सोमवार, 25 अप्रैल 2022

देवयानी, शर्मिष्ठा और ययाति की कथा 80

शुकदेव जी कहते हैं- इन गाधि महाराज के जो पुत्र विश्वामित्र जी हैं इन के 101 पुत्र हुए। अब इसी वंश में आगे चलकर एक राजऋषी हुए जिनका नाम है नहुष, यह वही नहुष है जो अगस्त्य ऋषि का अपमान करने से अजगर सांप बने थे। अब राजा नहुष के 6 पुत्र हुए यति, ययाति, संयाति, आयति, वियति, कृति ये इनके 6 पुत्र हैं। लेकिन इनके जो द्वितीय पुत्र हैं श्रीमान ययाति इनका विवाह शुक्राचार्य की बेटी देवयानी के साथ में हुआ। अब इन्हीं ययाति के घर जिस बालक ने जन्म लिया उसका नाम यदु हुआ और इन्हीं यदु के वंश में हमारे कन्हैया का अवतार हुआ। 

लेकिन यहां पर परीक्षित ने पूछा- महराज! शुक्राचार्य जी तो ब्राह्मण हैं और राजा नहुष है क्षत्रिय, तो ब्राह्मण की पुत्री का विवाह एक क्षत्रिय से कैसे हुआ?.. मैंने तो सुना है कि पहले नियम था! ऐसा कि यदि ब्राम्हण बालक चाहे तो क्षत्रिय कन्या से विवाह कर सकता है। लेकिन क्षत्रिय बालक ब्राह्मण कन्या से विवाह नहीं कर सकता। ऐसा प्रतिलोम पद्धति का विवाह कैसे हो गया?... आप उचित समझें तो बताएं। 

शुकदेव जी बोले- क्या है कि कभी-कभी विधि का विधान ऐसा बन जाता है कि ना चाहते हुए भी कार्य करने पड़ जाते हैं। सुनो शुक्राचार्य ब्राह्मण हैं और दैत्यों के गुरु भी हैं। शुक्राचार्य की पुत्री का नाम है देवयानी और देवयानी परम सुंदरी है और आजकल जो दैत्यों के राजा हैं वह है वृषपर्वा! तो वृषपर्वा के गुरु हैं शुक्राचार्य जी महाराज और राजा की बेटी है शर्मिष्ठा। इन दोनों में बड़ा प्रेम है, अब देवयानी शर्मिष्ठा दोनों सहेली है। पर जो देवयानी है उसको इस बात का बड़ा घमंड है, कि मैं ब्राह्मण की बेटी हूं। गुरु पुत्री हूं; एक बार दोनों और कुछ सहेलियां पिकनिक मनाने निकलीं, बढ़िया-बढ़िया भोजन बनाया पहले तो सुंदर सरोवर में स्नान किया। जब स्नान कर रही थी तो उधर से ही आ रहे थे शंकर पार्वती! तो शर्मिष्ठा संकोच में सोचा बाबा शंकर आ रहे हैं तो जल्दी से देवयानी के वस्त्र पहन लिए तभी देवयानी सरोवर में से निकली बोली- क्यों तुमने हमारे वस्त्र क्यों पहने?.. शर्मिष्ठा बोली- तो क्या हो गया! हम दोनों सहेलियां ही तो हैं। मेरे वस्त्र तुम पहन लो बिगड़ता क्या है। बोली सहेली हो तो सहेली की तरह रहो, हम श्रेष्ठ हैं, ब्राह्मण हैं, आचार्य हैं, तुम्हारे गुरु की बेटी हैं। तुम तो हमारे पिता के चेला की बेटी हो तुमने हमारे वस्त्र पहने तो पहने कैसे। अरे हम तो पवित्र ब्राम्हण हैं तुम हमारी बराबरी कर कैसे सकती हो। इस प्रकार 2-5 बचन देवयानी ने शर्मिष्ठा को सुनाई। तो शर्मिष्ठा को भी आई गुस्सा शर्मिष्ठा बोली- चल बड़ी आई गुरु की बेटी। अरे हमारे यहां से जब सीधा सामान जाता है, तब तुम्हारे यहां रोटी पकती है। नहीं भूखे पड़े रहो! हम कृपा करके अन्न दान करते हैं। तब तुम्हारा पेट भरता है,  नहीं भूखे  रहो।

हम गुरु पुत्री कह कर के सम्मान करते हैं और यह निम्न कहकर हमारा अपमान करती है। महाराज ब्राम्हण तो केवल मुख से कहना जानते हैं पर क्षत्रिय तो करके दिखा देते हैं। शर्मिष्ठा को आया क्रोध देवयानी को कुएं में धक्का दिया। 

अब बिचारी देवयानी अर्धनग्न अवस्था में कुएं में पड़ी है उस कुएं में पानी नहीं था और यहां शर्मिष्ठा अपने घर चली आई। बड़ी पवित्र ब्राम्हण की बेटी, बढ़िया है। अब वहीं से नहुष पुत्र ययाति  रथ पर सवार होकर के निकले तभी उन्होंने किसी स्त्री की पुकार को सुना, देखा तो उस कुएं में देवयानी खड़े होकर सहायता की वात जोह रही थी। ययाति ने देवयानी का हाथ पकड़कर कुएं से बाहर निकाला। 

राजा ययाति ने पूछा- देवी! इस कुएं में आप कैसे गिरी, किसने गिराया यहां आपको। देवयानी बोली- किसने कुएं में गिराया यह बात तो मैं बताऊंगी बाद में, अब आपने मेरा हाथ पकड़ा है तो बस पकड़े रहिए। राजा बोला- मैं आपकी बात नहीं समझा?.. आप कहना क्या चाहती हो। बोली महाराज! स्त्री का पाणिग्रहण तो एक ही बार होता है, अब आप ने मेरा हाथ ग्रहण कर लिया है तो छोड़िए नहीं। 

राजा ने कहा यह तो मैंने अपना धर्म निभाया है मानव का जो कर्तव्य है मैंने वही किया। पर विवाह की बात आपने सोची क्यों?.. परिचय क्या है आपका?.. 
देवयानी बोली- मैं दैत्य गुरु शुक्राचार्य की बेटी हूं। राजा बोले- तब तो यह विवाह हो ही नहीं सकता। मैं तो क्षत्रिय हूं आप किसी ब्राह्मण बालक से विवाह करें देवी।

देवयानी ने कहा- ब्राह्मण बालक कोई हमें स्वीकार नहीं करेगा। क्योंकि बृहस्पति के पुत्र कच्च ने मुझे श्राप दिया है। महाभारत में इसकी बहुत बढ़िया कथा आती है। कहते हैं:- जो शुक्राचार्य हैं उनके पास मृतसंजीवनी नाम की विद्या है, गुरु बृहस्पति ने सोचा मैं इस विद्या को कैसे सीखूं?.. अगर मैं सीखने जाऊं तो बड़े संकोच की बात है। क्योंकि मैं देवताओं का गुरु और शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु, यह अच्छी बात नहीं है। हां यदि मेरा बेटा यह विद्या इनसे पड़े तो मैं अपने बेटा से चुपचाप पढ़ लूंगा। 

अब अपने पुत्र कच्च से कहा पुत्र तुम जाओ शुक्राचार्य से मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त करो। अब कच्च ने जब गुरु शुक्राचार्य के यहां प्रवेश लिया। प्रणाम किया शुक्राचार्य बोले- बेटा बहुत खुशी की बात है कि तुम्हारे पिता से मेरा मन एक नहीं है, पर तुम तो मेरे लिए पुत्र के समान हो उन्होंने तुरंत दीक्षा दी। 

अब विद्या प्रारंभ के लिए मुहूर्त निकाला तो कहा पुत्र आज अमावस्या है हम पूर्णिमा से पढ़ाई प्रारंभ करेंगे अभी 15 दिन हैं तब तक तुम गौ सेवा करो। देवयानी बोली पिताजी- यह नया चेला कौन है? बोले- यह देव गुरु बृहस्पति का पुत्र है। देवयानी ने कहा तो मैं विवाह इन्हीं से करूंगी। बोले- ठीक है, तो अभी पढ़ाई कर लेने दो पढ़ाई के बाद पिता से बात करके तुम्हारी शादी कर देंगे। दैत्यों को पता चला कि हमारे दुश्मनों के गुरु पुत्र हमारे गुरु से विद्या प्राप्त करने आया है, यदि हमारे यहां की विद्या देवताओं के पास चली गई तो सब गड़बड़ हो जाएगा। दैत्यों ने देखा कच्च को जंगल में गाय चराते हुए। तो धोके से मारकर जंगल में फैंक दिया। बहुत देर हुई तो देवयानी ने कहा पिताजी कच्चे अभी तक नहीं आया और कच्च के बिना रह सकती नहीं हूं। तब शुक्राचार्य ने मृतसंजीवनी के प्रभाव से मरे हुए कच्च को पुनः जीवित कर दिया। 

दैत्यों ने कहा- क्या बतावें गुरुजी ने उसे पुनः जीवित कर दिया और विद्या आरंभ करने के 10 दिन बाकी हैं। तब दैत्यों ने कच्च को एकांत में देखा तो जंगल ले गए और उसे मार कर जला कर फेंक दिया शुक्राचार्य ने अपनी बेटी के पीड़ा को जाना और राख में से भी कच्च को जीवित कर दिया। 

अब केवल 5 दिन बाकी हैं एकादशी हो गई पूर्णिमा को सिखानी है दैत्यों ने सोचा; गुरु जी तो इसे बार-बार जीवित कर देते हैं अब कच्च जब इस बार जंगल गाय चराने गया तो दैत्यों ने क्या किया कच्च को मार कर चला कर उसके राख को छाना और भांग में मिलाकर अपने गुरु जी को ही पिला दिया। अब देखते हैं कैसे जीवित करते हैं। इधर शुक्राचार्य सोचा अभी तक कच्च आया नहीं जब समाधि लगा कर देखा तो शुक्राचार्य रोने लगे। बोले- पुत्री अब तो तुम्हारा कच्च मिल सकता है या फिर तुम्हारा पिता इन दुष्टों ने कच्च को मार कर चला कर मुझे ही भांग में पीसकर पिला दिया। 

बेटी मैं शाप देता हूं। अब कोई भी ब्राह्मण नशा करेगा तो उसकी ब्राह्मणता का नष्ट हो जाएगी इसलिए ब्राह्मणों को कभी किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए। यदि यह त्रुटि मेरे जीवन में ना होती तो आज यह अपराध होता। शुक्राचार्य ने अपने पेट में ही कच्च को जीवित कर दिया और बोले- पुत्र अब तुम यह विद्या हमारे पेट में ही आरंभ करो। इस तरह कच्च ने समस्त विद्या का अध्ययन पेट में रहकर सीख लिया और उदर का भेदन कर कच्च बाहर निकले और विद्या के प्रयोग से ही जो गुरु जी के पेट में सीखा उसी विद्या से गुरु जी को जीवित कर दिया। अब कच्च गुरु जी को प्रणाम करके जाने लगे। तो देवयानी ने हाथ पकड़ कर कहा तुम जाते कहां हो? कच्च बोले- अब विद्या अध्ययन कर ली ना हमने सो अपने घर जा रहे हैं। देवयानी ने कहा पर हमने तुम्हें पति के रूप में वरण कर लिया है। क्या कहती हो?.. तुम तो हमारे गुरु की पुत्री हो। मैं तुम्हारे संग अधार्मिक विवाह नहीं कर सकता। 

देवयानी ने कहा- यदि तुमने विवाह नहीं किया तो मैं शाप दे दूंगी कच्च बोले- तो दे दो शाप, पर हम गुरु पुत्री के साथ में विवाह नहीं कर सकते। देवयानी ने शाप दिया, तुमने जो विद्या मेरे पिता से सीखी तुम उसे भूल जाओ। कच्च ने कहा- क्या तुमने मुझे शाप दे दिया। मैं तो अपने धर्म का पालन कर रहा था। इसमें मेरा कोई अपराध ना था। इसलिए मैं भी तुम्हें शाप देता हूं कि इस संसार में कोई भी ब्राह्मण बालक तुम्हारे संग विवाह ही नहीं करेगा। 

इसलिए देवयानी उस कुएं में से निकलने के बाद यही बात कहती है कि अब कोई ब्राह्मण बालक हम से विवाह कर नहीं सकता। राजा ययाति ने सोचा ठीक है जब विधि का विधान ही ऐसा है तो मैं कर क्या सकता हूं। उन्होंने गांधर्व विधि से विवाह किया और विवाह के बाद शुक्राचार्य से आशीर्वाद लेने के लिए आए। इधर जब शुक्राचार्य को पता चला कि शर्मिष्ठा ने देवयानी के कुआं में गिरा दिया है तब शुक्राचार्य ने राजा वृषपर्वा का गुरु पद छोड़ दिया। यह देख वृषपर्वा अपने गुरु शुक्राचार्य की शरण में आए। गुरुदेव ऐसा ना करें, हमारा जीवन तो आपका दिया है और आप यदि हमें त्याग देंगे तो हम किसकी शरण में जाएंगे। तब शुक्राचार्य ने कहा यदि तुम हमें खुश देखना चाहते हो तो पहले हमारी बेटी को मनाओ। बेटी के पास गए तो देवयानी ने कहा- आप शर्मिष्ठा को मेरी दासी बना कर मेरे साथ मेरे ससुराल भेजो।

तब राजा ने अपनी बेटी शर्मिष्ठा को समझाया सहेलियों के सहित देवयानी की दासी बना करके ससुराल भेज दिया। पर मन की गति बड़ी अटपटी है। 

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