शनिवार, 23 अप्रैल 2022

चंद्रवंश में जन्में बुध और पुरुरवा की कथा 78

शुकदेवजी कहते हैं- 
गुर्वर्थे व्यक्तराज्यो व्यचरदनुवनं पद्मपद्भ्यां प्रियाया: 
पाणिस्पर्शाक्षमाभ्यां मृजितपथरुजो यो हरीन्द्रानुजाभ्याम्।
वैरुप्याच्छूर्पणख्या: प्रियविरहरुषाssरोपित भ्रूविज्रम्भ
त्रस्ता ब्धिर्वद्धसेतुः खलदवदहनः कोसलेन्द्रोअ्वतान्नः॥

इस प्रकार श्रीराम कथा को संक्षिप्त में पूर्ण किया, और चंद्रवंश में प्रवेश किया।       शुकदेवजी कहते हैं- परीक्षित अब मैं तुम्हे चंद्रवंश का वर्णन करके सुनाता हूं, ध्यान से सुनो। 

इस चंद्रवंश में बड़े ही पुण्यशील राजाओं का प्रादुर्भाव हुआ है। चंद्रमा का जो वंश है वह सूर्यवंश से एक पीढ़ी पहले हैं। ब्रह्मा के पुत्र हुए मरीच। मरीचि के हुए कश्यप, कश्यप के हुए सूर्य, तो भगवान नारायण से चौथे नम्बर में हैं सूर्य। परन्तु यहां नारायण से ब्रह्मा, ब्रह्मा से अत्री और अत्री के चंद्रमा, तो चंद्रमा है तीसरी पीढ़ी के और सूर्य हैं। चौथी पीढ़ी के इसलिए चंद्रमा जो हैं वो सूर्य के चाचा जी लगते हैं। 

कहने का मतलब चंद्रमा सूर्य से भी पुराने हैं। चन्द्रमा का वंश बड़ा विचित्र है, हमने बताया न कि चंद्रवंश में बिना झगड़े के किसी का विवाह हुआ ही नहीं। श्रीमान चंद्रमा जी को 27 पत्नियां हैं, फिर भी अपने गुरु की पत्नी तारा का हरण कर लिया। इतने तो ये भले मानुष हैं, और गुरु वृहस्पति की पत्नी का जब हरण किया तो वो गर्भवती हुई, तब देवताओं के कहने पर वापस कर दिया। अब वृहस्पति पूछने लगे तारा से की गर्भस्थ शिशु किसका है। तो विचारी संकोच में बतावे नहीं। तब पेट में से ही बालक बोला- कहती क्यों नहीं हो कि मैं चंद्रमा का बेटा हूं। 

देवता बोले- यह तो बड़ा बुद्धिमान है इस लिए इसका नाम बुद्ध ही रखना चाहिए। तो चंद्रमा के बेटा हुए बुद्ध। अच्छा हमने बताया न कि सूर्यवंश में सुद्युम्न भगवान शिव जी की कृपा से स्त्री बन गए। जब वो जंगल से लौट रहे थे और यहां बुद्ध भी जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे। सो इन दोनों का मिलन हो गया। 

बुद्ध बोले- देवीजी हम तुमसे विवाह करना चाहते हैं। सुद्युम्न बोले- महराज हम देवी नहीं देवा हैं। परन्तु अब स्त्री बने हैं तो जैसी आपकी आज्ञा इस तरह से इन्हीं सुद्युम्न को बुध के द्वारा पुरुरवा नाम के पुत्र हुए। अब श्रीमान पुरुरवा भी अपने पिताजी से दो हाथ आगे हैं। पुरुरवा जी एक बार पहुंचे स्वर्गलोक, तो स्वर्ग की एक अप्सरा है उर्वशी, तो उर्वशी से बोले- तुम हमारे मृत्युलोक चलो। उर्वशी बोली मैं नहीं जाती। बहुत मनाया तो उर्वशी बोली- ठीक है! पर मेरे तीन शर्त हैं। पहली यह कि मेरे पास एक भेड़ है और उसके चार मेमने हैं। इनकी रक्षा आपको करनी पड़ेगी। दूसरी शर्त यह है कि मृत्युलोक का अमृत है घी बस मैं घी पीकर रहूंगी। तीसरी शर्त सहवास के अलावा यदि मैंने तुम्हें नग्नावस्था में देखा तो तुम्हें छोड़कर चली जाऊंगी। 

अब पुरुरवा उर्वशी को लेकर आये मृत्युलोक में, तो देवता बोले- बिना उर्वशी के तो स्वर्गलोक ही सूना पड़ा है। सो रात्रि में भेड़ के बच्चों को चुराकर ले जाने लगे। जैसे पुरुरवा को पता चला तो नग्नावस्था में ही दौड़े तो देवताओं ने बिजली चमका दी और उर्वशी ने देख लिया, सो पुरुरवा को छोड़कर स्वर्ग चली गई। 

कहते हैं उर्वशी के गर्भ से पुरुरवा के 6 पुत्र हुए, आयु सुतायु सत्यायु रय विजय और जय। इन्हीं पुरुरवा के वंश में आगे चलकर कौशिक वंश प्रारंभ हुआ। इसी वंश में जन्हु ऋषि हुए। इन्हीं जन्हुवंश में गाधि नाम का पुत्र हुआ। गाधि महराज के कोई पुत्र नहीं था। पर प्रभु कृपा से एक पुत्री हुई। इस कन्या का नाम सत्यवती रखा और शान्त भाव से कन्या के साथ में रहते हैं। वहीं भृगुवंश में एक बालक हुआ जिनका नाम है ऋचीक मुनि। भृगुवंशी लोग ज्यादा क्रोधी हुआ करते थे। सो ऋचीक मुनि गाधि के घर पर आये।

बोले- मैं सुनता हूं आपके घर एक कन्या है। बोले जी! तो फिर उनका विवाह हमारे संग में कर दो। अब गाधि जी ने सोचा यह तो बड़ा क्रोधी महात्मा है। हम क्षत्रिय हैं, ये है ब्राह्मण हम अपनी बेटी इनको दे कैसे? और नहीं देते तो कहीं शाप न दे दें। 

इसलिए उन्होंने एक बहाना बनाया। बोले- महराज हम लोग तो कौशिक हैं, क्षत्रिय हैं। हमारे यहां का एक नियम है कि एक हजार स्वेतवर्ण के घोड़ा जो लाकर के दे देता है। उसे हम अपनी पुत्री व्याह देते हैं। गाधि ने सोचा न ये ऐसा कर सकते हैं और न बेटी देनी पड़ेगी। लेकिन ऋचीक मुनि सीधे वरुण देवता के पास में गये।

कहते हैं उर्वशी के गर्भ से पुरुरवा के 6 पुत्र हुए, आयु सुतायु सत्यायु रय विजय और जय। इन्हीं पुरुरवा के वंश में आगे चलकर कौशिक वंश प्रारंभ हुआ। इसी वंश में जन्हु ऋषि हुए। इन्हीं जन्हुवंश में गाधि नाम का पुत्र हुआ। गाधि महराज के कोई पुत्र नहीं था। पर प्रभु कृपा से एक पुत्री हुई। इस कन्या का नाम सत्यवती रखा और शान्त भाव से कन्या के साथ में रहते हैं। वहीं भृगुवंश में एक बालक हुआ जिनका नाम है ऋचीक मुनि। भृगुवंशी लोग ज्यादा क्रोधी हुआ करते थे। सो ऋचीक मुनि गाधि के घर पर आये, बोले- मैं सुनता हूं आपके घर एक कन्या है। 

बोले जी! तो फिर उनका विवाह हमारे संग में कर दो। अब गाधि जी ने सोचा यह तो बड़ा क्रोधी महात्मा है। हम क्षत्रिय हैं, ये है ब्राह्मण हम अपनी बेटी इनको दे कैसे? और नहीं देते तो कहीं शाप न दे दें। 

इसलिए उन्होंने एक बहाना बनाया। बोले- महराज हम लोग तो कौशिक हैं, क्षत्रिय हैं। हमारे यहां का एक नियम है कि एक हजार स्वेतवर्ण के घोड़ा जो लाकर के दे देता है। उसे हम अपनी पुत्री व्याह देते हैं। गाधि ने सोचा न ये ऐसा कर सकते हैं और न बेटी देनी पड़ेगी। लेकिन ऋचीक मुनि सीधे वरुण देवता के पास में गये, और एक हजार स्वेतवर्ण के घोड़े लाकर दे दिए। परिणाम ये हुआ कि अपनी पुत्री उन्हें देनी पड़ी। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें