बुधवार, 11 जुलाई 2018

ध्रुव जी का नारद जी से भेंट 42

लालयेन पंच वर्षाणि, दश वर्षाणि ताड़येत।
प्राप्ते जो षोडसे वर्षे, पुत्र मित्र वदाचरे।।

10 से 15 तक बच्चे को अपने निगरानी में रखना चाहिए और जब 16 का हो तब उससे मित्रवत व्यवहार रखें यह शास्त्र कहता है।

सुनीति महारानी ने जो 5 वर्ष की अवस्था में ही ध्रुव जी को संस्कारों से परिपूर्ण कर दिया। कच्चे घड़े पर जो रंग चढ़ा दोगे चढ़ जाएगा। पके घड़े पर रंग चढ़ाना बड़ा कठिन होता है।

ध्रुव जी के हृदय में तो यह बात पक्की बैठ गई कि अब हम भगवान से मिलकर रहेंगे और दृढ़ निश्चय कर लिया। महाराज! मां को प्रणाम कर उसी वक्त घर से निकल पड़े इधर महाराज उत्तानपाद को पता चला कि बेटा घर छोड़कर चला गया, तो मंत्रियों को बुलाया जाओ। उसे कहना वह जो मांगेगा मिलेगा। बस वह घर वापस आ जावे।

मंत्री महोदय सेवक जन सब दौड़े-दौड़े ध्रुव के पास गए बोले- अरे बेटा कहां जा रहे हो ध्रुव जी ने कहा-  क्यों तुम्हें क्या मतलब! मंत्री ने कहा- बेटा तुम्हें तुम्हारे पिता ने बुलाया है। वह कह रहे थे कि तुम जो कहोगे तुम्हें वह सब मिल जाएगा ध्रुव जी ने सोचा वाह अभी मैं भगवान से मिला नहीं पर परमात्मा से मिलने को एक कदम क्या बढ़ाया मंत्री लोग दौड़े आए। कहते हैं जो मांगोगे वह मिलेगा तो उस परमात्मा से मिलने के बाद मुझे क्या नहीं मिलेगा। तो अब जब तक परमात्मा मुझसे नहीं मिलेंगे मुझे इस संसार से कुछ नहीं लेना।

ध्रुव जी का विश्वास और भी पक्का हो गया। मंत्री से बोले सुनो पिताजी से कहना वह मुझे पूरा राज्य भी यदि देना चाहे तो भी मैं इस वक्त नहीं रुक सकता। मैं तो अब परमपिता परमात्मा से ही मिलूंगा। मेरा नाम ध्रुव है और ध्रुव माने अटल जो सोच लिया तो सोच लिया इतना कह शीघ्र ही जंगल की ओर चले गए।

नदी पर्वत लांघते सीधे उत्तर दिशा की ओर बढ़ते जा रहे हैं चलते चलते थक गए भूख लगने लगी प्यास लगने लगी शरीर एकदम शिथिल हो गया शांत हो गया ध्रुवजी ने सोचा मां तो कहती है भगवान सर्वत्र हैं इस घनघोर जंगल में मैं आ गया अब भगवान के बारे में किस से पूंछू। कहां मिलेंगे? ऐसे तर्क ध्रुव के मन में उठ रहे थे कि अचानक वहां पर नारद जी आ पहुंचे।

नारद जी को देख ध्रुव ने प्रणाम किया नारदजी प्रसन्न अरे बेटा इस जंगल में कहां जा रहे हो? ध्रुव जी ने अपनी पूरी कथा सुनाई और बोले- बाबा! आप तो संसार में सब जगह घूमते रहते हो ऐसा मैंने मेरी मां से सुना है क्या आप बता सकते हैं मुझे भगवान कहां मिलेंगे नारद जी ने मन में सोचा 5 वर्ष का नन्हा सा बच्चा और भगवान से मिलने चला है। यह देखना जरूरी है कि इसमें वैराग्य कितना है वैराग्य तो कई प्रकार के होते हैं महाराज!

मर्कट वैराग्य भी होता है एक मर्घट वैराग्य भी होता है घर में भई खटपट चल बाबाजी के मठ पर माता पिता पत्नी भाई से झगड़ा हुआ कि बस बाबा बनने को तैयार हम तो अब बाबा बनेंगे। देख लिया दुनियादारी का हाल कोई किसी का नहीं।

रेलवे स्टेशन नहीं पहुंचे कि पोते की याद आ गई वह मेरे बिना कैसे रहेगा। लौट के फिर घर वापस आ गए।

इसे कहते हैं मर्कट वैराग्य दूसरा होता है मरघट कोई काका जी पधार गए उनकी ठठरी बांध कर चल दिए। राम नाम सत्य हे राम नाम सत्य है। पीछे सभी उसी की बातें करते आ रहे हैं अरे काका जी तो स्वभाव के बहुत अच्छे थे बड़े नेक थे कभी किसी को गाली नहीं दी भगवान भी गजब करता है अच्छे लोगों को पहले उठा लेता है लेकर पहुंचे असमाशान, चिता पर काका जी को रख दिया।

उस समय सब को महसूस होता है कि मृत्यु क्या है वहीं पर कसम खाते हैं मन में, कि कड़वा सत्य तो केवल एक मृत्यु है संसार में जब तक रहो भैया भजन करो किसी से द्वेष बैर मत रखो यह धन दौलत तो यहीं रह जानी है। सब अफ़सोस करते हैं पर चिता जलाकर जैसे ही घर आए सब भूल गए कौन काका जी कौन बाबा जी यही मरघट वैराग्य है। जो मरघट पर आता है और वही का रह जाता है।

नारद जी को लगा बच्चा है मां ने डांट दिया होगा।जब मां की याद आएगी चला जाएगा क्या भरोसा इसका इसलिए परीक्षा लेनी चाहिए कि इसका वैराग्य कितना खरा है। बेटा! मां ने तुम्हें डांटा और तुम घर छोड़ कर जंगल भाग आए। भगवान से मिलने, अरे यहां कई बाबा है जो तप करते-करते बाल पका लिए लेकिन दर्शन नहीं हुआ अभी तक।

देख बेटा बड़े बुजुर्ग तो डांट ही देते हैं इसमें बुरा मानने की कोई आवश्यकता नहीं बुद्धिमानी तो इसी में है कि तुम घर वापस चले जाओ यहां तो बहुत खतरनाक जानवर भी रहते हैं। जाओ भाग जाओ ध्रुव जी ने कहा बाबा जी! मैं भगवान से मिलने आया हूं और भगवान से मिल कर ही रहूंगा चाहे कुछ भी हो। लौटने की तो बात ही मत करो मेरी मां कहती है भगवान सब जगह रहते हैं और अपने भक्तों की स्वयं रक्षा भी करते हैं। नारद जी समझ गए चेला पक्का है भागने वाला नहीं प्रसन्न हो बोले-

बेटा तू मेरी परीक्षा में पास हो गया। मैं तो तेरे वैराग्य को टटोल रहा था भगवान तुम्हें अवश्य मिलेंगे बस मेरी बात कान खोल कर सुन नारद जी ने ध्रुव जी के कान में द्वादशाक्षर मंत्र फूंक दिया। "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" बेटा यह 12 अक्षर का मंत्र है तुम इस मंत्र का जप करो। यही से थोड़ी दूर जमुना जी हैं जमुना तट पर मधुबन में बैठ जाना और इसी मंत्र का खूब जाप करना ध्रुवजी गद-गद हो गए। अपने गुरु जी को प्रणाम किया और मधुबन की ओर चल पड़े। जाकर जमुना जी में स्नान किया और तप करना शुरु कर दिया।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।। वासुदेवाय नंद नन्दनाय।।
वासुदेवाय नन्द नन्दनाय।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।

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