शावक को राजा भरत ने बचाया और अपने आश्रम में लेकर आए। अब तो महाराज उस सावक की रक्षा में राजा भरत लग गए उसका पालन पोषण करने लगे उसको दूध इत्यादि से उसे पोषित करने लगे। अब उनका मन हआर समय उसी हिरण के मेमने में ही लगा रहता। खाते, पीते, नहाते, जागते हर समय उसका ही ध्यान मन में रहता।
एक समय की बात है कुछ हिरणों का झुंड जल पीने को नदी के तट पर आया। उस झुंड को देखकर शावक उनके साथ जा मिला। इधर जब संध्या बंधन से मुक्त होकर के भरत जी को ध्यान आया कि वह हिरण का मेमना कहीं दिख नहीं रहा। तब व्याकुल हो उठे और उसके विरह में व्याकुल हो गए। हर समय उसी का विचार मन को पीड़ित कर रहा था। अब तो भोजन, पूजन, भजन सब छूट गया और इसी बीच एक दिन राजा भरत कि मृत्यु हो गई।
प्राण त्यागते समय हिरण का ही बोध था इसलिए उन्हें दूसरे जन्म में हिरण का जन्म लेना पड़ा प्रभु की कृपा और प्रभु का ध्यान प्रभु के भजन के कारण दूसरे जन्म में अर्थात हिरण के जन्म में भी उन्हें पूर्व जन्म का स्मरण बना रहा कि मैं दूसरे जन्म में भरत नाम का राजा था और इस प्रकार वे जानवर की योनि प्राप्त करके भी भगवान का स्मरण करते रहे, अंत में मृत्यु के बाद उन्हें एक ब्राह्मण पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ा।
भरत जी 4 भाइयों में सबसे छोटे थे, पिता पौरोहित्य कार्य में थे तो सोचा अपने छोटे पुत्र को ही पौरोहित्य कर्म सिखाऊंगा। इधर भरत जी ने सोचा एक जन्म के बिगड़ने से मुझे 3 जन्म लेना पड़ा। इसलिए अब वह गलती हम दोबारा नहीं करेंगे, सो खुद पागलों की तरह रहने लगे।
एक दिन पता जी ने अपने पास बुलाया और बोले बेटा चलो गायत्री मंत्र पढ़के सुनाओ। भरत जी ने सोचा आज ही सही मौका है। यदि मैंने सही सही पढ़के सुना दिया तो कल पिता जी दूसरा मंत्र पढ़ने को बोलेंगे, फिर कहेंगे जाओ यजमान जी के यहां कथा सुनाके आओ। फिर एक दिन मेरा विवाह कर देंगे। इस प्रकार मैं घर गृहस्थी में फंस जाऊंगा।
इस प्रकार भरत जी अपने पागलपन की सुरुआत अपने पिता जी से ही सुरु किया। पिता जी बोले- बेटा बोलो ॐ भूर्भुवः भरत जी बोले ओ भो भो भो अरे ऐसा नहीं बोलो ॐ… ओ… इस प्रकार पिताजी जो भी कहते भरत जी उसी लहजे में कुछ और कहते। अब तो महाराज यह देख पिता जी को बहुत गुस्सा आई। इस तरह पिता ने भरत जी को बहुत डांट लागई और नाम ही रख दिया जड़। तुम भरत नही जड़ हो जड़। इस प्रकार इनका नाम ही पड़ गया जड़भरत। समय बीता और एक दिन पिता जी पधार गए। बड़े पुत्र ने पिता का सब संस्कार किया। अब सभी भाईयों ने मिलकर विचार किया कि हम सब तो अपने अपने कार्य मे व्यस्त रहते हैं और छोटा भाई बैठा बैठा खाता है।
कल से हम इसे भी काम पर भेजेंगे ताकि यह भी कुछ देखे सीखे दूसरे दिन ही भाईयों ने कहा भरत आजसे तुम खेत जाओगे। भरत जी ने कहा जी भईया और खेत चल पड़े, खेत धान की फसल से हरीभरी थी काम था चिड़िया उड़ाना। भरत जी ने सोचा न मेरा खेत है न मेरा धान और न मेरी चिड़िया ये सब तो राम जी का है। सो गाने लगे-
रामजी की चिड़िया रामजी का खेत।
खाओ री चिड़िया भर भर पेट।
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