शनिवार, 14 जुलाई 2018

भगवान पृथु का यज्ञ 48

देखो यह भुजा है; मानो क्षत्रिय! अगर ब्राह्मण की जरूरत होती तो मस्तक का मंथन किया जाता। परंतु जरूरत थी राजा की इसलिए भुजाओं का मंथन किया गया। पृथु महाराज आए; तो अकेले नहीं आए। अपनी पत्नी लक्ष्मी रुप अर्चि देवी को साथ लेकर आए। भगवान पृथ्वी का राज्याभिषेक किया गया। देखो यह जन्म नहीं, यह भगवान का प्राकट्य है। सब प्रजा मिलकर एक बार राजा के दरबार में आए। सब ने अपनी-अपनी समस्या बताई।

महाराज! हम सब धरती पर इतना अनाज बोते हैं, फिर भी यह धरती हमें फसल नहीं देती है। यह सुनकर के महाराज पृथु! पृथ्वी से इसका कारण पूछा। तब गाय रूप में प्रकट हो पृथ्वी बोली- महाराज! क्या करूं जब पृथ्वी पर धर्म का पतन हो जाता है! तो मैं अपनी उर्वरा शक्ति को कम कर देती हूँ। वेन के शासन काल में मैंने अपनी शक्ति को समेट लिया। अब आपका अवतार हुआ है तो धर्म का प्रचार तो होगा ही। तब मैं भी पुष्ट  हो जाऊंगी। देखिए मेरा जो स्वरूप है वह गाय का इसलिए आप मेरे लिए बछड़ा लेकर आइए और अपनी जरूरत का धान्य मुझ से प्राप्त कीजिए।

तब महाराज पृथु ने मनुष्यों में श्रेष्ठ मनु महाराज को बछड़ा बना करके कई प्रकार के बीज धान्यों का संग्रहण किया। पृथ्वी का एक नाम रत्नगर्भा भी है। इसलिए पृथु महाराज ने पृथ्वी से कई प्रकार के रत्न भी दुहे। उस समय पृथ्वी समतल नहीं थी, इसे समतल करके नगर गांव की स्थापना भी की गई। इस प्रकार इस पृथ्वी के प्रथम सम्राट हुए पृथु महाराज।

शुकदेव जी महाराज कहते हैं- राजन! फिर महाराज पृथु ने कई अश्वमेध यज्ञ किए। जब 100वां यज्ञ होने लगा तो इंद्र घबराने लगे। कहीं यह मेरा राजसिंहासन न छीन लें। पृथु महाराज के घोड़े को इंद्र ने चुरा लिया, तब पृथु महाराज का पुत्र  इंद्र को हराकर वह घोड़ा वापस ले आया। जिससे उसका नाम विजताश्व पड़ा। इंद्र ने दोबारा पाखंड का रूप धारण करके अश्व चुराकर भागा तो अबकी बार पृथु कुमार ने ललकार लगाई तो इंद्र घबराए; बालक खतरनाक है।

तब इंद्र ने कहा बेटा हम तेरी शक्ति से बहुत प्रसन्न हुए, हम तुम्हें एक विद्या देना चाहते हैं। कैसी विद्या ?..

बोले – “अंतर्धान” जब चाहोगे गायब हो जाओगे। इसे स्वीकार करो। फिर इंद्र ने कहा बेटा तुमने विद्या तो सीख ली, पर गुरु दक्षिणा नहीं दोगे? पृथु कुमार बोलो- क्या चाहिए?... इंद्र ने कहा- घोड़ा! इस प्रकार इंद्र घोड़ा लेकर चले गए। बेटा जब घर खाली हाथ लौटा, तो पिताजी ने पूछा बेटा घोड़ा कहां है? तो विजताश्व ने बताया पिताजी घोड़ा तो देवराज इंद्र ले गए। यह सुन महाराज पृथु इंद्र पर बड़े नाराज हुए। तो ब्राह्मणों ने कहा आप शांत रहिए अभी यज्ञ में बैठे हैं क्रोध मत करिए। रही बात इंद्र की, तो हम अभी मंत्र पढ़कर, उस इंद्र को इस हवन कुंड में ही स्वाहा किए देते हैं।

ब्राह्मणों ने ऐसा मंत्र बढ़ा कि इंद्र सिंहासन सहित चले आए। क्योंकि-
मन्त्राधीना देवता ते मन्त्रा ब्राह्मणाधीना
तस्मात ब्राह्मण देवता।।

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