इधर जब महाराज परीक्षित राजा बने तो विचार किया कि प्रजा की स्थिति क्या है? यह देखने के लिए हमें स्वयं जाना चाहिए।
रथ में सवार हो कुछ बड़े-बूढ़े मंत्रियों को साथ लिया और चल पड़े महाराज जहां जाते हैं वहां अपने पूर्वजों की प्रशंसा पाते हैं। प्रजाजन कहते हैं- महाराज परीक्षित! आप बड़े भाग्यशाली हैं। आपके पितामह अर्जुन के, कन्हैया स्वयं सारथी थे। उनके संदेश वाहक दूत भी थे। अरे न जाने कितने नाते हैं कन्हैया से। यह सुनकर के राजा परीक्षित बड़े मुग्ध होते हैं।
अचानक आगे चलकर परीक्षित ने एक अटपटा सा दृश्य देखा। एक काला कलूटा पुरुष एक गाय बैल के जोड़े को बांधकर, पीटते हुए ले जा रहा था। यह देख परीक्षित क्रोधित हुए कि अभी-अभी मेरे पूज्य श्री कृष्ण अपने स्वधाम गए और उनकी प्रिय गायों को यह दुष्ट पीट रहा है। राजा ने देखा की जो बैल है उसके तीन पैर टूटे हैं वह चलने में असमर्थ है और जो गाय है वह बैल के इस अवस्था से दु:खी है। यह बैल कौन है? और गाय कौन हैं?
तो सूत जी कहते हैं- यह गाय पृथ्वी है, और बैल धर्म का रूप है। सतयुग में धर्म के चार पैर थे आज कलियुग में सिर्फ एक ही पैर बचा है। धर्म के चार पैर कौन से हैं? तप, पवित्रता, दया और सत्य अब कलियुग में धर्म सिर्फ एक ही पैर में रह गया है। वह है सत्य, और सत्य क्या है? सत्य है “मृत्यु”। धर्म पृथ्वी से कहता है मां तुम शायद इसलिए दुखी हो कि गोविंद ने हमारा और आपका परित्याग कर दिया या फिर इसलिए दु:खी हैं कि इस पापी पुरुष ने मेरे तीन पैर तोड़ दिए। परीक्षित उनके इस संवाद को सुन उनके पास पहुंचे और बोले आप लोगों का वार्तालाप सुनकर ऐसा लगता है, जैसे आप कोई सामान्य गाय, बछड़े नहीं हो, कोई दिव्य विशिष्ट महापुरुष हैं।
कृपया करके अपना परिचय दें, आप कौन है? यह दुष्ट जो अकारण ही आपको पीड़ा पहुंचा रहा है। लेकिन बछड़े ने एक शब्द से भी उस पापी पुरुष की निंदा नहीं की, परन्तु कुछ क्षण में ही, महाराज परीक्षित पहचान गए। हो ना हो महाराज मुझे इस बछड़े में साक्षात धर्म देव का दर्शन हो रहा है और इस को माता के रूप में मुझे भू-देवी का दर्शन हो रहा है।
मतलब धर्म बछड़ा और पृथ्वी गौ माता का रूप धर के भगवान के वियोग में विलाप रहे हैं। पर यह दुष्ट आत्मा कौन है? यह मेरी समझ में नहीं आया। तभी उस काले पुरुष को पकड़ लिया और बोले- मेरे होते हुए यह कार्य नहीं होगा और इस तरह कहते हुए अपनी म्यान से तलवार निकालकर उस काले पुरुष को मारने को हुए, तभी वह काला पुरुष राजा परीक्षित के चरणों में आ गिरा।
वह काला पुरुष बोला- हे राजन मैं कलियुग हूं! भगवान श्री कृष्ण के स्वधाम जाते ही यह समय मेरे आधीन है जब तक भगवान श्री कृष्ण थे मैं विलुप्त था लेकिन अब यह समय मेरा है। मैं जानता हूं, आप पांडवों के वंशज राजा परीक्षित हैं। आप इस मृत्युलोक के राजा हैं, मैं आपकी शरण में हूँ; आप ही मुझे कोई स्थान दें।
यह सुनकर राजा परीक्षित बोले- मैं तुम्हें इस पृथ्वी में स्थान क्यों दूं? तुम में वह कौन सा गुण है, जिससे मैं तुम्हें यहां स्थान दूं? तब कलियुग बोला- महाराज! कलियुग में जो मनुष्य परमात्मा का भजन संकीर्तन करेगा, उसे परमात्मा की प्राप्ति अर्थात उसकी सद्गति होगी। वह जीवात्मा जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाएगा।
यह सुनकर राजा परीक्षित प्रसन्न हुए और बोले- तुममें यह सुंदर गुण है इसलिए तुम इन चार स्थानों में निवास करो।
अभ्यर्थितस्तदा तस्मै स्थानानि कलये ददौ।
द्यूतं पानं स्त्रियः सूना यत्रा धर्मश्चतुर्विधः।।
यह चार स्थान मैं तुम्हें देता हूं, इन चार स्थानों में अधर्म रहता है वहां पर तुम भी रहो। तुम्हारा पहला स्थान है, द्यूतं-अर्थात जहाँ जुआ-सट्टा जैसे खेल कर्म होते हैं, वहां तुम्हारा स्थान है। ठीक है महाराज! तुम्हारा दूसरा स्थान है, पानं- जहां मदिरा, शराब का पान किया जाता है। वहां तुम्हारा स्थान है। जी महाराज! तुम्हारा तीसरा स्थान है, स्त्रि:- जहां पर पराई स्त्री से क्रीड़ा हास्य परिहास किया जाता हो। अर्थात जहां व्यक्ति पराई स्त्री का संग करें। वह तुम्हारा निवास स्थान है। ठीक है महाराज! और चौथा स्थान तुम्हारा है, सूना- सूना कहते हैं अहिंसा को, जहां पशु पक्षियों पर हिंसात्मक अत्याचार हो। वह तुम्हारा चौथा निवास स्थान है।
कलि फिर परीक्षित के चरणों में गिर पड़ा, महाराज- वैसे तो कहने को आपने मुझे चार स्थान दिए हैं, पर आपके राज्य में तो मुझे यह चारों स्थान दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते तो रहूंगा कहां।
द्यूतं, पानं, स्त्री:, सूना इन चारों का तो यहां अभाव है। महाराज! जब मेरा गुण इतना सुंदर है, तो एक सुंदर सा कोई स्थान भी आप मुझे दें। परीक्षित बोले- अच्छा तो मांगो कौन सा सुंदर स्थान तुम्हें चाहिए, तुम कहां रहना चाहते हो।
तब याचना करने लगा महाराज मुझे सिर्फ स्वर्ण में निवास और दे दीजिए। सोने में?.. बोला हां महाराज! मेरा गुण भी तो सोने जैसा है। परीक्षित बोले “तथास्तु” जाओ हमने तुम्हें स्वर्ण में भी स्थान दिया अब कल्लूराम तो बड़े प्रसन्न हुए, महाराज अब मेरा निर्वाह हो जाएगा। राजा परीक्षित गौ माता को प्रणाम करके बोले अब आप चिंता मत करिए मेरे रहते आप पर कोई संकट नहीं आएगी।
।।बोल भक्त वत्सल भगवान की जय।।
Sunder katha aap ke madhyam se hame padhane ko mili .. aap ko koti.. koti Dhanyawad.... Ram krushna Hari...
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