अब कल तो पास में ही था, तो यह बात सुनते ही उठा और अपनी चचेरी बहन देवकी के बालों को पकड़ लिया। केस पकड़ के जैसे ही तलवार निकाल अपनी बहन की हत्या करने को तैयार हुआ। तब वसुदेव जी ने उसे रोका, जो व्यक्ति अपने शरीर को सब कुछ समझते हैं न, वह अपने उसी शरीर की रक्षा के लिए बड़े से बड़ा अधार्मिक कार्य कर जाते हैं।
वसुदेव जी ने उसका हाथ पकड़कर रोका और कहा- देखो! कंस ऐसा अधार्मिक कार्य मत करो। यह तुम्हारी बहन है अभी-अभी तुमने ही तो इसका विवाह किया है। तुम बहन की हत्या करोगे? तुम स्त्री हत्या का पाप करोगे?
कंस ने कहा- अभी-अभी तुमने आकाश वाणी नहीं सुनी! उसने कहा क्या, की इसका आठवां पुत्र मेरा काल होगा। अरे तो कहां जाओगे मौत से बचकर, अरे जिसने जन्म लिया वह तो एक दिन अवश्य ही मारा जाएगा। महराज! मौत तो हमारी बहन है और वह भी खास, क्योंकि जिस गर्व से हमारा जन्म होता है। मौत भी उसी पेट से जन्म लेती है और पल-पल में हमें मारती रहती है। आज मरो या हजार वर्ष बाद, मरना तो है ही। कंस बोला- देखिए! आप मुझे उपदेश मत दीजिए। मेरा तो एक ही सिद्धांत है कि देवकी को यदि मारूंगा तो हमारा काल पैदा होगा कैसे?
नहीं कंस तुम ऐसा मत करो, मैं तुम्हें वचन देता हूं, जिस गर्भ से तुम्हे भय है उस गर्भ को पैदा होते ही तुम्हें सौंप दूंगा।
लेकिन इसकी हत्या मत करो। कंस को यह बात जंच गई, उसने वसुदेव देवकी को छोड़ दिया और महल के ही एक कमरे में बंद कर दिया। और समय के बाद प्रथम पुत्र हुआ जिसका नाम देवकी जी ने कीर्तिमान रखा। वसुदेव जी ने कंस को सांत्वना देने के लिए अपने वचन को सिद्ध करने के लिए, अपने पहले पत्र को लेकर कंस के पास पहुंचे। यह देखकर कंस बड़ा खुश हुआ, कि वसुदेव जी सचमुच अपने वचन के पक्के हैं। तो कह दिया; अरे मित्र! इतनी तकलीफ क्यों करी, यह तुम्हारा पहला पुत्र है। मेरा शत्रु तो आठवां है, जाओ इसे ले जाओ।
यह सुनकर वसुदेव खुश हुए और खुशी-खुशी देवकी के पास पहुंच गए। पर महाराज! राक्षसों की बुद्धि जहां पर समाप्त होती है, नारद जी का दिमाग वहां से शुरू होता है। बस पहुंच गए नारद जी वीणा बजाते। बोले- और भाई क्या हाल है, हमारे कारण बने राजा तुम और हमी को भूल गए। गलत बात है। कंस खड़े होकर नारद जी का स्वागत किया। आइए महाराज! इस संसार में सच एक आप ही तो हमारे हैं। नारद जी ने कहा- चलो छोड़ो झूठी प्रशंसा! अब यह बताओ कि बात क्या है?.. जो आज कल तुम बहुत परेशान रहते हो?
मैं क्या बताऊं महाराज! मैंने अपनी बहन का बड़ी धूमधाम से वसुदेव जी के साथ विवाह किया और जब विदा करने लगा तब आकाशवाणी हुई, कि देवकी का आठवां गर्व मेरा काल होगा। फिर?..
फिर क्या! मैंने दोनों को अपने ही महल में बंदी बनाकर रखा है। अच्छा! तो अभी तक कुछ हुआ कि नहीं?.. बोला- हां! पहला पुत्र तो आज ही हुआ और वसुदेव जी उसे सौंपने के लिए आए थे, पर मैंने उसे वापस कर दिया।
क्यों?.. अरे यही तो तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो। फिर नारद जी ने एक अष्टदलकमल उठाया और कंस को ऐसे समझाया कि कमल की हर पंखुड़ी को आठवां सिद्ध कर दिया। इतना कह नारद जी हुए अंतर्ध्यान और यहां कंस का माथा ठनका स्वयं दौड़ा-दौड़ा गया और देवकी के प्रथम पुत्र को छुड़ा लिया।
यह देखकर देवकी भयभीत होकर पैर पकड़ कर बोली- भैया यह क्या कर रहे हो, यह तो मेरा पहला पुत्र है तुमने तो इसे छोड़ दिया। मत मारो, छोड़ दो मेरे लाल को। पर कंस ने देवकी की एक भी ना सुनी और बाहर आकर उस बालक को एक पत्थर पर लाकर पटक दिया और इस प्रकार देवकी के प्रथम पुत्र को दुष्ट कंस ने मार दिया।
उसी समय वसुदेव और देवकी के पैरों में बेड़ियां डलवा कर कालकोठरी में बंद कर सिपाही तैनात कर दिए। महाराज इस प्रकार समय बीता दूसरा पुत्र हुआ सैनिकों ने कंस को सूचना दी और कंस ने आकर उसे मार दिया। इसी तरह तीसरा, चौथा, पांचवा, छठा पुत्र को भी कंस ने आकर मार दिया।
अब भगवान आने को तैयार हुए सारे ऋषि-मुनियों ने पुकार लगाई। हे नारायण, हे गोविंद अब तो अवतरित हो जाइए। पृथ्वी पर पाप का भार बढ़ गया है। तब भगवान ने शेष जी से कहा- देखो रामावतार में आपने हमारी लीला में साथ दिया था। अब आपको इस कृष्ण अवतार में भी हमारा सहयोग करना है। इसके बाद भगवान नारायण ने योग माया को बुलाया और कहा- देवी! माता देवकी के घर जो सातवें बालक के रूप में मेरे शेष जी होंगे। उन्हें लेकर जाओ बोले देवी हमारे जो कंस मामा है ना, यह तो मानो बस इंतजार में बैठे रहते हैं। बालक हुआ कि पकड़कर मार देते हैं।
तो तुम ऐसा करो- आज्ञा भगवन!
माता देवकी के गर्भ में जो शेषजी हैं न उन्हें गोकुल में नन्द जी के यहाँ जो वसुदेवजी की बड़ी भार्या हैं रोहिणी, वो वहां रहती हैं। सो तुम इनको रोहिणी जी के गर्भ में स्थापित कर देना और वहीं तुम यशोदा जी के गर्भ में प्रवेश हो जाना। फिर समय बीतने पर वसुदेव जी मुझे लेकर आएंगे और तुम्हें लाकर कंश को दे देंगे।
तब उस योगमाया ने कहा भगवान यह सब तो ठीक है कि आप कंश को बुद्धु बनाकर गोकुल चले जायेंगे और कंश के हांथों आजाउंगी मैं, पर ऐसा करने में मुझे मिलेगा क्या? क्यूंकी जन्म तो मैं भी लुंगी और फिर अचानक ऐसे गायब हो जाऊं यह अच्छा नहीं लगता।
अच्छा तो सुनो अगर तुमने ऐसा किया-
नाम धेयानि कुर्वन्ति स्थानानी च नरा भुवी।
दुर्गेति भद्र कालीति विजया वैष्णवीति च।।
देवी कलयुग में तुम्हारा बहुत नाम होगा। दुर्गा,काली,विजया,वैष्णवी, कात्यायनी इन अनेक नामों से तुम जानी जाओगी और तुम्हारी पूजा करके व्यक्ति जो मागेगा उसे वह मिलेगा। सभी देवताओं की पूजा तो एक दो दिन ही होगी, पर तुम्हारी उपासना लगातार नौ दिन की होगी। और सुनो सबकी पूजा तो एक बार ही होगी पर आपकी पूजा तो वर्ष में दो बार की जाएगी। बस प्रभु मुझे अब और कुछ नहीं चाहिए।
अब इधर कंश ने पूछा- क्या हुआ? तब मंत्रियों ने बताया महराज सातवां गर्भ सायद नष्ट हो गया। पर ये मूर्ख क्या जाने की सातवां तो गोकुल पहुंच गया, अब तो आठवें की बारी है। कंश अब और भी सतर्क हो गया और कड़ी पहरेदारी करदी। अब आठवें गर्भ के रूप में तो हमारे गोविंद आने वाले हैं।
जय श्री कृष्णा आपको कोटि कोटि प्रणाम, आपने बहुत भागबत की महिमा बताई है पढ़ कर मन बहुत आनंदित होता है.आप आगे भी प्रभु श्री कृष्ण जी की लीलाओं को विस्तार से लिखें(जय श्री कृष्णा)
जवाब देंहटाएंआप श्री का बहुत धन्यवाद।
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