यह
सुनकर..
भगवान बोले बुआजी आखिर
आप चाहती क्या हो, जो
आज इतना बखान, गुणगान
कर रही हो।कुन्ती
बोलीं- कन्हैया
मैं आज तुमसे एक वरदान चाहती
हूँ। भगवान
बोले! बुआजी
वो तो आप ऐसे ही मांगलो उसमे
इतना स्तुती करने की ज़रूरत
क्या है? तब
कुन्ती महरानी ने अपना मनोरथ
प्रकट किया, वरदान
मांगा और वरदान क्या मांगा;
ऐसा वरदान
मांगा के इतिहास में आजतक किसी
ने ऐसी मांग नहीं की और ग कोई
मागेगा भी नहीं।
महारानी
कुन्ती कहती हैं-
विपदः
सन्तु नः शश्वत तत्र तत्र
जगतगुरो। भवतो दर्शनं
यत्स्याद्पुनभवदर्शनम्॥
हे गोविन्द
मैं तो एक ही वरदान मांगती
हूँ कि जबतक मेरा जीवन है तब
तक मुझे दुःख और विपत्ती ही
मिले । यह सुनकर सब चौके। भगवान
बोले माता जी यह आप क्या मांग
रही हो ? अबतक
आपको इतने संकटों का सामना
करना पड़ा फिर भी आप इन संकटों
से दूर नहीं भागती, जो
कहती हो कि जब तक जीवन रहे मुझे
संकट मिलता रहे। क्या मिलेगा
इन संकटों से आपको।
माता कुन्ती
बोलीं- तुम।
हां तुम कन्हैया, मैं
जबभी संकटों से घिरती हूँ मुझे
आपका सहयोग प्राप्त होजाता
है, बस
मैं आपका यह साथ नहीं छोड़ना
चाहती। मैं तो बस यही चाहती
हूँ की बार बार इसी प्रकार
संकट पड़ते रहें और तु द्वारका
छोड़ मेरे पास आते रहो। मैं
सुखी रहूगी, सम्पन्न
रहूँगी तो तुम मेरे पास नहीं
रहोगे जैसे आज मैं सुखी हो गई
और तुम मुझे छोड़कर चलदिये।
इसलिए मुझे वह दुःख, वह
विपत्ती मेरे साथ रहे यही मैं
चाहती हुँ। मैं दुखी रहूँ तो
रहूँ पर उस समय तुम तो मेरे
साथ रहोगे और यही मैं चाहती
हूँ।
इसलिए मैं
सुख नहीं तुम्हे पाना चाहती
हुँ; कन्हैया
जो सम्पत्ति आपसे दूर करदे,
वह सम्पत्ति
मुझे नहीं चाहिए। मुझे तो वह
विपत्ति स्वीकार है जिसके
आने से आप मिल जाते हो।
अब कहिए!
कौन होगाअ
ऐसा प्राणी जो भगवान से विपत्ति
का बरदान मांगे। हम जोज सुबह,
सायम दो अगरबत्ती
जलाकर कहते है- "सुख
संपत्तिघर आवे कष्ट मिले
तनका"।
लेकिन भक्तों की नजर में विपत्ती
और संपत्ती का रूप ही अलग है
संपत्ती किसे कहते है। विपत्ती
क्या है? "विपदो
नैव विपदः संपदो नैइव संपदा"
विपत्ती-विपत्ती
नहीं संपत्ती-संपत्ती
नहीं। तो विपत्ती और संपत्ती
की परिभाषा क्या है?
"विपद
विष्मरणं विष्णुः संपन्नारायणास्मृतिः"
भगवान विष्णु
का विस्मरण ही विपत्ती है और
भगवान की स्मृति ही सबसे बड़ी
संपत्ती है। भक्तजनों की यही
विपत्ती संपत्ती की परिभाषा
है। एक बार जब लंका से लौटकर
जब हनुमन्त लालजी आये तो रामजी
ने पूंछा- हनुमन्त
यह बताओ की वाटिका में सीता
जी कि क्या स्थिती है;
उन्हें कोई
कष्ट तो नहीं वहां पर। हनुमान
जी बोले- प्रभू
वहां पर कोई और कष्ट तो नहीं
है पर.... एक
विपत्ती यदा कदा उनके जीवन
में आजाती है।
"क्या विपत्ती
है"? हनुमानजी
ने यहां पर विपत्ती की परिभाषा
ही बदल दी है।
कह हनुमन्त
विपति प्रभू सोई, जब-तब
सुमिरन भजन न होई। हनुमान
जी ने भी वही कहा की राक्षसों
के आतंक फैलाने पर यदा-कदा
आपके भजन में विघ्न आ जाता है।
बस माता सीता के जीवन में यही
एक बड़ी विपत्ती है, आपका
सुमिरन करने को नहीं मिलता।हनुमान
जी ने भी वही कहा की राक्षसों
के आतंक फैलाने पर यदा-कदा
आपके भजन में विघ्न आ जाता है;
भगवान के
सुमिरण में व्यवधान ही विपत्ती
है। भक्तजन सांसारिक कष्टों
को व्यवधान नहीं मानते। भक्ति
भजन में व्यवधान ही भक्त के
लिए सबसे बड़ी विपत्ती है।
महारानी कुन्ती
कहती हैं- दुनिया
की संकट बनी रहे आप हमें याद
आते रहें, आप
हमारे पास आते रहे सभी संकटों
से बचाते रहें; बस
यही हमारी कामना है। भगवान
बोले बुआ जी- आखिर
आपका उद्देश्य क्या है?
आप कहना क्या
चाहती हैं भला मैं आपको विपत्ती
का बरदान कैसे देसकता हूँ।
बुआ कुन्ती
बोलीं- कन्हैया
मैं आज तुम्हे बिदा नहीं करना
चाहती। कन्हैया बोले क्यूँ,
आज नहीं तो
कल जाना तो पड़ेगा। हमेसा आपके
यहां नहीं रह सकता। भला एक दिन
के रुकने से क्या होगा। अब
माहौल बन गया है सब लोग विदा
कर ही रहे है और अचानक रुक जाएं
वह भी तो अच्छा नहीं लगता।
कुन्ती बोली-
मैं तुम्हें
अपनी इच्छा के लिए नहीं रोक
रही हूँ, मैं
तो इसलिए रोकरही हूँ कि ठीक
जाते समय विदा होते समय एक
अपसगुअन हो गया। एक विधवा
स्त्री आपके सामने रोती विलखती
हुई आयी। यह अपसकुन आपकी यात्रा
में अमंगल न करदे रुक जाईये
दो चार दिन फ़िर चले जाना। भगवान
मुस्कुराए और बोले- ठीक
है बुआ जी अब आप प्रेम से जब
विदा करेंगी तब जाऐगे।यह सुनकर
चारो ओर प्रसन्नता फैल गई,
जय जयकार गूँज
उठी। बोल द्वारिका नाथ की....
बहुत ही सुन्दर व प्रेरणास्पद प्रसंग
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। आपकी मेहनत हमें मार्गदर्शन कर रही है।
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