एक बार सती और शिव कैलाश पर्वत पर बैठे हुए परस्पर वार्तालाप कर रहे थे। उसी समय आकाश मार्ग से कई विमान कनखल की ओर जाते हुए दिखाई पड़े। सती ने उन विमानों को देखकर भगवान शिव से पूछा, 'प्रभो, ये सभी विमान किसके है और कहां जा रहे हैं?
भगवान शिव ने बताया- देवि! आपके पिता ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया हैं। समस्त देवता और देवांगनाएं इन विमानों में बैठकर उसी यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए जा रहे हैं।'
इस पर सती ने दूसरा प्रश्न किया, क्या मेरे पिता ने आपको यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए नहीं बुलाया?
भगवान शंकर ने उत्तर दिया, आपके पिता मुझसे बैर रखते है, फिर वे मुझे क्यों बुलाने लगे?
सती मन ही मन सोचने लगीं, फिर बोलीं यज्ञ के इस अवसर पर अवश्य मेरी सभी बहनें आएंगी। उनसे मिले हुए बहुत दिन हो गए। यदि आपकी अनुमति हो, तो मैं भी अपने पिता के घर जाना चाहती हूं। यज्ञ में सम्मिलित हो लूंगी और बहनों से भी मिलने का सुअवसर मिलेगा।
भगवान शिव ने उत्तर दिया, इस समय वहां जाना उचित नहीं होगा। आपके पिता मुझसे बैर रखते हैं हो सकता हैं वे आपका भी अपमान करें। बिना बुलाए किसी के घर जाना उचित नहीं होता हैं। इस पर सती ने प्रश्न किया ऐसा क्यों?
भगवान शिव ने उत्तर दिया विवाहिता लड़की को बिना बुलाए पिता के घर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि विवाह हो जाने पर लड़की अपने पति की हो जाती हैं। पिता के घर से उसका संबंध टूट जाता हैं। लेकिन सती पीहर जाने के लिए हठ करती रहीं। अपनी बात बार-बार दोहराती रहीं।
उनकी इच्छा देखकर भगवान शिव ने पीहर जाने की अनुमति दे दी। साथ ही भगवान शिव ने नन्दी को भी जाने का आदेश दिया।
इस प्रकार माता सती नन्दी के साथ अपने पिता के यज्ञ में जा पहुंची। सबसे पहले वे अपनी माता से मिली ‘माता ने अपनी बेटी को ह्रदय से लगाया माता ने बेटी से अपने दामाद के न आने का कारण पूछा तो माता सती ने इस बात को अनसुना करते हुए पिता की ओर देखने लगीं पर प्रजापति दक्ष ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। देवि सती ने सोचा इतना काम होता है, कोई छोटा मोटा यज्ञ नहीं है।
तभी बहनों ने सूना की सती आई है मिलने पहुंची। हाल खबर पूंछा और फिर बोली शिव जी नहीं आए तभी दूसरी ने कहा पिता जी ने उन्हें बुलाया कहाँ है। एक ने कहा हाय हाय तो क्या तुम यहाँ बिना बुलावे के आई हो। यह सुनकर माता सती को बड़ा दुःख हुआ की मेरे स्वामी ने मुझे यहाँ नहीं आने को बार बार कहा पर मैं यहां उनके न कहने के बाद भी आई। यह सोचते हुए देवी सती यज्ञ मंडप में जा पहुंची पर जब उन्होंने वहां शिव जी के स्थान को न देखा तो क्रोधित होकर बोलीं।
हे! यज्ञ के सहभागी देवताओं और ऋषियों, सुनो! यह यज्ञ शिव द्रोही दक्ष के द्वारा किया जा रहा है। यहाँ पर मेरा और मेरे स्वामी शिव के अपमान के लिए आप सभी जिम्मेवार हो। शिव द्रोही के इस यज्ञ में आप सब लोगों ने सहकार्य दिया। आप सब को शिव द्रोह के इस अपराध का दण्ड शीघ्र मिलेगा। मैं शिव द्रोही पुत्री के रूप में जीवित नहीं रहना चाहती।
अस कही योग अगनि तनु जारा।
भयऊ सकल मख हा हा कारा।।
जगदंबा भवानी ने अपना शरीर योगाग्नि में जलाकर भस्म कर दिया। सारे जगत में हाहाकार मच गया, शिव गण दौड़े भगवान शिव के पास आए। जब शिव को पता चला तो साम्ब विलोचन लाल हो गए, जटा तोड़ी पछाड़ी शिला पर और वीरभद्र नाम का एक गण प्रकट हुए।
वीरभद्र को आज्ञा दी और वीरभद्र शिवगणों के सैन्य को लेकर आए और दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर दिया देवताओं की पिटाई की तो देवता भागे, दक्ष के सर को काट कर के उसको अग्निकुंड में डाल दिया भृगु महाराज की दाढ़ी खींच ली, पूखा के दांत तोड़ दिए सब को दंड मिला, दक्ष मारे गए यज्ञ का विध्वंस हो गया।
भगवान के अनुग्रह के बगैर यज्ञ पूरे नहीं हो सकते पर जब तक हम पूर्वग्रह से युक्त हैं तब तक अनुग्रह उपरांत उतरता नहीं इसलिए यज्ञ करने से पहले अनुग्रह के लायक बनो दक्ष प्रजापति मारे गए। देवता सब भागे ब्रह्मा जी के पास ब्रह्मा जी को सारी बात बताई।
ब्रह्मा जी ने कहा- जो हुआ सो ठीक हुआ है, क्यों गए थे वहां?.. निमंत्रण मिले तो कहीं भी पहुंच जाते हो इसका विवेक तो होना चाहिए। क्यों बुला रहा है, कौन बुला रहा है, कहां बुला रहा है। तुम लोगों ने शिवजी का अपमान किया उनका अपराध किया जाओ शिव जी से क्षमा मांगो और ब्रह्मा जी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से क्षमा मांगी।
भजन
इस प्रकार भगवान शिव की स्तुति कि भगवान आशुतोष प्रसन्न हुए दक्ष प्रजापति के धड़ के साथ बकरे का मस्तक लगाया गया और शिव शक्ति के द्वारा वह जीवित हो उठे ‘तब दक्ष प्रजापति’ शिवजी भगवान मृत्युंजय की महिमा को समझ सके और भगवान भोलेनाथ की स्तुति की। लेकिन बकरे की भाषा में मस्तक बकरे का है ना, जब मनुष्य का माथा था तब नहीं आई स्तुति। अब जब बकरे का माथा आया तब उनकी क्वालिटी बढ़ी।
इसलिए हमारे यहां आज भी भगवान शिव की आराधना करते समय गाल बजाने और ताली बजाने का नियम है। इससे भगवान भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं। सभी देवताओं के अंग पुनः प्राप्त हुए दोबारा यज्ञ की तैयारी हुई जैसे ही पूर्ण आहूति होम किया गया। वहां पर भगवान विष्णु प्रगट हो गए सब ने प्रणाम किया और भगवान विष्णु ने दक्ष को समझाया।
हे दक्ष! मुझमें ब्रम्हा में और शिव में कोई भेद नहीं है, हम तीनों में जो भेद रखता है वह मुझे प्रिय नहीं है। ध्यान दें वैष्णव शैव और शाक्त यह सब नाम के अलग-अलग संप्रदाय हैं अपने-अपने इष्ट को मानते हैं पर में भेद नहीं है। जिस स्वरूप में आपको अनुराग हो, आप उसको अपना इष्ट मानते हुए भजन अवश्य करें। लेकिन वंदन सबको करें किसी भी देवता का विरोध ना करें, वही वैष्णव है, वही शाक्त हैं, वही शैव्य है। इस प्रकार मैना के गर्भ से माता पार्वती जिनके पर्वतराज हिमालय पिता है पार्वती जी ने भगवान शिव की आराधना कर शिव को पति रूप में प्राप्त किया। हे विदुर जी! इस प्रकार मैंने आपको आकूति, देवहूति और प्रसूति जो मनु की कन्याएं हैं, उनका वंश सुनाया।
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