इस प्रकार से नाम धरके श्री कृष्ण छटा को हृदयंगम करके गर्गाचार्यजी चले गए। अब दोनों लाला धीरे-धीरे घुटनों के बल मैया के आँगन में चलना प्रारंभ कर दिये। मैया लालाओं की उँगली पकड़ के धीरे-धीरे पैया-पैया चलाना प्रारंभ करती है।
आंखों में मोटा-मोटा काजल लगाती हैं, कमर में करधनियां है, मोर की मुकुट है। पांव में पैजनिया है और कन्हैया जब ठुमक-ठुमक के चलते हैं तो देवता भी इनकी झांकी को देखने के लिए तरसते हैं।
कालेन ब्रजताल्पेन गोकुले रामकेशवौ।
जानुभ्यां सह पाणिभ्यां रिड़्गमाणौ बिजह्रतुः।।
दोनों लाला मैया की उंगली पकड़कर चलना सीख रहे हैं। कभी मैया लाला का दिव्य श्रृंगार करती है और लाला घुटनों के बल चलकर गौशाला में जा पहुंचते हैं। अब वहां जब गोबर दिखाई पड़ता है तो गोविंद गोबर लेके पूरे शरीर की मालिस करने लगते हैं। मैया मोय यायी गोबर में नहवावे, अरे आज अपने मन ते ही नहायलो।
मईया जब गाय के गोबर में सने गोविंद को देखती है। तो कान पकड़ के डाँटवे लगती है। क्यों रे कनुआ! जब देखे तो गोबर कीचड़ में नहातो दीखे।
शुकदेवजी कहते हैं परीक्षित! बाल कृष्ण चाहे कीचड़ में लिपटे हों या गोबर में, उनके सौंदर्य में तनिक भी कमी नहीं होती। सुन्दरे किं न सुन्दरं सुन्दर तो हर परिस्थिति में सुन्दर होता है। पड़्काड़्गरागरुचिरौ पड़्क माने कीचड़ तो कीचड़ से सने कृष्ण भी रुचिकर नजर आते हैं। हम लोग तो कितना पाउडर क्रीम लगाते मसाज कराते हैं फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ता। यही प्रभु के सौंदर्य का चमत्कार है। अब कन्हैया तनिक बड़े हो गए हैं। कभी बछड़ों के मुख के दांत गिनने लगते हैं, कभी जलती आग की लकड़ी लैके घुमाने लग जाते हैं। कभी चंदा को माखन को लोंदा समझकर उसको पाने के लिए खीझ जाते हैं। ये सब क्रीड़ा करते अपने आंगन में अब घर के बाहर भी दौड़ने लगे और गोपियाँ उनकी एक छटा को पाने के लिए तरसती है, लालायित रहती हैं।
अब यहां पर जरा ध्यान दीजिए―
गोकुल माने ? गो यानी इंद्रियां और कुल माने समूह तो इंद्रियों का समूह ऐसा गोकुल जहां रहती हैं गोपियाँ। अब गोपी माने?.. गोभि: पिवति भक्ती रसम् स गोपी।
अपने इंद्रियों के द्वारा जो भक्ति रस का पान करे वह गोपी। गोपियों की सभी इंद्रियां भगवान में लग गई। आंख में कृष्ण हैं, कान में कृष्ण हैं, रोम-रोम में कृष्ण हैं।
“गोभि: पिवति भक्तिरसम्” गोपी आंखों के द्वारा भक्ति रस का पान करती हैं। कान के द्वारा भक्ति रस का पान करती हैं। इसका अर्थ क्या कि गोपी आंखों के द्वारा श्रीकृष्ण का दर्शन करती है, जिसके कान श्रीहरि कथा का श्रवण करते हैं। जिसका मुख, जिह्वा सिर्फ कृष्ण नाम का संकीर्तन करती है। जिसकी सारी इंद्रियां भगवान में लगी हैं। अपनी इंद्रियों से जो भक्ति रसामृत का पान कर रही हैं, उनका नाम है गोपी।
गोपी कोई स्त्री विशेष का नाम नहीं है, वह पुरुष भी हो सकता है, स्त्री भी हो सकती है, बालक भी हो सकता है, वृद्ध भी हो सकता है। गोपी शब्द का दूसरा अर्थ भी बताया.. गोपायति श्री कृष्णं स्वहृदये स गोपी।
श्री कृष्ण को जो अपने हृदय में छुपाये रखती हैं उसका नाम गोपी, जिसमे गोपनीयता होती है उसके प्रेम में वह किसी को दिखाती या बताती नहीं कि मैं कृष्ण भक्त हूं। समाज जिसको जानता ही नहीं कि यह कृष्ण भक्त है, वह गोपी है। तो ऐसी हैं ब्रज की गोपियाँ।
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