बुधवार, 5 सितंबर 2018

भुवनलोक का वर्णन 55

परीक्षित ने पूछा- महाराज अब मैं थोड़ी भूगोल खगोल के बारे में जानना चाहता हूं। तब शुकदेव जी महाराज ने कहा- परीक्षित! यह संपूर्ण धरती सात द्वीपों में बटी है।
1.जम्बूद्वीप
2.प्लक्षद्वीप
3.शालमली द्वीप
4.कुश द्वीप
5.कौंच द्वीप
6.शाक द्वीप
7.पुष्कर द्वीप
यह साथ द्वीप है और सातों समुद्र से यह एक दीप आवर्त है जिसे जिस रूप में हम रहते हैं उसका नाम है जम्बूद्वीप जिसके नौ खंड है। जिसमें कर्मभूमि केवल अजनाभ खंड है, यानी भारत वर्ष है। इसके अलावा जो खंड है वह पृथ्वी के स्वर्ग कहे जाते हैं, जहां लोग विषयों का भोग तो बहुत करते हैं पर कर्म करने के लिए उन्हें भारत भूमि में आना पड़ता है। शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! सात लोक ऊपर हैं और सात लोक नीचे हैं।

कुल मिलाकर यह 14 लोक हैं, इनके बीच में हमारी पृथ्वी है। जिसे मृत्यु लोक कहते हैं। तो इस प्रकार कुल मिलाकर 15 लोक  होते हैं।
1.अतल
2.वितल
3.सुतल
4.तलातल
5.महातल
6.रसातल
7.पाताल
ये सात लोक नीचे हैं। इसी प्रकार:-
1.भू:
2.भुव:
3.स्व:
4.मह:
5.जन:
6.तप:
7.सत्य
ये सात लोक ऊपर है। इस प्रकार से इन 14 और पृथ्वी सहित 15 भुवनों का एक ब्रह्माण्ड है।

इस प्रकार नीचे पाताल से लेकर बैकुंठ कटाक्ष तक की दूरी 50 करोड़ योजन होता है, इस प्रकार ब्रह्माण्ड की रचना बताई। फिर शिशुमार चक्र के माध्यम से परीक्षित ने पूछा- महाराज! पापी लोग यातना भोगने के लिए नरक को जाते हैं, वह नरक कहां पर है।

शुकदेव जी कहते हैं- राजन! पृथ्वी से 99 हजार योजन नीचे यम पुरी है। जिसमें प्रधान रूप से 28 नरक हैं। वैसे तो छोटे-मोटे हजारों नरक हैं, पर 28 नरक मुख्य हैं।
तामिश्र
अन्धतामिश्र
सुकरमुख
अंध कूप
सन्दस
सप्तसुर्मी आदि।
जैसे इनके नाम है, पापी पुरुष अपने पापों का दंड भोगने इन नरकों में जाते हैं।

परीक्षित! यह सुनकर घबरा गए, बोले- महाराज! एक बात पूछूं? यदि कोई व्यक्ति अनजाने में कोई पाप कर ले, तो क्या उसे भी नरक में जाना पड़ता है? मृत्यु से बचने का क्या कोई उपाय नहीं?

परीक्षित! इन नरकों को तुम धोबी घाट समझो। वस्त्र गंदा हुआ धोबी घाट फेंक दिया गया, धोबी ने ठुकाई पिटाई कर मैल साफ किया और प्रेस करके वापस कर दिया। उसी प्रकार से यमराज लिए डण्डा धोबी बने बैठे हैं। जब जीवात्मा पाप करके मलीन हुआ तो भगवान भेजते हैं यम पुरी, यम देवता उनकी पिटाई ठुकाई करके साफ कर फिर से संसार में भेजते हैं।

शुकदेव जी महाराज कहते हैं- देखो राजन! यदि तुम अपने गंदे कपड़े को गंदा होने पर घर में ही साफ कर लिया, तो धोबी घाट जाने की कोई जरूरत नहीं। बात सफाई की है घर में हो या धोबी घाट में, इसी प्रकार परीक्षित तुमसे यदि कोई पाप बन गया है तो विधिपूर्वक शास्त्र पद्धति से उसका प्रायश्चित कर लो तो घर में ही तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे। फिर नरक जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

परीक्षित ने कहा- महाराज! अब किस पाप का क्या प्रायश्चित होता है यह हम शास्त्रों में कहां ढूंढते रहेंगे? आप तो त्रिकालदर्शी हैं कृपया अपनी दिव्य दृष्टि से देख कर यह बताइए कि सर्वश्रेष्ठ प्रायश्चित कौन सा है? ऐसा कोई प्रायश्चित बताइए जो बिल्कुल सरल हो, हर कोई जिसे कर सके पर यह उपाय इतना पता होना चाहिए कि उसके करने से ब्रह्म हत्या जैसा पाप भी मिट सके।

शुकदेव जी बोले- तब तो एक ही ऐसा प्रायश्चित है। जो सरल से सरल और महान से भी महान है। जो बड़े से बड़े पापों को क्षण में ध्वस्त कर देता है। महाराज! वह प्रायश्चित कौन सा है? कृपा कर के हमें सुनाइये। शुकदेव जी ने वह प्रायश्चित सुनाया।

केचित्केवलया भक्त्या वासुदेव परायणा:। अघं धुन्वन्ति कात्स्नर्येन नीहारमिव भास्कर:।। 15।1।6

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