आठवें स्कंध में
24 अध्याय हैं, और इसमें मन्वंतरों का वर्णन आता है।
राजा परीक्षित बोले- गुरुजी!
आपने मनु वंश की विस्तार से कथा सुनाई, अब भगवान के अवतार चरित्रों
की कथा कहिए। मन्वंतरों में भगवान ने जो अवतार लिया उसकी कथा सुनाइये।
तब शुकाचार्यजी ने बताया- राजा! सुनो मन्वंतर है 14, एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं। देखो गिनती ऐसी है आप जानते हैं कि 60 सेकण्ड में 1 मिनिट होता है और 60 मिनिट में एक घंटा होता है। अब 3 घंटे का एक प्रहर तो 4 प्रहर का एक दिन और चार प्रहर की रात्रि होती है। इस प्रकार 15 दिन का एक पक्ष और दो पक्ष का एक महीना होता है। दो महीने मिलाकर एक ऋतु और तीन ऋतु मिलाकर एक अयन होता है। दो अयन मिलकर एक वर्ष होता है।
इस तरह से वर्ष को संवत्सर नाम भी दिया गया है 100 वर्ष को शताब्दी कहते हैं। 432000 वर्ष का एक युग होता है जिसका नाम है कलियुग दो कलियुग मिलाकर द्वापरयुग दो द्वापरयुग मिलाकर त्रेतायुग और दो त्रेतायुग मिलाकर एक सतयुग होता है। इन चारों युगों को जब एक साथ बोले तो उसे एक चतुर्युगी कहते है। इस तरह 71 चतुर्युगी का समय जब बीत जाता है तो उसे एक मन्वंतर कहते हैं और इस एक मन्वंतर में एक इंद्र का शासन अवधि होती है जैसे एक प्रधानमंत्री का कार्य समय 5 वर्ष का होता है।
इसीप्रकार एक इंद्र
का कार्य समय 71 चतुर्युगी का अथवा एक मन्वंतर का होता है। ऐसे जब 14 मन्वंतर बीत जाते
है तब एक कल्प का समय पूरा होता है। और एक कल्प यानी ब्रह्मा जी का एक दिन होता है।
जब ब्रह्मा जी का एक वर्ष पूरा होता है तब भगवान नारायण की पलक झपकती है। तो इस तरह
से चार युग का एक चतुर्युग, 71 चतुर्युग का एक मन्वंतर और हर मन्वंतर में
भगवान का एक विशेषावतार होता है। हम जब कभी कोई पूजा करते हैं तो स्वस्तिवाचन के पश्चात
पण्डित जी हाथ में कुशा रख कर एक संकल्प पढ़ते हैं। संकल्प में आता है- ब्रह्मणोsह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेत वाराह कल्पे।
इस वक्त जो ब्रह्मा जी हैं विष्णुनाभ कामलोद्भुत उनकी आयुष्य का यह द्वितीय परार्ध
है।
पहले 50 वर्ष को
पूर्वार्ध कहते हैं, और दूसरे 50 वर्ष को द्वितीय परार्ध कहा जाता है। ब्रह्मा जी भी
विनासी हैं ब्रह्मा जी को भी जाना पड़ता है। तो ब्रह्मा जी का यह द्वितीय परार्ध चल
रहा है। मतलब ब्रह्मा की आयु 50 की पूरी होकर अब 51वीं हो गई। यह कौन सा कल्प चल रहा
है इसका नाम है श्वेत वराह कल्प। इसी कल्प में भगवान ने वराह अवतार धारण किया। अब एक
कल्प में भी 14 मन्वंतर होते हैं तो यह सातवां चल रहा है। सप्तमे वैवस्वत मन्वंतरे,
इस मन्वंतर का नाम वैवश्वत है। सातवें मन्वंतर में 27 चतुर्युगी बीत
गए अब 28वें चतुर्युगी मे सतयुग पूरा हो गया, त्रेता पूरा होगया,
द्वापरयुग बीत गया और कलियुग चल रहा है। इसलिए संकल्प में पढ़ते अष्टाविंशिततमे
युगे कलियुगे और इस कलियुग में भी 432000 वर्ष होते हैं जिसमे 5123 वां वर्ष चल रहा
है। तो अभी कलियुग के 427000 कुछ वर्ष अभी भी बाकी है।
कलियुग
का यह अभी प्रथम चरण है अभी तो 427 हजार वर्ष बांकी है। इस कल्प के प्रथम मन्वंतर में
जब मनु महाराज तपस्या कर रहे थे तो असुर लोग उन्हें मारने के लिए दौड़े ताम नर नारायण
भगवान ने मनु महाराज की असुरों से रक्षा की।
दूसरे हुए स्वरोचिष मनु तीसरे है राजा प्रियव्रत के पुत्र उत्तम नाम के मनु चौथा है
तामस मनु इस मन्वंतर में भगवान ने हरि अवतार लिया। भागवत जी में वर्णन है कि हर मन्वंतर
में इंद्र अलग अलग होते हैं।
इंद्र एक पद है इंद्र
को शतक्रतु भी कहते हैं मतलब जो 100 अश्वमेध यज्ञ करे उसे इंद्र का पद मिल जाता है।
सप्तर्षि भी हर मन्वंतर में अलग अलग होते हैं, और हर मन्वंतर में भगवान का
अवतार भी अलग अलग होता है। किसी मन्वंतर में देवियों का प्रभाव होता है तो किसी मन्वंतर
में भगवान शिव की लीला होती है तो किसी में भगवान विष्णु। चतुर्थ मन्वंतर में भगवान
विष्णु ने हरि अवतार लिया। जिन्होंने गजेन्द्र का उद्धार किया।
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