यहाँ पर लोकों के दर्शन कराने का तात्पर्य यह था कि दूध पिलाते समय माता ने सोचा आज कन्हैया इतना दूध क्यों पी रहा है तब कन्हैया अपने मुख में तीनों लोकों का दर्शन कराएं की देख मैया मेरे मुख में कितने भूके लोग बसे हैं और मैं तुम्हारा दूध पीकर तीनों लोगों को तृप्त करता हूँ, मैं खुद अकेले थोड़े ही पीता हूँ। भगवान ने माता को अपने मुख पर दो बार लोकों का दर्शन कराया।
अब इधर वसुदेव जी ने सोचा एक बर्ष का हमारा लाला हो गया, पर अभी तक उसके नाम का पता नहीं वसुदेवजी तब अपनी पुरोहित श्री गर्गाचार्यजी से बोले- गुरु जी गोकुल में हमारे दो पुत्र नन्द जी के यहाँ पर है। आप वहाँ जाकर उनका नामकरण संस्कार कर दीजिए। एक वर्ष बीत चुके अभी तक हमें उनके नाम का पता नहीं चल रहा है। तब गर्गाचार्यजी गोकुल में पधारे, बाबा नन्द को पता चल्यो तो स्वागत करवे पहुंचें, आओ महाराज बड़ी कृपा करी हमपे सुन्दर आसन दियो, पूजन करी विधिवत।
फिर बोले- महाराज! आपको आगमन ते हमारो मन बडो प्रसन्न है गयो है। हमारे दो लाला है तनिक उनकी कुंडली बताओ गृह दशा कैसे चल रहे है। बाबा बोले ठीक है तो काह नाम राख्यो है अपने दोनों छोरन कु। नंदबाबा बोले- ओरे नाम धरवें को तो ध्यान ही न रह्यो बोले- का अब तक नाम नहीं धर्यो।
हाँ महाराज! अब तक तो नाय धरो एक साल को छोरा होई गयो, अब तक नामइ नाय बाको। बोले- महाराज! अब आप जैसे संत पधारे तो आपइ नाम धर जाओ। गर्गाचार्यजी बोले- वो तो हम धर देंगे पर हमारी एक शर्त है। का महाराज! बोले- नन्द जी! तुम न जानो हम यदुवंशिन के आचार्य है।
यदुनामहमाचार्यः ख्यातश्च भुवि सर्वतः। सुतं मया संस्कृतं ते मन्यते देवकी सुतम्।। 7/8/10
हम यदुवंशियों के आचार्य है, तेरे छोरा को नाम कैसे रख देंगे? और हम नाम रख देंगे तो कंस को खबर लग जाएगी, कि गर्गाचार्य जी यदुवंशीयों के आचार्य गोकुल में नाम धरवें कैसे चले गए? इसलिए यदि इसे कंस वसुदेव को लाला समझ बैठो तो आफत है जाएगी तेरे ऊपर। काऊ को भनक न पड़े, चुप्पई नाम रख वाले तो रख देंगे।
नंदजी बोले- महाराज! मैं तो पड़ोसियों को भी भनक नहीं पड़ने दूंगा। बस आप चुप्पई गोशाला में पधारों मैं वाइते लाला को लाऊ चुप्पई नाम धरो और चले जाओ।
ठीक है! हम राजी है, गर्गाचार्य जी गौशाला में लगा आसन जम गए। नंदबाबा अंदर खबर करी अरी मेहर झट लाला कुं लैके गोशाला में आ जाओ नाम रखवाए बे को, ठीक है महाराज! अब दोनों माताएं अपने लाल को सजाए करके श्रृंगार करके मोटो मोटो काजर लगाए के बाहर आईं। जैसे ही दूर से गर्गाचार्यजी को देखो तो आपस में ही अदला बदली कर लई। बोली- नेक या बाबा की परीक्षा तो ले, बड़ो नाम सुन राखो है या के, अब पक़्को पंडित होएगो तो बताएं देगो, कौन किसको छोरा है। तो दोनों माताएं छोरन की अदला बदली करके बाबा के सामने आ गई। माताओं ने प्रणाम किया तो बाबा ने देखा कि रोहणी मैया की गोद में नन्द के आनंद और यशोदा मईया की गोद में रोहणी नंदन और जैसे ही यशोदानंदन का दर्शन किया गर्गाचार्य जी ने सोई समाधी लग गयी। मुख खुलो आँखें खुली और श्वास रुक गई, क्यों? महाराज साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर निराकार निर्गुण निर्विशेष परमात्मा मेरे सम उपस्थित हुआ है। निर्निमेष नैनो से निरंतर निहारते ही चले गए। उस दिव्य आनंद की समाधि लग गयी। अब सामने मईया बैठ गई। मइया ने सोचा ये बाबा आंखें खोल के मेरे लाला की एक-एक रेखा देख रहे होएगें। या के भविष्य के ताई कछु अपनी दिव्य दृष्टि से निहार रहे होंगे। पर मैया को बैठे-बैठे जब घंटा भर बीत गए, तब मइया हाथ जोड़कर बोली- महाराज! ऐसी आंखें फाड़ के कब तक देखते रहेंगे अब बाबा हो तो नाम धरे।
मैया बोली- महाराज! कछू तो बोलो, बाबा जी न बोले। फिर इशारे में मैया रोहिणी से बोली बहन नेक देख तो या बाबा को काह है गयो है। ना बोले, न हिले डुले, ना पलकई गिरे, रोहणी जी ने देखा, फिर बोली- मालूम पड़े की सांसउँ न चलें। क्या? अरे या बाबा मेरई घर कलंक लगावें को मिलो जो यही पधारि गए। पधारनो होय तो बाहर जाके पधारो महाराज।
अब मइया तो घबराय गयी, सो हाथ पकड़के हिलाए दिये। ऐ महाराज! बाबा सावधान होकर मुस्कुराकर बोले- हाँ हाँ मइया मैंने तेरे लाला को नाम सोच लियो। अरे महाराज ऐसे नाम सोचे, आप तो ऐसे नाम सोचो कि मैं ही सोच में पड़ गई। अब ये बताओ काह नाम विचार कियो है आपने।
बाबा बोले- मैं आया तो था याको नाम देंवे कुं, पर मैं तो अपनो ही नाम भूल गयो। जैसे-तैसे गर्गाचार्यजी अपने आप को संभाल के पुन: दोनों बालकों को निहारने लगे। विचार किया और मुस्कुराए ये कैसे हो सकता है, यहाँ अदला बदली तो नहीं हो गई। ये माताजी हमारी परीक्षा तो नहीं लेना चाहती। तब बाबा, यशोदा से बोले सुन यशोदा- अयं हि रोहणी पुत्रो रमयन् सुहदो गुणैः । आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद् वलं बिदुः।।
अरी मइया तेरी गोद में ये जो लाला है न, ये निश्चित रूप में रोहिणी को लाला है। यशोदा जी मुस्कुरा कर रोहणी की तरफ देखवे लगी। बहना चोखो पंडित निकरो। देखले एक दृष्टि में याने कितनी जल्दी पहचान लियो की या तेरो छोरा है। फिर हाथ जोड़कर बोली- हाँ बाबा आपने ठीक कही महाराज! हम दोनों छोरन में एकउ अंतर ना समझे एकइ माया समझो महाराज।
बाबा बोले- मैया या छोरा आगे चले बहुत बड़ो बलवान निकसे गो, ता से याको नाम बलराम रखते हैं। बलाधिक्याद् बलं विदुः दूसरों नाम में इसे तो संकर्षण भी कह्यौ करेंगे। मइया बोली- बाबा! अब नेक या छोटे छोरा को नाम और बतादो।
बहूनि सन्ति नामानि रूपाणि च सुतस्य ते। गुणकर्मानुरूपाणि तान्यहं वेद नो जनाः।। मइया या जो छोटो छोरा है न, याके तो हजारन नाम है। मइया बोली- हमें हजारन नाम नहीं महाराज अच्छो चोखो सो एक नाम बताए दो। बाबा बोले- मइया तो या समय याको नाम रख रहे हैं हम, कृष्ण। ये कैसो नाम है या कुं बोलवें में तो मेरी जीभइ पलटा खा जाएगी। का मतलब होय महाराज याको।
बाबा बोले- मइया! याको मतलब होय कर्षयति इति कृष्णः जो सबको मन चित्त सब अपनी ओर आकर्षित कर ले बाको नाम कृष्ण, और सुन मइया या तेरे लाला को हर युग में जन्म होयो करें। सतयुग त्रेता सब युग में याको जन्म होयो करे। तब तक में बाबा के मुख से निकल गयो ये वसुदेव को लाला सोई कन्हैया ने इशारों कर दियो। सो बाबा संभल गए। सुन-सुन मइया या काऊ जनम में वसुदेव को छोरा भयो होयगो।
प्रागयन् वसुदेवस्य क्वचिज्जातस्तवात्मज:। वासुदेव इति श्रीमानभिज्ञा: सम्प्रचक्षते।। सुन मइया- काऊ जन्म में या वसुदेव को छोरा रहे होयगो तासे याको एक नाम वासुदेव कृष्ण भी होएगो।
मइया बोली- काऊ जन्म से मोय का मतलब या जन्म में तो मेरो ही है। हाँ हाँ मैया या जनम में तो तेरो ही है। बस महाराज! अब ज्यादा भविष्यवाणी मोय या की नाय सुनानी। अब मइया अपने लाला कुं लैके घर में पधारी, फिर यशोदा जी बोली- बहन एक बात तो कहनी पड़ेगी, कि बाबा बड़ो चोखो पंडित निकरो। जो 1 मिनट में बताय दियो कौन सो लाला कौन को है। पर नाम पड़े टेढ़े मेढ़े रखें, मैंने तो इसको नाम भी अब खोज लियो। काह नाम रखो?.. बोली बाबा ने इनके नाम रखे कृष्ण बलराम मैंने याके नाम रख दिए कनुआ और बलुआ। आप कुछ भी सोचके अच्छा नाम रख लो, पर मैया को लाड़ को घर को नाम ऐसा ही हुआ करे। कन्हैया कान्हा कनुआ ये सब मैया के लाड प्यार के नाम है। बोलो कृष्ण कन्हैया की जय। बलदाऊ भैया की जय।
बहुत आनन्द आया बहुत ही सुंदर वर्णन किया आपने। बहुत प्रसन्नता होती है हृदय में।आपको कोटि कोटि नमन, जय श्री राधेश्याम जी
जवाब देंहटाएंआप श्री का धन्यवाद
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