इस प्रकार से जब उनके भाइयों ने देखा तो उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। अब तो महाराज भारत से बड़े प्रसन्न हुए की अब मेरे आगे पीछे देखने वाला, रोकने वाला, टोकने वाला कोई नहीं। अब मैं स्वतंत्र हूं अब जितना मन चाहे उतना प्रभु का भजन कर सकता हूं। इस प्रकार भरत जी एकांत बैठे रहते जो कुछ प्रसाद प्रभु इच्छा से मिल जाता पा लेते और भगवान के ध्यान में ही बैठे रहते हैं।
एक समय की बात है उसी देश के राजा थे रहूगड़ सत्संग करने का बहुत शौक था। वह अपने पालकी में बैठकर के दूसरे संतो के पास जाते और सत्संग किया करते थे। एक बार की बात है उसी पालकी में बैठे हुए थे। लेकिन आज एक पालकी ढोने बाला बीमार है वह पालकी को सही तरीके से ढो नहीं पा रहा, पालकी अपने कंधे पर रख नहीं पा रहा। राजा ने पूछा क्या कारण है? तो बताया कि एक कहार बीमार है महाराज। तब रहुगण ने कहा कि ऐसा करो पास में जो भी व्यक्ति हट्टा-कट्टा दिखाई दे उसे पकड़ कर पालकी में लगा लो। तब कहार आस-पास दौड़े तो उन्हें भरत जी मिल गए, भरत जी को देखकर प्रसन्न हुए कि हट्टा-कट्टा है यही सही रहेगा। चलो इसी को लेकर चलते हैं भरत जी से बोले चलो हमारे साथ। भरत जी बोले चलो और इस तरह से भरत जी को पालकी में लगा लिया।
अब भरत जी तो ठहरे संत वह रास्ते में जब भी कोई कीड़ा देखते, चीटियां देखते तो उनको पैरों में ना पड़े, ऐसा सोच कर के छलांग लगा देते। यह देखकर राजा रहूगण बोला-
“करोमि चिकित्सां दण्ड पाणिरिव” मैं तेरी ऐसी चिकित्सा करूंगा। जैसे यमराज पापियों को सुधारने के लिए करते हैं। मैं कब से बड़बड़ा रहा हूं तुझे मेरी बात समझ में नहीं आती। यह सुन जड़भरत जी को लगा बहुत हुआ अब तो बोलना पड़ेगा। क्योंकि मैं अभी नहीं बोला तो यह रुकने वाला नहीं, यह बोलता जाएगा; मेरा अपमान करता जाएगा। यदि यह मेरा अपमान करेगा, तो यह नर्क में जाएगा और यह नरक में गया तो सत्संग का नाम बदनाम हो जाएगा।
दुनियां कहेगी कि नित्य सत्संग सुनने वाले राजा रहूगण को भी नरक में जाना पड़ा। इसलिए इस को नरक से बचाना चाहिए। दूसरी बात जड़ भरत जी को लगा कि मैंने इसके भार को कंधे पर उठाया है। संत जिसका भार कंधों पर उठाते हैं, तो उसका कल्याण करके ही छोड़ते हैं। फिर वह नरक में कैसे जा सकता है।
इसलिए भरत जी बोले- राजन! तुम किसे दंड दोगे?.. मैं तो ना पतला हूं, मैं मोटा हूं, ना मुझे सुख होता, ना दुख, मैं तो सारे द्वंधो से परे आत्मा हूं। तुम इसे ना तो मार सकते हो, ना काट सकते हो।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयंत्यापो न शोपयन्ति मारुत:।।
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