रविवार, 15 जुलाई 2018

ऋषभदेव जी की कथा 51

भगवान ऋषभदेव ने अपने प्रताप से प्रजाजनों को अपने अधीन कर लिया। यह देख इंद्रदेव को, जलन होने लगी। उनके राज्य में पानी बरसाना बंद कर दिया। पर भगवान ऋषभदेव ने अपने योग माया के प्रभाव से अपने वर्ष अजनाभ खंड में खूब जल बरसाया। यह देख इंद्रदेव बड़े लज्जित हुए और अपनी बेटी का विवाह भगवान ऋषभदेव जी के साथ कर दिया।


इस प्रकार भगवान का विवाह इंद्र पुत्री जयंती से हुआ। इनके 100 पुत्र हुए, इनके बड़े पुत्र का नाम था भरत इसलिए इस अजनाभ खंड का नाम ही भरत पड़ गया, आगे चलके भरत से भारत हुआ। श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं- परीक्षित! अंत में भगवान ऋषभदेव जी ने समस्त पुत्रों को बुला कर उपदेश दिया। पुत्रों! जब तक भगवान वासुदेव के चरणों में प्रीति नहीं तब तक जीव को इस जन्म मरण से मुक्ति नहीं मिल सकती, इसलिए अपना सच्चा संबंधी उसी को समझो जो भगवान की भक्ति में आपका समय दे, सहयोग दे; और जो इसका विरोधी है आप उस को त्याग दो फिर चाहे वह कितना ही घनिष्ठ क्यों ना हो।

उपदेश देकर भगवान ऋषभदेव भरत जी को सत्ता सौंप कर वन में चले गए शुकदेव जी महाराज कहते हैं- राजा परीक्षित! ऋषभ भगवान के बड़े पुत्र का नाम था भरत इनकी पांच संताने हुई। राजा के बड़े पुत्र का नाम था सुमति सुमती को राज्य सौंप कर वन में चले गए। कोल्हाश्रम में जाकर भगवान सूर्य देव की उपासना की, गंडकी नदी में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य दिया करते थे। तभी एक दिन स्नान के समय सिंह के डर से भागती हुई एक गर्भवती हिरण छलांग लगाते हुए नदी में कूद पड़ी। सिंह के भय से भीत हो करके वह हिरनी राजा के समीप दौड़ी उसी समय उस हिरनी ने शावक को जन्म दिया उस नन्हे शावक को जन्म देकर हिरनी ने अपने शरीर को त्याग दिया।

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