हम सबने बाबा नंद को बधाई दी बड़े धूमधाम से जन्मोत्सव भी बनाया। पर महाराज इतनी जोर को हल्ला भयो की गोकुल में लल्ला भयो। अब बात पहुंच गई बरसाने में, सो वृषभान जी बोले- यह हल्ला कायको है रह्यो है?. बोले- महाराज! बधाई हो… आपके प्रिय मित्र नंद जी के यहां लाला भयो है। देखो इन दोनों को बचपन की प्रतिज्ञा थी, नंद बोले- देखो अगर आपको लाला होय मेरे यहां लाली तो मैं आपको टीको भेजूंगो और आपके यहां यदि लाली होवे और हमारे यहां लाला तो आप टीको भेजियो। बस विधाता ने अच्छो संजोग बिठायो बिनके लाला भयो हमारे तो पहले ही लाली भई। अब बढ़िया-बढ़िया टीको सजायो, बरसाने की गोपियां सज धज के टीको लेकर आए रही हैं। अच्छा मालूम टीको कायते कहें। सगाई ते टीको कहें। जन्म हैवे की देरी ना भई सगाई है रही है। अब तो महाराज आनंद के साथ परमानंद हुआ। गोकुल में सब नाचने लगे- नंद महर घर ढोटा जाओ, बरसाने ते टीको आयो।।
अच्छा अब एक बृजवासी ने क्या कियो मालूम है, पहले तो लई एक चांदी की परात ओ वामें रखी माखन और मिश्री अब इनको बनायो बड़े-बड़े लोंदा अब सब तो गाईवे बजाईवे में लगे और बृजवासी बालक काह करें? माखन के बनावें बड़े-बड़े लौंडा और गोपियन कुं तुक-तुक के मारवे लगे। तो उनको मुख भूतन जैसो होय गयो।
अब भगवान की कृपा से उसी भीड़ में एक बुढ़िया मैया आयगई अब बिचारी ठिगनी सी थी और मुह में नहीं एकउ दांत, बिना दांत की वेदांती मैया। अब भीड़ के बीच में आई और बोली क्यों रे लालाओ जे काह भयो है। अब उसने कही कहा भयो है तो एक बृजवासी तुक के एक ऐसा लोंदा मार्यो सो गटक से मुंह में होकर सटक ते पेट में चले गए। अब दांतई नाय तो रुके कहां ते।
अब तो महाराज पूरो मुख मीठो है गयो मैया को। तो पहले तो वाने मुह चाट्यो, वामे ते एक ने बोलो- तोय पता नाय चली मैया, मुंह मीठो है गयो। अरे नाय बेटा काह भयो है बताओ तो?.. बोले- नंद के लाला भयो है मैया बोली- भगवान करे ऐसे लाला तो रोजई होवे करें और रोज ऐसे लाला होय तो रोज ऐसो माखन मिले। अब एक सुंदर सी गोपी आई, बोली- नंद रानी जी आप आज्ञा करें तो हम कुछ गावें। अब आप भी प्रेम ते गइयो।
नंदो महामनास्तेभ्यो वासोलड़्कार गोधनम्। सूत मागध बन्दिभ्यो येन्ये विधोपे जीविनः।।
क्योंकि―
पूत सपूत जन्यौ यशुदा,
इतनी सुनि कैं वसुधा सब दौरी।
देवन के आनन्द भयौ,
पुनि धावति गावत मंगल गौरी।।
नन्द कछू इतनों जो दियो,
घनश्याम कुबेरहु की मति वौरी।
देखत मोहि लुटाय दियौ,
न बची बछिया छछिया न पिछौरी।।
बाबा नंद ने इतना लुटाया कि कुबेर भी आश्चर्य में पड़ गए, कि कहां से आ रहा है इतना। जितना लुटाते उससे चौगुना उनके भंडार भर जाते। अब तो ब्रजवासी जोर-जोर ते गावे लगे।
नंद के आनंद भयो
जय कन्हैया लालकी...
बाबा नंद बड़े आनंदित हैं और इस नंद महोत्सव के 18 मंत्र हैं इन 18 मंत्रों को जो नित्य पाठ करें उसके यहां लक्ष्मी की वृद्धि होती है और 18वें मंत्र में लिखा भी है।
तत् आरभ्य नन्दस्य बृजः सर्व समृद्धिमान। हरेर्निवासात्मगुणै रमाक्रीडमभून्नृप।।
बाबा नंद इतने समृद्धि मान हो गए कि साक्षात रमा याने लक्ष्मी उनके कोष में विराजमान हो गई, कि लुटाओ कितना लुटाओगे। कम होने का तो प्रश्न पूछता ही नहीं, पर एक बात ध्यान दीजिए इस नंद उत्सव में सब पधारे, पर वसुदेव जी की पत्नी नहीं! क्यों?.. वह इसलिए कि शास्त्र कहता है कि जिस स्त्री का पति कष्ट में हो उसे किसी उत्सव में सम्मिलित नहीं होना चाहिए। फिर बाद में जब बाबा नंद को पता चला तब स्वयं उनके पास पहुंचे और समझाया तब रोहणी जी इस उत्सव में सम्मिलित हुए और लाला को गोद में लेकर नृत्य किया।
अब यह उत्सव तो चलना है पूरे 6 महीने पर एक दिन बाबा नंद ने ग्वालों को बुलाया और बोले हमने अभी तक मथुरा के राजा कंश का कर नहीं दिया, यदि अब और विलंब हुआ तो कंश के सैनिक कर लेने गोकुल आ जाएंगे। तब हो सकता है कि उन सैनिकों को पता लगे कि वसुदेव जी की पत्नी हमारे यहां हैं और उनको एक बालक हुआ है तो कहीं वे उस बालक को भी नुकसान न पहुंचावे। इससे बढ़िया यह है कि हम ही समय रहते उसका वार्षिक कर देआवें। ग्वालों ने कहा हमारे लिए क्या आदेश है? बाबा बोले- मैं तो जा रहा हूँ मथुरा!... तब तक आप लोग गोकुल की सुरक्षा में तैनात रहना कोई अहित न होने पावे। छकरे पर घी, दूध, माखन आदि रख कर बाबा नंद मथुरा कर देने चले गए। वहां जाकर वसुदेव जी से मिले सांत्वना प्रगट करी, बोले- वसुदेव जी कंश ने आपको बड़ा कष्ट दिया। आपके 6 पुत्रों को मार दिया बाद में एक कन्या हुई वह भी आकाश में चली गई। वसुदेव जी ऐसे विषम परिस्थितियों में जो व्यक्ति प्रारब्ध को कारण मान लेता है, उसे मोह नहीं होता। ऐसा समझ लेने पर मनुष्य दुख कम हो जाता है। इस प्रकार नंद बाबा वसुदेव जी को समझाने लगे।
लेकिन वसुदेव जी को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। वसुदेव जी को लगा मेरे दो-दो पुत्र इनके घर में हैं और ये यहां घूम रहे हैं, ऐसे में वहां कोई अनिष्ट हुआ तो यह अच्छा नहीं। अंत में वसुदेव जी ने नंदबाबा से कह दिया कि आपने वार्षिककर दे दिया। हमारी आपकी मुलाकात भी हो गई अब आपका यहां रुकना ठीक नहीं है। शीघ्र ही आप गोकुल चले जाओ। गोकुल में कोई उत्पात होने वाला है, इसलिए आप जल्दी से गोकुल पहुंचो।
इधर कंश बड़ा चिंतित है, की आकाशवाणी ने तो आठवें पुत्र को मेरा काल बताया था, पर यहां कन्या ने जन्म लिया वह भी कह गई के मेरा काल यहीं बृज में कहीं पर जन्म ले चुका है। अब उसे खोजकर मारना ही होगा अन्यथा मैं मारा जाऊंगा। कंश ने तुरत बकासुर, धेनुकासुर, सकटासुर आदि दैत्यों को बुलाया और विचार विमर्श करने लगा कि तभी सभा में बकासुर की बहन बकी आगई। इसका एक और नाम है "पूतना"।
पूतना नाम की राक्षसी ने कहा- महराज उस बालक का पता लगाने जितना समय नहीं। कंश ने कहा- तो फिर कैसे पता लगे? पूतना ने कहा- एक उपाय है महराज! एक माह तक के जन्मे सभी बच्चों को मार दिया जाय तो उनके साथ आपका शत्रु भी मारा जाएगा।
पूतना को अविद्या कहा जाता है, भगवान ने असुरों को जन्म देने वाले तत्व को पहले खत्म किया। क्योंकि जो मूर्ख है वह भी राक्षस है और जो क्रोधी है वह भी राक्षस है। रामावतार में राम जी ने पहले किसको मारा?. ताड़का को “तब क्रोध कर ताड़का आई” ताड़का क्रोध का स्वरूप है और कृष्णावतार में पहले पूतना को मारा तो पूतना अविद्या का स्वरूप है। यह अविद्या पूतना जो है, वह कंश से प्रेरित है और कंश अहंकार का प्रतीक है। यह पूतना मारती किसे है! जो बच्चे है, अबोध हैं। माने अबोध जीवों को मारती है, जो ज्ञानी है उसके पास तो इसकी नहीं चलती। फिर यह तो भगवान श्रीकृष्ण को अबोध शिशु समझकर मारने जा रही है।
पूतना ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया अपने स्तनों में विष लगाया और सोचने लगी की सुरु कहां से करूं, उसने देखा कि नंद जी के यहां बहुत भीड़ हो रही है इसलिए शुरू भी यहीं से करती हूं। आई थी कायको, मारने को पर भगवान उसे देखते ही नेत्र बंद कर लिए। अब यहाँ पर भगवान के नेत्र बंद होने के कारण, कई संतों ने कई मत दिए और कुछ मत तो भागवत जी में भी दिए गए हैं।
अब यह बताइये! क्या अंधकार सूर्य के सामने टिक सकता है?. अज्ञान विद्वान के सामने भला टिक सकता है?. भला राक्षसी माया, देवमाया के सामने टिक सकती है?. नहीं! बस तो बात यही है कि भगवान ने विचार किया अगर मैंने नेत्र बंद नहीं किए तो यह पूतना जो मायावी रूप धारण करके, सुंदर रूप धर की आई है। तो इसका वह रूप नष्ट होकर सच्चा रूप सामने आ जाएगा, और यदि सच्चा रुख अभी सामने आ गया तो फिर मुझे लीला करनी है कि इसे बाहर मारकर उसे मोक्ष देना है, यह कार्य कैसे पूरा हो पायेगा।
तो इसका रूप कुरूप में न बदले इसलिए भगवान ने अपने नेत्र बंद कर लिए। अथवा पूतना आई थी दूध पिलाने, भगवान ने सोचा यह जैसे भी है यह काम तो माँ जैसा कर रही है। इसे मैं कौन सा स्थान दूँ? अब इनकी आंख में तो सूर्य चन्द्र है न, तो उन्होंने अपने द्वार ही बंद कर लिये कि इस बाल घातनी को हम अपने यहाँ कोई स्थान नहीं देने वाले। अथवा पूतना आयी थी दूध पिलाने पर स्तनों में विष लगाकर आई। तो भगवान ने सोचा विष तो हम पीते नहीं हम तो यहाँ दूध, मक्खन, मलाई खाने आये हैं और ये मौसी जी हमें विष पिलाने आ पहुंची। तो बालकृष्ण ने उस समय भगवान शिव का स्मरण आंख बंद कर के किया कि आप विष पीजाओ और हम दूध-दूध पीलेंगे।
पूतना भगवान श्रीकृष्ण को लेकर उड़ने लगी, मन में सोचा इसे सीधे मथुरा ही लेकर जाती हूं। तभी भगवान श्रीकृष्ण दूध पीते-पीते अब उसके प्राण शक्ति को खींचने लगे। अब तो महराज भगवान ने देखा कि पूतना ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया और कहने लगी- मुंचमुंच
मुझे छोड़ मुझे छोड़, भगवान ने कहा माता जी एक तो हम किसी को पकड़ते नहीं और जिसे पकड़ते हैं उसको बिना उद्धार किये कभी छोड़ते नहीं। इस प्रकार भगवान ने पूतना को जो मथुरा की ओर जा रही थी उसे वन की ओर ले जाकर वृक्षों के ऊपर पटक दिया। भगवान ने सोचा अब तो इसका प्राणान्त होना निश्चित हो ही गया, दूसरा इसका यह विशालकाय शरीर इसको अब हमने इन्हें माता जी माना है तो इनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था करना भी तो हमारा ही दायित्व बनता है। इस प्रकार पूतना के गिरते ही उसके विशाल देह के भार से अनेक वृक्ष टूटकर गिर पड़े।
इधर माता यशोदा सहित ग्वाल बाल भी उस जगह पर पहुंचे जहां यह पूतना आकर गिरी। माता ने देखा बड़े विकराल देह वाली उस पूतना की छाती में बैठे बालमुकुन्द मुस्कुरा रहे हैं, झटपट ग्वालों ने किसी कदर चढ़कर कन्हैया को वहां से उतारा और माता यशोदा की गोद में दे दिया। तभी वहां पर नंद बाबा पधारे, ग्वालों ने सारी बात बताई। बाबा ने सोचा वसुदेव जी ने सही कहा था कि गोकुल में कोई अनिष्ट होने वाला है, वसुदेव जी वाणी कभी मिथ्या नहीं होती, वो जो कहते हैं वह सत्य ही होता है। बाबा ने कहा चलो परमात्मा ने बहुत बड़े अनिष्ट से हमें बचाया है अब इसका भी संस्कार किया जाना चाहिए अन्यथा इसकी गंध से सारा बृजमण्डल रोगों से ग्रसित हो जाएगा। आप सभी अपने अपने घर जाओ और जिसके पास जो भी हो कुल्हाड़ी, बांका, आरी लेकर आओ और इसके शरीर के छोटे छोटे टुकड़े करके यहीं इन्हीं लकड़ियों से इसका दाहसंस्कार करो।
अब ग्वालों ने मिलकर उस पूतना का अंतिम संस्कार किया। शुकदेवजी कहते हैं परीक्षित जब वह पूतना जली तो उसके धुंए में इतनी मधुर सुगंध निकली की पूरा बृजमण्डल महक उठा।
परीक्षित ने प्रश्न किया गुरुदेव ऐसा क्यों? वह तो एक दुष्टा राक्षसी थी विष लगाकर आयी थी हमारे गोविन्द को मारने फिर उसके देह से सुगन्ध क्यों निकाला?..
शुकदेवजी कहते हैं- परीक्षित! वह राक्षसी तब थी जब वह मारने आयी थी। अब जिस स्त्री को भगवान ने अपनी माता का स्थान दिया हो, जिसका स्तनपान भगवान ने किया हो भला उसके देह से दुर्गन्ध क्यों आएगी। इस प्रकार भगवान ने यहां पर लीला का प्रारंभ करते हुए पूतना का उद्धार किया।
ग्वालों ने मिलकर उसका दाह संस्कार कर अपने-अपने घर आये। गोपियों ने कहा- मइया! या लाला कुं वो पहाड़ जैसी राक्षसी ने छुआ है, याते याकि अब शुद्धि करो। अब माता जी के सहित सब गोपियन ने लाला को लैके पहुंची गौशाला और “गोमूत्रेण स्नापयित्वा पुनर्गोरज सार्भकम्”।। अब तो महराज हमारे कन्हैया ने गोमूत्र से स्नान कियो और गायुअन के पदरज से कन्हैया की भई मालिस और एक मइया ने कन्हैया को लियो गोद में और दूसरी गाय के पूंछ ते झाड़ा दै रही है। हां माताओं का ये स्वभाव होता है कि यदि अपने पुत्र को कुछ हो गया तो आधी डॉक्टरी तो स्वयं कर देती हैं। यही तो उनका वात्सल्य प्रेम है, झाड़ रहीं हैं लाला को और मंत्र पड़ रही हैं।
इन्द्रियाणि हृषीकेश प्रणान् नारायणोsवतु। श्वेतद्वीप पतिश्चित्तं मनो योगेश्वरोवतु।।
कहती हैं मेरे लाला के इन्द्रियन कि रक्षा हृषिकेश करें, प्राण की रक्षा नारायण भगवान करें। श्वेतदीप के पति मेरे लाला के चित्त की रक्षा करें, योगेश्वर भगवान मेरे कन्हैया के मन की रक्षा करें।
क्रीडन्तं पातु गोविंदः शयनं पातु माधवः।
खेलते हुए लाला की रक्षा गोविंद करें और सोते हुए कृष्ण की रक्षा माधव करें। यहां कन्हैया गोद में बैठे हंस रहे हैं, बोले- करलो बात! हमारे नाम से हमको ही झाड़ा दे रही है। इस प्रकार लाला को आशीर्वाद दिया माताओं ने। कहते हैं―
जासु नाम सुमिरत एक बारा।
उतरत नर भव सिन्धु अपारा।।
जिसका नाम सुमिरन मात्र से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाते हैं, उन्हीं को गोद में लेके जिसने भूल से ही दूध पिला दिया, तो क्या वह राक्षसी रह सकती है! वह तो देवी बन गई।
पूतना का नाम अच्छा नहीं! “पूतना” तो पूत पुत्र को भी कहते हैं और पवित्रता को भी। मतलब की जिसको पवित्रता नहीं, जिसको पुत्र नहीं वह पूतना। और कुल क्या है?.. राक्षसी! यह इस जन्म की नहीं पूर्वजन्म में भी राक्षसी थी, राजा बलि की पुत्री थी। भगवान वामन को देख कर मन में विचार मात्र किया कितने सुंदर है काश इन्हें मैं अपना स्तनपान करा सकती। और इस जन्म में कौन है वकासुर की बहन है। तो इस की जाती भी अच्छी नहीं नाम अच्छा नहीं अब खाती क्या है तो कहते है “रुधिरासना” छोटे बच्चों का रुधिर याने खून पीती है, तो जिसका नाम अच्छा नहीं कुल बढ़िया नहीं, भोजन अच्छा नहीं फिर भी मेरे गोविंद ने उसको मोक्ष प्रदान कर दिया।
“न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रिज जाते हैं” गोविंद ने पूतना को मोक्ष प्रदान कर दिया- क्योंकि कन्हैया ने सोचा! इसका मारने का तरीका भले गलत था, पर मुझे मारने के लिए यही तरीका इसने क्यों चुना। यह काम तो एक माँ करती है इसलिए गोविंद ने उसके सारे दुर्गुणों को छोड़कर एक गुण पकड़ लिया माता का गुण और उसे मोक्ष में जो गति माता यशोदा को बाद में मिलना है। वही गति पूतना को पहले दे दी। तो जो श्रद्धा से प्रेम से भक्ति से प्रभु नाम का स्मरण करते है भला उनकी मुक्ति में कोई संदेह रह सकता है क्या?.. महाराज प्रश्न ही नहीं उठता। देखें हमारे गोविंद का अवतार हुआ अष्टमी को और पुतना मारने आई थी चतुर्दशी को और पूतना अविद्या का स्वरूप है तो अविद्या का स्थान ही 14 जगह में होता है पांच ज्ञान इंद्रियों में पांच कर्म इंद्रियों में और चित्त, मन, बुद्धि, अहंकार इन 14 जगहों में अविद्या का स्थान है।
लेकिन यदि अविद्या गोविंद के सामने आ जाए तो टिक सकती नहीं है। वहाँ जाते ही उसका विनाश हो जाता है कैसे? जैसे सूर्य के सामने अंधेरा नहीं टिक सकता वैसे ही योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के सामने अविद्या नहीं टिक सकती। ध्रुव अबोध था वह नहीं जानता था कि भगवान की इस स्तुति कैसे करते हैं, पर भगवान ने जब उसके कपोल में शंख का स्पर्श किया, वह विद्वान हो गया। हमारे वृंदावन के एक भक्त हैं “बिंदु” जी उनके पद में भी यही भाव झलकता है “कृपा की ना होती जो आदत तुम्हारी, तो सुनी ही रहती अदालत तुम्हारी”।
तो जो प्रभु पूतना जैसी पापनी में भी दोष दर्शन न कर सके तो वो अपने भक्तों का दोष भला कैसे देख सकते हैं।
भक्तों इस पूतना वध की कथा को जो प्रेम से सुनें पढ़ें उसके मन में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम जाग्रत होता है।
य एतत् पूतनामोक्षं कृष्णस्यार्भकम- द्भुतम्। श्रृणुयाच्छ्रद्धया मत्र्यो गोविन्दे लभते रतिम्।।
सादर प्रणाम,
जवाब देंहटाएंसविनय अनुरोध... कृपया कथा प्रवाह जारी रखें।।
जी अवश्य
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