गुरुवार, 4 जनवरी 2018

सती प्रसंग 38

भगवान कपिल माता को प्रणाम कर चले गए। मैंने आपको बताया था, कि स्वयंभू मनु की तीन पुत्रियां हैं यह धर्म के वंश का व्याख्यान चल रहा है। आकूति, देवहूती और प्रसूति। देवहूति माता का वंश आगे नहीं चला क्योंकि एक पुत्र हुआ था और वह भी ब्रह्मचारी हो चला।

इनकी दूसरी पुत्री का नाम है आकूति यह रुची नाम के प्रजापति की पत्नी बनी और यज्ञ भगवान का प्राकट्य हुआ। तीसरी बेटी प्रसूति दक्ष प्रजापति की पत्नी बनी और उनके घर जिन कन्याओं का जन्म हुआ उसमें माता सती का नाम बहुत ऊंचा है। और माता सती भगवान शिव की भार्या बनी।

इनमें बुद्धि तत्व ज्यादा है, प्रजापति दक्ष की पुत्री बन कर आई थी ना इसलिए। तो इसका थोड़ा बहुत असर तो रहा। माता सती ने जानकी का रूप धारण करके भगवान राम की परीक्षा ली ऐसी कथा आती है। एक बार ब्रह्मा जी ने दक्ष को प्रजापतियों का राजा बना दिया।

यहां पर थोड़ा ध्यान दें भागवत जी में 12 स्कंध है जिसमें-
प्रथम स्कंध- दायां चरण है भगवान का।
द्वितीय स्कंध- बायां चरण है।
तृतीय स्कंध- दाएं भुजा है।
चौथा स्कंद- बाई भुजा है।
विसर्ग का अर्थ होता है विशेष सर्जन, दाल और चावल यह सर्ग है। पर इसमें हम जब विशेष प्रकृतियां करते हैं तब यह खिचड़ी बन जाता है। इसी खिचड़ी को विसर्ग कहते है। यहां पर मैत्रेय मुनि और विदुर जी का संवाद चल रहा है। तो चतुर्थ स्कंध में हम प्रवेश कर चुके हैं।

चतुर्थ स्कंध में प्रमुख चार प्रकरण है-
1. धर्म प्रकरण 2. अर्थ प्रकरण 3. काम प्रकरण और 4. मोक्ष प्रकरण।

धर्म प्रकरण में दक्ष की कथा आती है।
अर्थ प्रकरण में ध्रुव की कथा आती है।
काम प्रकरण में प्रभु चरित्र की कथा आती है।
मोक्ष प्रकरण में राजा प्राचीनवर्ही की कथा है।

तो जब ब्रह्मा जी ने दक्ष को प्रजापति का नायक बनाया तो दक्ष को बड़ा अभिमान हो गया।
बड़ अधिकार दक्ष जब पावा।
अति अभिमान हृदयँ तब आवा।।

दक्ष प्रजापति ने एक बार सभा बुलाई जिसमें सभी देवता उपस्थित हुए। वहां पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव और इंद्रादि सभी देवता वहां पर पधारे।

सभी को उचित स्थान दिया गया। दक्ष प्रजापति का ऊंचा सिंहासन सजा हुआ था। वहां सभी आमंत्रित थे, बस इंतज़ार था महाराज दक्ष का। तभी आगमन हुआ, सभी सभासद खड़े होकर के दक्ष प्रजापति का स्वागत करते हैं।

भगवान विष्णु ने सोचा ये तो हमारा नाती है हम क्यूँ खड़े हों, और ब्रह्मा जी ने सोचा यह तो हमारा बेटा है, तो हम खड़े नहीं होंगे। पास में ही बैठे शिव जी ने सोचा ये तो हमारे ससुर जी हैं तो हम भी खड़े नहीं होंगे। इस प्रकार दक्ष प्रजापति सब का अभिवादन स्वीकार करते हुए भगवान विष्णु को प्रणाम करते हैं, ब्रह्मा जी को प्रणाम करते हैं।
जब दक्ष प्रजापति शिव जी के पास पहुंचे। उन्होंने न तो शिव जी को देखा और न शिव जी के द्वारा दिए अभिवादन को स्वीकार किया। इस प्रकार दक्ष प्रजापति अपने आसन पर आसीन हुए।

सबसे पहले सभी सभासदों का स्वागत किया। इसके पश्चात कार्य की रूप रेखा बताते हुए बोले- हमारा समाज शिक्षित और बुद्धिजीवियों का समाज है। मनुष्य जब धर्म करता है तब देवता पुष्ट होते हैं और जब देवता पुष्ट होते हैं तब संसार के अनेक कार्य सिद्ध होते हैं। हमारे समाज का एक रहन सहन है, एक अनुशासन है। हम चाहते हैं मनुष्य जो धर्म कार्य करता है, जो यज्ञ करता है उसमें संस्कारी और अनुशासन में रहने वाले सभी देवताओं को भाग मिले। उन्हें नहीं, जिन्हें न तो समाज के तौर तरीकों का पता है और न संस्कार का।

रहते कहाँ हैं?. कैलाश में। पहनावा क्या है?. मृग चर्म। आभूषण क्या हैं?. सर्प और बिच्छू। सेवक कौन?. भूत-प्रेत। जिन्हें यह नहीं पता की हमें कैसे स्थान पर बैठना चाहिए, किससे हम बराबरी कर रहे हैं। कब किसका कैसे सम्मान करना चाहिए। भला ऐसे देवता को हमारे समाज की क्या आवश्यकता है।

इन्हें यज्ञ का भाग किस प्रयोजन से दिया जाए। इसलिए हमारा निर्णय है की यज्ञ में सभी देवताओं का स्थान रहेगा। परंतु हम शिव को यज्ञ में कोई स्थान नहीं देना चाहते। सभी देवताओं का स्थान बांटा गया इंद्र का स्थान, ब्रह्मा जी का स्थान, भगवान विष्णु का स्थान, देवी देवताओं का स्थान, अग्नि का, वायु का, वरुण का सबका स्थान बताया गया लेकिन वहां पर दक्ष प्रजापति ने कहा कि हमारी सभा में कुछ ऐसे भी उजड़ और जंगली लोग आए हुए हैं।

ऐसे व्यक्ति का इस यज्ञ में कोई स्थान नहीं। इस प्रकार भगवान शिव को अपमानित करते हुए प्रजापति दक्ष ने कड़वे वचन कहे। भगवान शिव अपने स्थान से उठकर के कैलाश की ओर चले गए। यहां पर भगवान विष्णु ने प्रजापति दक्ष से कहा कि आपको ऐसा नहीं करना था वह शिव हैं शिव को आपने अपमानित किया है।

भगवान श्री राम ने बताया और तुलसी बाबा लिखते हैं-
शिव द्रोही मम दास कहावा।
सो नर मोहि सपनेहु नहीं भावा।।

समय व्यतीत हुआ एक दिन प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सभी देवी देवता सज सँवर के अपने-अपने विमानों में बैठकर कैलाश मार्ग होते हुए हरिद्वार के कनखल में पहुँचने लगे।

समाज में कुछ लोग होते हैं जो निमंत्रण आने पर यह विचार बिल्कुल भी नहीं करते की हमारा निमंत्रण जहाँ से आया है। वह स्थान हमारे जाने योग्य है भी या नहीं। बस निमंत्रण आया नहीं के लोटा लेकर चल दिए। सभी देवता आए पर भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी नहीं पहुंचे।

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