बुधवार, 5 सितंबर 2018

यमदूतों और देवदूतों का संवाद 57

इस प्रकार भगवान का नाम सुनते ही विष्णु पार्षद उसी समय उसी स्थान पर प्रकट हो गए। उस समय यमराज के दूत दासी पति अजामिल के शरीर में से उसके प्राण हर रहे थे। तब भगवान विष्णु के दूतों ने उन्हें बलपूर्वक रोक दिया उनके रोकने पर यमदूतों ने कहा- आप लोग कौन हैं? हमें तो कोई देवता प्रतीत होते हैं। पर आप धर्म का और हमारे महाराज यम की आज्ञा का उल्लंघन कर रहे हो।

तब भगवान के पार्षदों ने कहा- यमदूतों! तुम धर्मराज के आज्ञाकारी दूत हो तो हमें धर्म का लक्षण और धर्म का तत्व बताओ।

व्रूत धर्मस्य नस्तत्त्वं यच्च धर्मस्य लक्षणम।
दूतों ने कहा- देखो भाई! और तो हम कुछ नहीं जानते, बस हम धर्मराज की आज्ञा को ही धर्म मानते हैं। इसने अपने जीवन में बहुत पाप किए हैं, इसलिए इसके जीवन की समाप्ति के बाद हम इसे लेने आए हैं।

तब पार्षदों ने कहा- तो इतना और जान लो कि जिसने अंत समय में भगवान नारायण का नाम ले लिया समझो उसी समय उसके जीवन के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। इसलिए इसने भी अंत समय में उच्च स्वर से भगवान का नाम स्मरण किया, इसलिए अब इसके प्राण पर हमारा अधिकार है। तुम लोग अब यहां से जाओ यह तो अब बैकुंठ का निवासी हो गया।

यहां पर जरा ध्यान दें। भगवान का केवल नाम अंतःकरण की शुद्धि के लिए, पाप की निवृत्ति के लिए पर्याप्त है। “नम:, नमामि” इत्यादि क्रिया जोड़ने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। भगवान के तो सहस्त्रनाम हैं, आप किसी भी नाम का संकीर्तन कर लें। एक व्यक्ति सब नाम का उच्चारण करें यह आवश्यक नहीं। क्योंकि सब नामों का उच्चारण संभव ही नहीं है। भगवान के एक नाम का उच्चारण करने मात्र से सब पापों की निवृत्ति हो जाती है। पाप की निवृत्ति के लिए भगवन्नाम का एक अंश ही पर्याप्त है। जैसे राम का “रा” इसने तो संपूर्ण नाम का उच्चारण कर लिया। इसलिए महाराज जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके नाम उच्चारण करें। इसे अपने जीवन में उतारें,  हरवक्त हर समय नाम उच्चारण करें। क्या पता कब हमारी मौत हमारे सामने हो। तुलसी बाबा कहते हैं-

जनम-जनम मुनि जतन कराही।
अंत राम कहि आवत नाहीं।।

मुनि लोग बरसो वर्ष तक तपस्या करते हैं परंतु जब उनका अंत समय आता है तो मुख से नाम निकलता ही नहीं इसलिए महाराज भगवान ना काजल इतना करो कि पैर में ठोकर लगते ही गोविंद नाम मुख से निकले मां बाप का नहीं।

अब कथा को सुनकर हमारे मन में शंका उठती है, कि अगर एक नाम प्रभु का जीवन के सारे पापों को ध्वस्त कर सकता है, तो हमारे द्वारा इतना नाम लिया हमने अपने जीवन में इतना नाम लिया गया फिर हमारे पाप क्यों नहीं कटते। इसमें एक कारण है, हमारे या आप के मुख से जब प्रभु का नाम निकलता है तभी आप के समस्त पाप जलकर भस्म हो जाएंगे।

इसमें कोई संदेह नहीं। शास्त्रीय प्रमाण है, परंतु महाराज शर्त इतनी है कि प्रभु का नाम उच्चारण के बाद फिर कोई पाप हृदय में प्रवेश ना होवे, तो सारे पाप भस्म ही रह जाएंगे और यदि मन में एक पाप भी घुसा तो सारे सोए हुए पापों को भी जगा देगा। तो फिर उपाय क्या है?.. उपाय इतना है कि राम नाम लेते ही प्राण छूट जाए तो तर जाओगे। उस अंतिम नाम ने ही तुम्हारे जीवन को पवित्र बना दिया।

तो फिर आप कहोगे- कि अभी से नाम लेने की क्या जरूरत है अंत समय में कह देंगे सुधर जायेंगे। पर ऐसा संभव नहीं!

“जनम जनम मुनि जतन कराही।
अंत राम कहि आवत नाहीं"।।
इसीलिए महाराज! अंत के भरोसे में ना रहना यह जिह्वा कब फिसल जाए पता नहीं। इसलिए आज से ही अभ्यास करना शुरू कर दो। पैर में कांटा चुभते ही मैया दईया चिल्लाते हैं। पर यदि हर बात में राम का नाम निकले यही तो कल्याण का मार्ग है।

यह बात अलग है कि अजामिल ने अपने बेटे के नाम से अभ्यास कर रखा था पर निकला अंतिम समय में भगवान का नाम ही तो अंत में अजामिल के मुख से धोखे से निकला नारायण नाम उसके पापों से छुटकारा दिला मुक्ती प्रदान करा दिया।
    ।।बोल भक्त वत्सल भगवान की जय।।

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