शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

प्रथम स्कन्ध : अश्वत्थामा को दण्ड​ (16)

अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा ये तीनो एक वृक्ष के नीचे छिपे थे, देखा की पाण्डव अपने शिविर की ओर चले गये हैं, तो निकलकर दुर्योधन के पास आये। अश्वत्थामा ने कहा- मित्र दुर्योधन आज तुम्हारी यह दशा देख कर मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है। मुझे तुमने अपना सेनापती स्वीकार नहीं किया। यदि तुमने मुझे सेनापती बेना दिया होता तो आज तुम्हारी यह दसा नहीं होती।

दुर्योधन ने कहा जो होना था वह हो गया, अब तुम मेरे लिये क्या कर सकते हो वह बताओ। अश्वत्थामा बोला- बोलो तुम्हारी अन्तिम इच्छा क्या है। मैं तुम्हारी वह इच्छा पूरी करके तुम्हे संतुष्ट करना चाहता हूँ।दुर्योधन ने कहा- मित्र! तुम्हे क्या बताऊं अपनी पीड़ा, हम सौ भाई थे जिनमें से एक भी नहीं बच पाये और वो पांच थे और अभी तक वे जीवित हैं। यही सबसे बड़ा कष्ट है, पांच न सही कोई एक तो मरता। बस यही मेरा अन्तिम मनोरथ है। जो व्यक्ती जीवित  समय में भी दुष्ट बुद्धी रखता हो वह अन्तिम समय में कैसे सुधर सकता है। मृत्यु शय्या पर लेटा है और अन्तिम मनोरथ क्या है?... कि पांच में से कोई एक मरे।

अश्वत्थामा ने कहा- मित्र तुम चिन्ता मत करो, मैं तुम्हारी अन्तिम इच्छा अवश्य पूर्ण करुँगा। तुम एक की बात करते हो मैं अभी पांचों का मस्तक काटकर लाता हूँ। यह सुन दुर्योधन ने अपने रक्त से अश्वत्थामा का तिलक किया और जाने का आदेश दिया। इस प्रकार अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य दुर्योधन को वहां छोड़कर पाण्डवों के शिविर कि ओर चल पड़े। पर अभी आकाश में प्रकाश विद्यमान था, इसलिए आक्रमण करने के लिए सही समय का इन्तज़ार करने लगे।

यहां शिविर में एकत्रित सभी पाण्डव प्रसन्न थे और जिसके साथ परमात्मा हाथ हो उसका अहित कैसे हो सकता है। भगवान श्रीकृष्ण ने सभी से विजय पर्व मनाने के लिए अपने शिविर ले गये और दूसरी ओर द्रोपदी अपने बच्चों को पाण्डवों के कक्ष में ही सुला दिया। 

इधर अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा एक पीपल वृक्ष के नीचे छिपकर योजना बना रहे थे की तभी उन्हों एक घटना देखी। जिस पीपल के वृक्ष में रात्री विश्राम के लिए बहुत से कौए ठहरे थे। वहीं अचानक एक बाज़ उनपर आक्रमण कर पूरे वृक्ष का अकेला अधिकारी बन गया। यह योजना अश्वत्थामा के दिमाग में फिट हो गई। योजना बताते हुए अश्वत्थामा ने कहा- शिविर की रोशनी कम होते ही हम पाण्डवों के शिविर में घुसकर उनका बध करदेंगे और इस प्रकार देर रात्री होने पर अश्वत्थामा अपने साथियों के साथ मिलकर पाण्डवों के शिविर में जाकर अंधेरे में ही उन मासूम बच्चों को पाण्डव जानकर मार दिया।

शीघ्रता पूर्वक यह समाचार देने दुर्योधन के पास पहुँचा। की उसने पाण्डवोंका बध कर दिया, तब तक दुर्योधन के प्राण पखेरू उड़ गये। समय बहुत बली है, वह अपनी ही करता है, आप उसे बदलने का कितना भी प्रयास करलो वही होगा जो पूर्व से निर्धारित है।

भोर का समय हुआ, वातावरण शान्त आज पक्षियों की वह ध्वनी कलरव नहीं कर रही सूर्य भी थोड़े थके से नजर आते हैं। सबेरा हुआ जानकर द्रोपती उठीं कारण की आज उन्हे बहुत से कार्य संम्पन्न करने हैं बच्चों को तय्यार करना है। महल की ओर प्रस्थान भी करना होगा। उठते ही सबसे पहले बच्चों को जगाने के लिए चल पड़ीं। आंखें अभी ठीक से प्रकाश के कारण रास्ता देख नहीं पारही थी। फिर भी सम्हलते हुए दोपती पाण्डवों के उस सिविर में पहुँची जहाँ आज बच्चे सो रहे थे। जाकर देखा तो होस उड़गये, पूरा सिविर रक्त रंजित था। अपने बच्चों का शव देख वह माता की चीख पूरे कुरुक्षेत्र में व्याप्त हो गया। धीरे धीरे वहाँ लोग एकत्रित होने लगे। तभी श्रीकृष्ण पाण्डवों के साथ घटना स्थल पर पहुँचे।

बच्चों के शवों को देख सब दु:खी हैं, आज खुशी का वह दिन दुःख में परिवर्तित हो गया। अपनी पत्नी द्रोपती के रूदन को देख अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली, हे द्रोपती! मैं प्रतिज्ञा लेता हूँ की तुम्हारे इन 5 पुत्रों के हत्यारे को जीवित नहीं छोड़ुगा। तब श्रीकृष्ण ने बताया अर्जुन यह कार्य दुष्ट, आतताई अश्वत्थामा का है, इतना सुनते ही अर्जुन कन्हैया के साथ रथ में सवार हो अश्वत्थामा की ओर​ निकल पड़े। जब अश्वत्थामा को इस बात का पता चला की पाण्डव अभी जीवित हैं "अर्थात" मैंने उन पाण्डवो के बच्चों का बध कर दिया और अर्जुन ने मुझे मारने की प्रतिज्ञा ली है, वह भी घबराकर​ वन में छिपता हुआ भागने लगा। तभी अर्जुन ने तीर कमान में चड़ाकर अश्वत्थामा को लक्ष बनाकर छोड़ा, वह तीर अश्वत्थामा को छूता हुआ निकला। अश्वत्थामा आहत हो भूमि में गिर पड़ा। तभी अर्जुन ने उसे बन्धक बनाकर अपने रथ की ओर चलपड़े, यह देख कन्हैया बोले- अर्जुन​! इसे कहाँ ले जा रहे हो इसी समय इसका बध करदो। 

अर्जुन बोले- कन्हैया! अवश्य ही मैं इसका बध करूँगा। पर इसे मै द्रोपती के सामने मारूँगा मैंने उसे बचन दिया है। लेकर चल पड़े अर्जुन रस्सियों से बंधे अश्वत्थामा को द्रोपती से सामने खड़ा कर दिया। और अर्जुन बोले- लो द्रुपद सुता यह है तुम्हारे पुत्रों का हत्यारा बोलो क्या किया जाये इसके साथ। द्रोपती ने देखा अश्वत्थामा बन्धनावस्था में मस्तक झुका हुआ है।

अब देखो उसका मस्तक झुका है क्यों ? उसने ऐसा निन्दित कर्म किया है। यह कोई वीरता नहीं  की सोते हुए की हत्या करदे। ये तो हत्यारा है। सोये हुए को मारना कयरता है। बच्चों की हत्या कि है इसलिए मस्तक झुका है। 

देखा द्रोपती ने अपराधी है, पर गुरु पुत्र है। 

"वामास्वभावा कृपया ननाम च​"
द्रोपती ने गुरुपुत्र के चरणों में वंदन किया। बैरी वंदन कर रही हैं, यह देख सब स्तब्ध रह गये। तब दोपती बोली- 
उवाच चासहन्त्यस्य बन्धनानयनं सती। 
मुच्यतां मुच्यतामेस ब्राह्मणो नियतां गुरुः॥

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