शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

ध्रुव जी का राजनीतिक 45

एक बार भगवान भोलेनाथ पार्वती जी को साथ लेकर नंदी पर सवार होकर संसार में घूमने के लिए निकले। जब एक गांव में पहुंचे, तो शिवजी के उस रूप को देखकर लोग आपस में कानाफूसी करने लगे। बताओ इनको शर्म भी नहीं आती एक बेचारा बैल! और दो-दो उस पर सवार विचारा दबा जा रहा है।

शिव जी बोले- देखो देवी! यह क्या बोल रहे हैं। एक काम करो आप बैठी रहो हम पैदल ही चलते हैं। ठीक है महाराज! आप ही की इच्छा। दूसरे गांव से निकले तो लोग फिर कानाफूसी करने लगे। राम-राम इस देवी को तो देखो शर्म नहीं आती, विचारा बूढ़ा बाबा पीछे पैदल चल रहा है और खुद बैल पर बैठी है। अब पार्वती जी बोली- देखो महाराज! यह लोग क्या बोल रहे हैं। आप ही बैठ जाइए मैं पैदल चलती हूं। ठीक है महारानी, ऐसा ही कर लेते हैं।

अगले गांव में पहुंचे तो लोग बोले देखो-देखो इस बूढ़े को शर्म नहीं आती। बुढ़िया बिचारी पैदल चल रही है और खुद बैल पर बैठा मजा ले रहा है। शिवजी बोले- देवी! अब क्या करें, चलो हम भी पैदल चलते हैं। शिवजी और पार्वती जी जब नादिया को पैदल ही लेकर चल पड़े। अगले गांव से निकली तो गांव वाले फिर बोले! देखो-देखो कैसे बुद्धू है? सवारी साथ में है, फिर भी पैदल चल रहे हैं। अब शिव जी ने माथा पकड़ा हे भगवान ऐसी दुनिया से तो राम बचाए।

महाराज किसी भी स्थिति में यह दुनिया वाले आपको नहीं छोड़ेंगे। आप नम्रता से प्रणाम करो तो कहेंगे कायर है। शीना तान के चले, तो कहेंगे अभिमानी है। खूब काम करो, तो वह पागल है। काम ना करो, तो कामचोर है। छोड़ेंगे नहीं किसी को इसलिए दुनिया वालों को समझाना प्रसन्न करना असंभव है। जगदीश को रिझालो तो जगत अपने आप लिख जाएगा।

जापर कृपा राम के होई, ता पर कृपा करे सब कोई।।
ध्रुवजी ने गोविंद को रिझा लिया तो सौतेली मां भी हाथ जोड़ के खड़ी है। महाराज! सारी प्रजा ध्रुवजी के स्वागत में खड़ी है। ध्रुवजी महाराज ने अपने पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लिया इसके बाद अपनी सौतेली मां को प्रणाम किया सुरुचि का हृदय भर आया, ध्रुव जी को ह्रदय से लगा कर कहा बेटा तू सचमुच महान है। मेरे कारण घर छूटा और अपनी माँ से पहले तुमने मुझे ही प्रणाम किया। ध्रुवजी बोले- नहीं मां! बुरा मत मानो मैंने आपको ही सच्चा गुरु माना है, सोचता हूं यदि आपने मुझे कटू शब्द ना कहे होते तो मैं भगवान तक कैसे पहुंचता। आपकी वाणी का ही प्रताप है कि मैं प्रभु का दर्शन कर सका।

यह भक्तों की महानता है जब वह गोविंद का कृपापात्र बन जाता है तो वह मेरी किसी को नहीं मानता अब सुनीति मां के आनंद का पारा वार नहीं बुझी को बार-बार हृदय से लगाकर वात्सल्य रस से सींच रही थी। उत्तानपाद ने उसी समय ध्रुव को सम्राट घोषित कर दिया। चक्रवर्ती सम्राट महाराज ध्रुव बन गए और पिताजी वन में तपस्या करने चले गए। एक दिन ध्रुवजी के छोटे भाई उत्तम शिकार खेलने जंगल में गया। तो किसी अपने से झगड़ा हुआ तो यक्षों ने ही उसका वध कर दिया। बेटा की खोज में सुरुचि घर से भागी तो जंगल में लगी आग के लपेटे में समाप्त हो गई।

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