गोविंद चरणों में रति होती है, इस कथा को सुनकर। पर एक दिन प्रभु का जन्म नक्षत्र आया, मइया तो नित्य दिन उत्सव मनाती हैं। किसी न किसी बहाने, अरे आज रोहिणी नक्षत्र है! या नक्षत्र में ही कन्हैया ने जनम लियो। अरे आज बुधवार है उत्सव मनाऊंगी। आज तो जन्म नक्षत्र के दिन मैया ने बड़ा सुन्दर लाला का श्रृंगार किया थप्पी मार के सुलाय दिया। प्रभु लेटे-लेटे अचानक करवट बदल लिए। यह देखते ही मैया उछल पड़ीं, ओरे… मेरे लाला ने तो आज अपने आप ही करवट बदल लई।
बोली- सुन रे नाई! पूरे ब्रज में लगा दें दुहाई। कहियो करवट बदलवें को बुलउआ है। सबरी गोपियां दौड़ी-दौड़ी आई मैया बधाई हैं बोली बहनाओ बार बार सबन कुं बधाई हैं। पर ज्यादा हल्ला मत मचाओ, मेरो लाल आभाळ सोयो है, जाग जायेगो अभालई सोयो। गोपियाँ बोली- जब सोरई न करनो तो हमे काय को बुलायो है। अब बधाइयां गावेगी तो सोर तो मचेगो ही। तब मैया ने सोते हुए लाला को पालना उठायों और थोड़ी दूर पर एक छकड़े के नीचे रख दियो। आँगन ते माट मटका उठाए व गाड़ी के ऊपर धर दीन्हों। बोली- अब प्रेम ते नाचो, गाओ, बजाओ कोई चिंता की बात नहीं। अब गोपियां ठुमक-ठुमक के नाचवे गावें लगी।
सोई लाला की नींद खुल गई, नींद खुलते ही लाला ने चारों तरफ देखो, वाह!.. गीत गब रहे हैं। और जिनके लिए गीत गब रहे हैं, वो आंगन में लटक रहे हैं। बहुत देर के बाद जब भगवान ने देखा हमें तो कोई देख ही नहीं रहा, सब अपने में ही खोये है। तब भगवान ने रोना शुरू किया। अब रोने पर भी जब कोई देखने वाला नहीं, तो गुस्से में मारी एक लात गाड़ी में तो गाड़ी दूरsss.. जाके गिरी और उसी गाड़ी में था एक सकटासुर सो उसका भी गोविन्दाय नमो नमः।
माखन से भरे जितने घड़ा थे सब फूट गए। बोल नन्द के लाला की। मैया ने देखी अब तो टूटी गाड़ी फूटे मटका अरे राम-राम! देखा तो लाला पालने खेलते भये। लपक के मैया ने लाला को गोद में ले लियो देखो लाला तो मेरो ठीक-ठाक दीखे। बड़ो संतोष भयो। पर आंधी तो चली ना, तूफान आयो ना गाड़ी खड़ी-खड़ी कैसे उछल गयी। तवई दो छोरा दौड़ें-दौड़ें आए बोले- मैया! हम बतावें?.. हाँ.. बताओ बेटा!
बोलो- मैया हम बाई खड़े भये और तुम सब नाचबे में लगी। तासे लाला की नींद खुली तो मानो सबसे पहले रोबो चालू करो। मैंने सोंची याकू उठाए के तुमको देई आऊँ और जबई मैं आगे बढ्यो, याने गाड़ी में एक लात मारी की धम्म से गाड़ी आकाश में चली गई।
मइया बोली- दारी के भाग यहाँ से, भांग खा के तो न आयो। कल को छोरा, पैदा होवे की देरी ना भई और लात मार के गाड़ी आकाश में उड़ा दी। चल भाग यहाँ से, डांट के सभी को भगाया और छोरा सौगंध खाएं-खाएं के परेशान। मैया तेरे सिर की सौगन्ध हम साची बोले।
पर मैया की तो चले काऊ ब्रजबासी ने बात नाय मानी। तुरंत मैया ने ब्राह्मण को बुलायो, गृह शांति का अनुष्ठान करायो दक्षिणा दीन्ही ब्राह्मणन ने आशीर्वाद दी। मैया तू चिंता नाय कर हम आशीर्वाद दे रहे हैं, यापे काऊ की अला-बला नाय आ सके, या खुद अपनी अला-बला को दूर फेंकेगो। ऐसो आशीर्वाद देके ब्राह्मण चले गए। इस प्रकार से प्रभु ने सकट भंजन किया।
एक दिन मैया लाला को खूब उछाल-उछाल के खिलाय रही, कन्हैया बड़े प्रसन्न पर उछालवो बंद करे सोई रोबे लगे। मैया परेशान कब तक उछालूं थक गयी, सो स्तनपान कराईबे लगी। तब तिरछी निगाह से देखा, ओहो मामाजी ने एक और खिलौना भेज दियो हमारे ताई।
कन्हैया ने क्या देखा कि तृणावर्त जी आरहे हैं। अब माताजी तो उछाल रही है नहीं। तब कन्हैया ने माया के द्वारा अपना वजन बढ़ाया। बजन बढ़ा भगवान का तो माता से संभाले न सम्हले मईया ने सोची अरे काह है गयो या छोरा कुं।
अरे काह भयो या छोरा कुं इतनो बजन हो गयो। अब जैसे ही माता ने छोरा को जमीन पर बैठाया वैसे ही वह तृणावर्त कन्हैया को अपने हाथों से उठाकर आकाश में ले गया। भगवान ने उसके गले को पकड़कर जैसे ही दवाया उसके भी प्राण पखेरू उड़ गए इस तरह से भगवान ने यहाँ पर तृणावर्त का भी उद्धार किया। मैया ने झटपट लाला को उठाया गोद में और गले से लगाया। बोली- पतो नाय कहा को बला है जो मेरे लाला को हाथ धोए के पीछे पड़्यो हैं।
मैया ने फिर से लाला की झाड़ फूंक किया, स्नान करायो काजर लगा के डिठौरा लगाया और फिर से दूध पीलावे लगी तभी दूध पीते पीते कन्हैया ने जम्भाई ली और मैया ने यहाँ पर तीनों लोकन के दर्शन लाल के मुख्य मंडल में कर लियो।
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