गुरुवार, 11 नवंबर 2021

प्रहलाद जी को पिता के द्वारा दण्ड 66

प्रहलाद एक एक भक्ति बताते जा रहे हैं, और पिता की आंखे गुस्से में लाल हो रही हैं।

अरे यह तो मेरे कुल में कलंक पैदा हो गया। बारंबार कहता हूं कि नारायण नाम मेरे सामने मत लो, लेकिन यह है कि मानता ही नहीं। किसने सिखाया तुझे ये सब, किसने पढ़ाई इसको यह विद्या। सामने आओ

गुरु संडामर्क तो कांपने लगे, बोले-

न मत्प्रणीतं न पर प्रणीतं, सुतो वदत्येष तवेंद्र शत्रो।

नैसर्गिकीयं मतिरस्य राजन, नियच्छ मन्युं कददा: स्म मान:।। 28/5

महाराज हमने तो आपके पुत्र को यह उपदेश नहीं दिया।

अरे आपने नहीं दिया तो कोई और आया होगा यहां। किसी और ने भी यह शिक्षा नहीं दी महाराज।

बड़ी विचित्र बात आपने सिखाया नहीं बाहर का कोई आया नहीं, तो क्या पेट से सीखकर आया है।

बोले हमको तो ऐसे ही लगता है। तो फिर नियम सबके लिए बराबर लागू होता है। यह मेरा पुत्र है इसलिए इसे मैं मारना नहीं चाहता, बार बार यह नारायण का नाम लेता है। इसलिए मैं आदेश देता हूँ कि आज ही इस दुष्ट को मार दिया जाए। अब राजा के आदेश का भला पालन कौन नहीं करेगा। लेकिन जिसके रक्षक स्वयं नारायण हों उसका संसार में भी कोई बाल बांका नहीं कर सकता। सैनिकों ने प्रह्लाद जी को बंदी बनाया और हांथी के पैरों तले कुचलने को छोड़ दिया। पर वह हांथी भी प्रह्लाद जी को देख नतमस्तक हो गया। सिपाहियों ने पहाड़ की ऊंची चोटी से फेका प्रह्लाद जी को कुछ न हुआ। और भी बहुत से प्रयास किया पर कुछ न हुआ। तब आखिर में प्रह्लाद को लेकर सैनिक राजा के पास पहुंचे, सारी बात राजा को बताई। तब राजा ने बंदीगृह में डालने का आदेश दिया। इधर कारागार में भी नित्य नए तरीके से मारने का प्रयास किया जा रहा था। कभी भोजन में बिष देकर तो कभी बिसैले सर्पों के बीच छोड़कर तो कभी उबलते तेल के कढ़ाई में।

एक दिन तो महाराज गजब हो गया। हिरण्यकश्यपु की एक बहन थी जिसका नाम था होलिका। अपने भाई को परेशान अवस्था मे देखा तो बोली भैया आप तनिक भी चिंता न करो, मैं सब ठीक कर दूंगी। आप मेरे लिए एक चिता बनबाओ, उस चिता में मैं अपने दुसाले को ओढ़ कर बैठ जाऊंगी। मैन तप किया तब ब्रह्मा जी ने मुझे यह दुसाला दी जिसे ओढ़ने के बाद शत्रु, जल, अग्नि, वायु, सूर्य भी मेरा कुछ नुकसान नही कर सकते। मैं इसे ओढ़ कर चिता में बैठ जाऊंगी आप उस चिता में आग लगा देना, देखना पल भर में यह दुष्ट जलकर नष्ट हो जाएगा।

राजा के आदेश पर चिता सजाई गई, प्रह्लाद को लेकर बुआ होलिका बैठी आग लगाई गई। प्रह्लाद जी तो हर समय हरि का नाम स्मरण करते रहते हैं। उनके हृदय में ही श्रीहरि निवास करते हैं। बस अब क्या था देखते ही देखते पूतना जलने लगी। जोर जोर से आवाज करने लगी भैया बचाओ यह आग तो मुझे जलाकर नष्ट कर देगा। भैया बचाओबहुत प्रयास भी किया गया होलिका को बचाने का पर सारे प्रयत्न असफल हुए और होलिका जल कर राख हो गई उसी राख में आंख बंद किये हाथ जोड़े प्रह्लाद जी निरंतर हरि सुमिरन किये जा रहे हैं। राजा हिरण्यकश्यपु बहुत निराश हुआ कि इस दुष्ट को मारने के चक्कर मे मेरी बहन हाथ से चली गई। 

इस प्रकार पुनः प्रह्लाद जी को अनिश्चित समय के लिए कालकोठरी में बंद कर दिया गया। 6 माह बीत गए कयाधु तो मानो पागल सी हो चुकी थी पुत्र मोह से उसने भोजन का भी त्याग कर दिया था। तब एक कयाधु ने राजा से कहा महाराज 6 माह हो गए मैन अपने पुत्र को देखा नहीं। आखिर ऐसा कौन सा अपराध मेरे पुत्र ने कर दिया। आप अपने ही पुत्र को मारने के लिए उताबले हो। वह नन्हा सा बालक है उसे किसी ने बहला दिया होगा इतने दिनों से वह कारागृह में बंद अब उसे मुक्त करो, एक मौका और दो। यदि इस बार भी वह नहीं माना तो फिर आपकी मर्जी आप जो चाहे करिये। बस एक मौका और दे दो मेरे लाल को। इस प्रकार कयाधु के कहने पर हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद जी को बंदीगृह से मुक्त कराया। स्नान कराए नए वस्त्र धारण कराए गए। 6 माह बाद प्रहलाद जी ने पुनः विद्यालय में प्रवेश किया। असुर बालकों ने प्रहलाद जी को चारों ओर से घेर लिया, और यहीं से शुरू होता है प्रहलाद जी जीवन का सुंदर उपदेश।

बालकों ने प्रह्लाद जी घेर लिया बोले- प्रहलाद आपके पिता जी को नारायण बिल्कुल भी पसंद नहीं फिर तुम बार बार क्यों यह नाम स्मरण करते हो, और यदि नामस्मरण करने की तुम्हारी इतनी कामना है तो वृद्धावस्था में गा लेना, अभी से भजनानंदी क्यों बन रहे हो।

इस बात को सुनकर प्रहलाद जी के आंखों में आंसू की धारा बहने लगी बोले-मित्रो!

कौमार आचारेत्प्राग्यो धर्मान भागवतानिह।

दुर्लभं मानुषं जन्म तदप्यध्रुवमर्थदम।।

मित्रो! यह मानव शरीर बार बार नहीं मिलता, यह तो बड़ा दुर्लभ है। इसलिए एक एक क्षण इसका बहुमूल्य है। बचपन से जिसने भागवत धर्म का अनुशीलन नहीं किया, भगवान के चरणों में दिव्य प्रीति रूप जो भागवत धर्म है उसको नहीं अपनाया समझो उसने अपनी आत्मा के साथ में विश्वासघात किया है। अरे खाना, पीना, सोना, रोना, हँसना, गाना, नाचना यदि यही शारीरिक सुख है, तो ये सुख तो सूकर कूकर को भी प्राप्त है। फिर मानव शरीर को धारण करने का वास्तविक प्रयोजन क्या हुआ। इसलिए श्रीकृष्ण कीर्तन करो, प्रभु के नाम का स्मरण करो।

बच्चे बोले- काय को करें?.. काय को जपें कृष्ण का नाम। अरे भोजन तो हमारी मैया कराती है, पिता जी हमारी रक्षा करते हैं। फिर तुम भगवान को बीच में काय को ला रहे। ये भगवान का नाम काय को जपें भाई?...

धनानि भूमौ पशवो हि गोष्ठे।

नारी गृहद्वारी सखा श्मशाने।।

मित्रों। जिस धन को हम अपना सर्वस्व मानते हैं, यातो वह जमीन में गड़ा रह जाता है, या कोई दूसरे उसका उपभोग करते हैं। मृत्यु होने पर व्यक्ति को बांस की काठी पर बांध कर ले जाते हैं। तो साथ में धन जमीन नहीं जाता, यह सब तुमसे दूर राह जाता है।

कोई बात नही पत्नी तो साथ मे जाएगी, सात जन्मों के लिए हमने फेरे डालें हैं। साथ रहने का वचन लिया है।

नहीं! “नारी गृहद्वारी” हिन्दू संस्कृति का नियम है कि मृत्यु के बाद स्मशान तक कुछ लोग तो जाएंगे परन्तु धर्मपत्नी द्वार तक जाती है। बेचारी द्वार पे ही खड़ी खड़ी रोती रहती है।

कोई बात नही तो सगे संबंधि तो जाते ही होंगे?.. हमारे मित्र तो जाते ही होंगे?

हां! जाते हैं न परन्तु “सखाश्मशाने” श्मशान भूमि तक यहां से आगे न तो मामा, चाचा जाता और न जीजा फूफा। ये सब श्मशान तक जाते हैं। और दस बुराई करते जाएंगे तो दस भलाई करते।

अरे तो ये शरीर तो साथ जाएगा?

नहीं! देहस्चितायांशरीर तो बस चिता में रख गया, इसके आगे वह भी नहीं जाता। आग लगाई के बस एक किलो राख बची। इस शरीर को चाहे राजा जी कहो, चाहे पण्डित जी कहो, चाहे सेठ जी कहो, गति तो इसकी केवल तीन हैं।

जलाया तो राख होगया, जमीन में दबाया तो कीड़े चुन लिए, और फेंका तो गीदड़ कूकर खा के वीष्ठा कर दिया। तीन के अलावा चौथी कोई गति नहीं। यह शरीर भी संग नहीं जाता।

तो साथ जाता क्या है?

बोले- यदि कृष्ण कीर्तन किया है, ज्ञान का धन पास में है तो सूक्ष्म पद्धति से वह साथ जाएगा। यदि पाप किया है तो वह भी साथ जाएगा।

नाम जप से ही लोगों ने पाई गति,

भक्तों ने इसी से करी विनती।

नाम धन का खजाना बढ़ाते चलो,

कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो।।

प्रत्येक परिस्थिति में प्रभु का नाम स्मरण करें। सिवाय इसके साथ कुछ नहीं जाता।

बच्चे बोले- एक बात है प्रहलाद तुम्हारी बातें सुनके मैन प्रसन्न बहुत होता है। भगवान का नाम जपने का मन भी कर रहा है। पर बात यह है ना कि हमने कभी कृष्ण को देखा नहीं। अरे माता पिता भाई बहन सेज संबधियों से तो हमारा नाता है। जिसको कभी देखा नही उसका नाम कैसे जपें?..

प्रहलाद बोले- सच्चा संबंध तो हमारा उनसे ही है, अनंत जन्मों का संबंध है। हम लोग तो संबंध को भूले हुए हैं। संसार के जितने संबंध है। दिल पे हाथ रख के देखिए क्या वो सच्चे हैं। अरे दो इंच के जमीन के लिए भाई भाई का दुश्मन हो जाता है। नशेड़ी पुत्र को धन न मिले तो बेटा पिता को मार देता है। सब स्वार्थ का प्रेम है। चाहे वो पति पत्नी हों, चाहे पिता पुत्र हों। सच्चा संबंध तो हमारा श्रीकृष्ण से है।

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