देखो! मेरा नाम प्रभावती है। छोडूंगी नहीं, ऐसा सबक सिखाऊंगी, याद रखेगा।
मैया ने कहा- क्या हुआ?.. प्रभावती! आओ तो… शांति से बैठो! बताओ… क्या हुआ?.. बैठने नहीं आई मैं, मेरा नाम प्रभावती है। आज मेरे घर में उपद्रव मचाया है, संभालो अपने छोरा को, नहीं एक दो थप्पड़ लगाऊंगी। मेरा नाम प्रभावती है।
मैया बोली- मैं जानती हूँ; तेरा नाम प्रभावती है, बार-बार बताने की आवश्यकता नहीं है। क्या किया है; मेरे लाला ने?. कहा- आकर देखो मेरे घर में, चोर कहीं का! अब तो यशोदा मैया को भी गुस्सा आया। बोली- क्या किया है? सुन; देख प्रभावती! मेरे लाला को चोर मत कहियो। चोर होगा तेरा पति। हकीकत में तुम सब गोपियों के बच्चों ने मिलकर मेरे लाला को बिगाड़ दिया। वह तो जानता ही नहीं कि चोरी कहते किसे हैं और आकर मेरे लाला को खरी खोटी सुनाती हो, उसे चोर कहती हो। देखो ऐसे ही चोर मत कहना, रंगे हाथों पकड़ के लाओ तो मैं सुनूंगी तुम्हारी शिकायत, अभी तुम जाओ यहाँ से।
अब प्रभावती ने भी ठान लिया, मैया! अब इस बार कन्हैया को तुम्हारे हाथ में पकड़ा नहीं दिया; तो मेरा नाम प्रभावती नहीं। इतना कहकर वह अपने घर गई और कन्हैया बड़े प्रसन्न हुए।
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की,बहुत आनंद आया जय हो प्रभु जी आप की जो बख्यान आप करते है बहुत की आनंद आता ही। साक्षात प्रभु श्री कृष्ण जी के दर्शन होते है। बड़े भाव से आपको जय श्री कृष्णा जी🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंसरकार काफी दिन हो गए नया पोस्ट नहीं आया
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