महराज! अब तो माता देवकी इतनी सुंदर दिख रही हैं, कैसे ?
स देवकी सर्व जगन्निवास निवास भूता नितरां नरेजे।।
माता देवकी आज इतनी सुंदर क्यूं दिख रही हैं? क्योंकि उनके यहां आज सर्व जगन्निवास जो आने को हैं। अब देवताओं को पता चला कि भगवान आने वाले हैं तो भगवान की स्तुति गाने पहुंच गए। इसका नाम है गर्भ स्तुति, यह कृष्ण नारायण या गोविंद स्तुति नहीं है। इसका नाम है गर्भ स्तुति, गोविन्द जिस गर्भ में आते हैं, वह गर्भ भी दिव्य हो जाता है। आइये हम भी इस गर्भस्तुति को साथ में भाव से गाईये।
स्वागतम कृष्ण शरणागतम कृष्ण।
सत्यवृतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये।
सत्यस्य सत्यामृत सत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्ना:।।
देवताओं ने बड़ी सुन्दर स्तुति गाई। आप सत्य हैं, सत्यव्रत हैं, परमसत्य हैं, आप आदिमध्यान्त सत्य हैं। त्रिकालावाधित सत्य हैं, हम आपके चरणों में प्रणाम करते हैं। शायद बार-बार सत्य कहने का उनका अभिप्राय यह रहा होगा, कि आपने जो वचन दीया की मैं आप लोगों को भयमुक्त करूंगा।
हे; प्रभु! आपके चरणों का जो आश्रय ले लेते हैं, वह व्यक्ति आपके भवसागर को सहज में ही पार कर लेते हैं। हम आपको बार-बार प्रणाम करते हैं। अनेक उदाहरणों से स्तुति गाई। फिर बाद में वसुदेव और देवकी को भी स्वस्थ कर दिया और बोले- आपको बिलकुल डरने की जरूरत नहीं है माता!
प्रभु अपने चतुर्व्यूहावतार में आए हैं। अपने अंशों के साथ आए हैं, इसलिए तुम्हें कंश से भयभीत होने की जरूरत नहीं है, प्रभु तुम्हें संरक्षण देंगे। अब तो महाराज पूरी परिस्थितियां बदलने लगी।
बोले- ज्यों ज्यों प्रभु के जन्म का समय निकट आ रहा है, दुष्ट लोगों के मन में भी निर्मलता बढ़ती जा रही है। भाद्रपद मास में नदियों का जल कभी निर्मल नहीं होता, पर गोविंद के आगमन की खुशी में नदियों में भी निर्मलता बढ़ गई। अब भाद्रपद महिना आ गया, दसों दिशाएं आनंदित हैं। अब भाद्रपद मास का कृष्ण पक्ष आया अब कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा गई द्वितीया गई तृतीया आई, चौथ पंचमी षष्ठी भी बीत गई। अब सप्तमी बीती, आई अष्टमी दिन है बुधवार का, एक प्रहर बीता दो प्रहर भी बीत गया तीन,चार,पांच, छः प्रहर भी बीत गए। 3 घंटे का एक प्रहर माना गया है और 24 घंटे में आठ पहर होते हैं। जब सातवां प्रहर लगता है तो बजते हैं रात्रि के 12 इस हिसाब से माना जाए तो भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि को 12:00 बजे हुआ।
भगवान श्री कृष्ण ने सोचा माता देवकी को सुख इसलिए मिलेगा क्योंकि उनके यहां मैं अवतरित हो रहा हूं और जशोदाजी को आनंद इसलिए मिलेगा की बाल लीला मैं उनके यहां करूंगा परंतु जिन माता रोहणी जी ने देवकी के लिए इतना बड़ा त्याग किया उन माता रोहणी जी को क्या मिलेगा?.. इसलिए गोविंद ने सोचा मेरे जन्म के समय नक्षत्र रोहिणी ही होना चाहिए। इस तरह से गोविंद ने रोहिणी नक्षत्र को चुना, तिथि है अष्टमी पक्ष है कृष्ण वार है बुद्ध और नक्षत्र रोहिणी रात्रि में 12:00 बजे गोविंद प्रकट हो गए। चंद्रमा ने पूरे ब्रजमंडल की कमान संभाली और सूर्य उदय का अब तो कोई प्रश्न ही नहीं है। एक बात और बताऊं कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को चंद्रमा रात्रि में ठीक 12:00 बजे ही उदय होता है। तो जिस समय गोविंद का प्राकट्य हुआ उसी समय आकाश में चंद्रमा भी उदय हो गए। यहां कंश खर्राटे बजा रहा है और पहरेदार सैनिक सब सो रहे हैं। सारा ब्रिज मंडल सोया है बस जाग रहे हैं तो वसुदेव और देवकी तथा आकाश का चंद्रमा गोविंद जिस समय पधारे आइए हम नेत्र बंद कर के एक क्षण उस बाँकी झांकी का दर्शन करें।
तमद्भुतं बालकमम्बुजेक्षणं चतुर्भुजं शंखगदार्युदायुधम् । श्रीवत्सलक्ष्मम् गलशोभि कौस्तुभं पीताम्बरं सान्द्रपयोदसौभगम् ।।
कितनी सुन्दर झांकी है। तं अद्भुतं बालकम् अम्बुजेक्षणम् वसुदेव देवकी ने उस अद्भुत बालक को देखा जिनके सुंदर नेत्र हैं सुंदर शंख जैसी ग्रीवा है, कमल के समान आंखें हैं। मोती से दांत हैं घुंघराली अलकावली है। बिजली को भी मात करने वाला गोविंद ने सुंदर पीतांबरी धारण किए हैं। बड़ी सुंदर करधनी है, शंख चक्र गदा पद्म धारण किए हैं। चतुर्भुजं शंखगदार्युदायुधम् । श्रीवत्सलक्ष्मम् गलशोभि कौस्तुभं श्रीवत्स का चिन्ह है कौस्तुभ मणि धारण किए हैं। ऐसी सुंदर झांकी है वसुदेव देवकी दोनों ने यह सुंदर झांकी को देखा और चतुर्भुज नारायण के वसुदेव देवकी ने स्तुति की।
भगवान ने बताया माता-पिता को; यदि आप को डर है कि कंश मुझे मार देगा, तो भय अब त्याग दीजिए और एक टोकरे में मुझे पधराकर गोकुल में बाबा नंद के यहां ले जाइए। वहां माता यशोदा जी ने एक पुत्री को जन्म दिया है, उसको लेकर वापस आ जाना और कंश को दे देना। आप चिंता ना करें, आपके सारे बंधन खुल जाएंगे। अब भगवान ने चतुर्भुज किया अंतर्धान और छोटे से बालक बनकर देवकी जी के गोद में बैठ गए माता ने पहले तो उन्हें अपना स्तनपान कराया दूध पिलाया भला गोकुल भूखे कैसे जाएंगे। अब वहीं एक सूप रखा था तो उसे उठाया। उसमें एक वस्त्र रखकर भगवान गोविंद को पधराकर वसुदेव जी चल पड़े। आगे बढ़ते ही हाथ पैरों की बेड़ियां खुल गईं, सारे पहरेदार सो गए और कारागार के सारे दरवाजे स्वयं ही खुल गए। घनघोर अंधेरी रात्रि में मेघ मानों नगाड़े बजा रहे हों, अत्यधिक वर्षा तूफान बिजलियाँ चमकने लगीं। जमुना जी का जल ऐसा बढ़ा मानों आज मथुरा को डुबोकर ही मानेगा।
इधर वसुदेवजी भगवान के आदेश का पालन करने में तत्पर सभी वाधाओं को चीरते हुए बस आगे बढ़े जा रहे हैं। कालिंदी ने देखा आज मेरे स्वामी जी मेरे पास पधारे हैं बिना चरण छुए तो जाने न दूंगी। वसुदेव जी ने उस सूप को अपने हांथों में रखा था पर जब यमुना प्रबल धारा देखी तो उन्होंने उस सूप को अपने सिर पे रख लिया। तब भगवान को वर्षा से बचाने के लिए शेष जी अपने फनों की छाया बनाई और गोविंद ने देखा कि कालिन्दी जी की धारा वसुदेव जी के मार्ग को वाधित कर रही हैं। जब जमुना जी का जल वसुदेव जी के गले तक पहुंचा ही था कि तभी गोविन्द ने अपना दायां पैर नीचे कर दिया जमुना जी ने बालकृष्ण के चरण छुए और शांत हो घुटनों तक आ गईं।
इस तरह से वसुदेव जी बाबा नंद जी के घर पधारे। वसुदेव और बाबा नंद दोनों परम मित्र हैं, मानो बाबा नंद वसुदेव जी की प्रतीक्षा में थे लेकिन वे भी माया से मोहित थे क्योंकि उनके यहां तो माया पहले से ही जन्म लेकर माता के पास लेटी हुई थी। बाबा नंद ने स्वयं वसुदेव जी से उस बालक को लेकर यशोदा के कक्ष में पहुंचे वहां गोविन्द को लिटाकर कन्या को गोद में लिया और वसुदेव जी को दे दिया और वसुदेव जी लौटकर मथुरा आ गए। लेकिन इस घटना को बाबा नंद जानते नहीं, क्योंकि उस समय वे माया के बस में मोहित थे।
इधर जैसे ही वसुदेव कारागार में पहुंचे सारे दरवाजे बन्द बेड़ियां फिर से लग गईं और कन्या रोने लगी। कन्या के रुदन सुनकर प्रहरी जाग गए, सूचना महराज कंश तक पहुंचाई गई।
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