शनिवार, 14 जुलाई 2018

अंग, वेन की कथा 47

पुत्र को यदि भक्ति का संस्कार मां ने दिया तो पुत्र का कल्याण तो होगा ही साथ में माता-पिता का भी कल्याण हो जाता है और कई पीढ़ियों तक, तर जाते हैं। अब शुकदेव जी महाराज कहते हैं- राजा परीक्षित! ध्रुव जी के जो बड़े पुत्र उत्कल थे उन्हें तो वैराग्य हो गया। संसार उन्हें नाशवान दिखने लगी, उन्होंने अपने छोटे भाई वत्सर को राज्य सौंप दिया और भजनानंदी बन गए।

उन्हीं वत्सर के वंश में आगे चलकर अंग नाम के बड़े धर्मात्मा राजा हुए। इनका विवाह मृत्यु की बेटी सुनीथादेवी से हुआ। जिनका बेटा हुआ वेन। वेन बड़ा ही दुष्ट था, राजा “अंग” इसकी शिकायत सुन-सुन कर परेशान हो गए और एक दिन रात छोड़ कर राज्य की ही एक गुफा में जा छिपे। सेवकों को पता चला तो विदेशों में जाकर राजा का पता लगाने लगे, बहुत खोज किया पर नहीं मिले और कहां से मिले। राजा तो अपने ही राज्य में छुपे बैठे हैं। अंत में सब मिलकर के राजकुमार वेन को ही राजा बना दिया। यह बड़ा ही उग्र दंड देने वाला था। छोटे से भी अपराध में मृत्युदंड दे देता था। इससे चोरों का उपद्रव तो बंद हो गया। लेकिन वेन नास्तिक था; उसने यज्ञानुष्ठान आदि सब बंद करा दिए।

उसने कहा कोई भगवान-वगवान नहीं! मैं ही हूं सब का भगवान। राजा ही प्रजा का भगवान होता है। इसलिए कोई ब्राम्हण ब्रह्मार्पणमस्तु नहीं कहें। जिसे कहना है वह वेनार्पणमस्तु कहे। मैं ही सबका भगवान हूं; ना तो कानून से परमात्मा को प्रेम कराया जा सकता है और ना तो कानून परमात्मा के प्रति जो लगाव है, जो प्रेम है उसे रोका सकता है। बस मैंने तो कानून बना दिया कोई भगवान नहीं। यज्ञ अनुष्ठान सब बंद करो। सत्संग बंद करो। प्रजा बड़ी परेशान थी जब राजा ने स्वयं उपद्रव मचाया तो ऋषियों ने झंडा गाड़ा। उसे जाकर समझाया; देखो संविधान दो प्रकार के होते हैं एक तो राज्य का और दूसरा धर्म का, तुम अपने आप को भगवान बता रहे हो। आदम को खुदा ना कहो, आदम खुदा नहीं। पर खुदा के नूर से आदम जुदा नहीं।।

राजा विष्णु का रूप माना जाता है; पर विष्णु नहीं होता। जब वेन ने अपनी जिद नहीं छोड़ी तो ऋषियों ने कहा तेरे पास सत्ता का बल है, तो हमारे पास तप का बल है,  साधना की शक्ति है। इस प्रकार ऋषियों के हुंकार मात्र से वेन की मृत्यु हो गई। यह है मंत्र शक्ति का प्रभाव। वेन मारा गया। तब ऋषियों ने उस दिन के शव का मंथन किया, तो एक काला पुरुष निकला। यह निषाद रूप में वेन का पाप था। ऋषियों ने जब दाहिने हाथ का मंथन किया तो साक्षात भगवान पृथु प्रकट हो गए।
बोल पृथु महाराज की जय।

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