बुधवार, 11 जुलाई 2018

ध्रुव जी की तपस्या 43

इधर नारद जी को लगा जिस का बेटा है वह परेशान ना हो। इसलिए खबर देने जाना आवश्यक है तो उत्तानपाद के पास पहुंचे राजा ने प्रणाम किया नारद जी बोले- राजन तुम चिंता मत करना वह तुम्हारा पुत्र ही नहीं। वह अब मेरा शिष्य भी है अभी-अभी मैं उसे मंत्र दीक्षा देकर आ रहा हूं।

इसलिए अब उसकी चिंता छोड़ दो। नारदजी जिसे मंत्र देते हैं उसका कल्याण तो होता ही है साथ में उसके माता पिता का भी कल्याण हो जाता है। इस प्रकार उत्तानपाद को सूचना देकर नारद जी चले गए इधर घ्रुवजी निरंतर जाप करते जा रहे हैं इस बीच एक माह गुजर गए 3-3 रात्रियों के अंतराल में शरीर निर्वाह के लिए केवल कैथ और बेर के फल खाकर ही श्री हरि उपासना करते जा रहे हैं। एक महीना पूर्ण हुआ दूसरा महीना जब चालू हुआ तो नियम बदल दिया।

"षष्ठे षष्ठेsर्भको दिने" अब 6 दिन में ही फल खाते हैं और कौन सा फल खाते हैं जो वृक्षों से स्वयं टूटकर गिरते हैं वृक्षों से तोड़ते नहीं और 6 दिन तक फिर वही तप-
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।। वासुदेवाय नन्द नन्दनाय। वासुदेवाय नन्द नन्दनाय।।

भगवान वासुदेव इस दिव्य मंत्र से बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते है। दूसरा महीना भी जब पूरा हुआ, तो नियम बदला अब 9 दिन में 1 दिन पाते हैं।

अब फल खाना बंद कर दिया, अब केवल वृक्षों के पत्ते और जल पीते हैं वृक्ष के पत्ते 9 दिन में 1 दिन पा लेते हैं और फिर 9 दिन उसी मंत्र का जप-
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।। वासुदेवाय नन्द नन्दनाय। वासुदेवाय नन्द नन्दनाय।।

तीसरा महीना भी बीत गया चौथा महीना लगा तो नियम बदला गया क्या?
चतुर्थमपि वै मासं द्वादशे द्वादशेsहनि।।
अब बार दिन में पाते हैं। क्या?.. पत्ते तोड़कर के नहीं पत्ते नीचे जो गिर जाते हैं उन सूखे पत्ते पत्तों को खाते हैं उन सूखे पत्तों को खाते हैं और फिर 12 दिन वही-
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।। वासुदेवाय नन्द नन्दनाय। वासुदेवाय नन्द नन्दनाय।।

पांचवा महीना भी बीता तो सूखे पत्ते छोड़े अब केवल वायु का पान करते हैं इस प्रकार योग शक्ति से खाना पीना एकदम बंद और जब पांचवा महीना बीता और जब भगवान की कोई झलक भी देखने को नहीं मिली तब ध्रुव जी एक पैर से खड़े हो गए और ऐसा प्राणायाम जमाया कि सारे ब्रम्हांड की प्राणवायु अवरुद्ध हो गई।

समस्त जगत के जीवन का स्वास अवरुद्ध हो गया देवता लोग कांप उठे दौड़े-दौड़े भगवान श्रीहरि की शरण में पहुंचे।
नैवं विदामो भगवान प्राणरोधं,
चराचरस्याखिलसत्त्वधाम्नः।
विधेहि तन्नो वृजिनाद्विमोक्षम,
प्राप्ता वयं त्वाम शरणं शरण्यम।।

प्रभु! क्षमा कीजिए!! हमारा स्वास रुक गया है हमारा स्वास यदि इसी प्रकार से रुका रहा तो हमारा तो हमारा प्राणान्त हो जाएगा। जल्दी से आप उपाय कीजिए महाराज प्राणी मात्र का स्वास रुका जा रहा है।

भगवान ने मुस्कुराते हुए बोले! भयभीत मत हो -
मा भैष्ट बालं तपसो दुख्यया।
यह बालक ध्रुव के अद्भुत तपस्या का चमत्कार है। ध्रुव की आत्मा मेरे से एक हो गई है। इसलिए इस के इस तप से ब्रह्मांड की सांसे रुक गई है। आप लोग परेशान ना हो मैं अभी ठीक करता हूं। अंतर्धान हुए भगवान गरुड़ जी में सवार हो तत्क्षण ध्रुव के सामने प्रकट हो गए।
बोल नारायण भगवान की जय।।

परंतु ध्रुव जी महाराज आंख बंद किए ह्रदय में ही भगवान की बांकी झांकी का आनंद ले रहे हैं। भगवान बोले वाह भैया! मैं इसके सामने खड़ा प्रतीक्षा कर रहा हूं कि यह मेरे दर्शन करे और यह है कि आंख बंद किया है। भक्त मेरी प्रतीक्षा करते हैं कि कब हम दर्शन दें पर यहां तो सब उल्टा है।

भगवान स्वयं प्रतीक्षा में है कि भक्त मेरे दर्शन करले। ध्रुव जी जिस छवि का दर्शन कर रहे थे। भगवान ने उसे अंतर्हित कर दिया। ह्रदय की छवि दूर हुई तो ध्रुव ने हड़बड़ाकर आंख खोले तो जो झांकी अंदर थी वही झांकी सामने विराजमान है।

बोल भक्त वत्सल भगवान की जय।।
चतुर्भुज धारी भगवान नारायण का दर्शन किया ध्रुव जी महाराज ने! तो गदगद हो गए तुरंत भगवान को साष्टांग प्रणाम किया फिर हाथ जोड़कर के खड़े हो गए, फिर प्रणाम किया उन की धड़कन तेज हो गई। सोचने लगे हे भगवान! माता जी से सब बातें पूछी पर यह पूछना भूल गया कि जब भगवान सामने हो तो क्या करना चाहिए। यह तो किसी से पूछा ही नहीं।

मैंने सुना है कि भगवान जब प्रगट होते हैं तब स्तुति करना चाहिए। पूजन करना चाहिए अब स्तुति करूं कहां से कुछ आता जाता तो है नहीं। पूजन करूं कहां से कोई सामग्री तो है ही नहीं। मन में एक उत्कंठा बढ़ रही थी भय भी है मन में ध्रुव जी के। प्रभु सोच रहे होंगे कि अच्छा भक्त मिला है न स्तुति करता है न पूजन कर रहा है। बस मुस्कुरा रहा है खड़ा-खड़ा। पर प्रभु मैं पढ़ा लिखा होता तो स्तुति अवश्य करता। मैं मूर्ख निरक्षर कहां से स्तुति करूं। इस प्रकार ध्रुवजी के मन में जहां यह संकल्प उठा तो भगवान भक्त की इच्छा को तुरंत पहचान गए। तो भगवान ध्रुव जी के कपोल में शंख स्पर्श करा दिया और जहां शंख स्पर्श हुआ ध्रुव जी को सारे वेद वेदांत कंठस्थ हो गए।
और यह भगवान ने प्रत्यक्ष दिखा दिया-

मुकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरीम।
यत्कृपा तमहं वंदे परमानंद माधवम्।।
मूक होइ वाचाल पंगु चढ़ै गिरिवर गहन।

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