पहले हम मनु महाराज की बेटियों की चर्चा सुनते हैं, बाद में बेटों की। मनु महाराज की मध्यम पुत्री का नाम है देवहूती, जिनका विवाह कर्दम जी से हुआ। कर्दम जी ने तो पहले घोर तपस्या की, जब तपस्या से भगवान प्रसन्न हुए प्रगट हो करके बोले मागों क्या चाहिए। तो उन्होंने वर मांगा-
समान शीलां गृहमेधधेनुम्। 15|21|3
मुझे तो यह वरदान दीजिए प्रभु! कि मुझे एक सुंदर सी पत्नी मिल जाए। भगवान बड़ी जोर से हंसी और मुस्कुराकर बोले- आपने पत्नी की कामना से इतने वर्षों तक तपस्या की। मैं तो पहले से ही जानता था कि आपके मन में क्या है।
इसलिए-
विदित्वा तब चैत्यं मे, पुरैव समयोजि तत।।
अर्थात तुम्हारे मन की बात मुझे मालूम थी। इसलिए उसकी व्यवस्था मैंने पहले ही कर दी है। कर्दम जी चौके, मन में सोचा कैसी व्यवस्था बना आए महाराज! भगवान भोले तुम्हारी सगाई पक्की कर आए। कर्दम जी! मन में बड़े प्रसन्न पर ऊपर से शर्माए, अच्छा महाराज! सगाई पक्की हो गई? भगवान बोले बिल्कुल हमारे यहां देरी का काम बिल्कुल भी नहीं है।
अच्छा अब आपने बात पक्की करी है तो ठीक ही होगी, पर कहां की है यह भी तो पता चले। भगवान बोले- ऐसे-वैसे के यहां नहीं-
प्रजापतिसुत: सम्रान्मनुर्विराव्यात मंगल:।
प्रजापति ब्रह्मा के पुत्र सम्राट मनु की पुत्री है, जिनके साथ बात पक्की की गई है। कर्दमजी बोले- महाराज! तो सगाई पक्की हो गई, फिर तो शादी की तारीख भी पक्की हो गई होगी? कार्ड वगैरह भी छप गए होंगे। भगवान बोले- हां भाई! सब हो गया शादी में भी विलंब नहीं, परसों के दिन तुम्हारा विवाह हो जाएगा। परसों अपनी पुत्री के सहित यहां पर मनु महाराज आएंगे।
सुनकर कर्दम जी बड़े प्रसन्न हुए, पर ऊपर से मुंह लटका कर बोले- आपने शादी भी पक्की कर दी। पर भगवन! मैं तो शादी एक शर्त में करूंगा। भगवान बोले- कैसी शर्त? करदम जी ने कहा- मैं शादी तभी करूंगा जब आप मेरे घर बेटा बनकर आओ नहीं तो हम शादी नहीं करेंगे। भले ही आपने रिश्ता पक्का कर दिया हो। भगवान बोले देखो भाई ऐसा मत करो। तुम्हें शादी तो करनी ही पड़ेगी और रही बात बेटा की तो हम बेटा बनकर आ जाएंगे, चिंता मत करो।
इतना कहकर भगवान मुस्कुराए, जब मुस्कान प्रेम की हो तो अश्रु बहने ही लगते हैं। तो भगवान जब मुस्कुराए तो प्रेम के विंदू गिर पड़े और सरोवर में जा मिले, तब उस सरोवर का नाम बिंदु सरोवर पड़ा जो आज गुजरात में स्थित है। भगवान अंतर्धान हुए
अब कर्दम जी परसों की प्रतीक्षा में लग गए, कल बीता परसों आया महाराज मनु अपनी पत्नी के साथ पुत्री को लेकर पधारे देखते ही कर्दम जी खड़े हो गए। स्वागत किया आइए महाराज आपका स्वागत है। धन्य हुए भाग जो आज आपने मेरी कुटिया को पवित्र कर दिया। कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? मनु महाराज ने कहा- महाराज! परसों हमारे यहां नारद जी आए थे उन्होंने, आपका इतना बखान किया कि सुनते-सुनते मेरी बेटी ने आप को ही अपना पति बनाने का निर्णय कर लिया। इसलिए मैं अपनी बेटी को समर्पित करने आया हूं, कृपा कर इसे स्वीकार करें।
पर कर्दम जी ने कुछ जवाब नहीं दिया यह देखकर मनु महाराज घबराए कि कहीं महात्मा जी मना न कर दें। मनु महाराज बोले- मुनिवर! मैं जानता हूं कि आप तपस्वी हैं पर कन्या भी कोई कम नहीं, मैं आपको वचन देता हूं कि मेरी पुत्री आपके गृहस्थ आश्रम को धर्मानुकूल चलाएगी। यह सुनकर कर्दम जी बोले- महाराज भला मैंने विवाह करने से मना कब किया मैं विवाह अवश्य करूंगा। पर मेरी एक शर्त है। क्या शर्त है महाराज! आप जितना दहेज मांगोगे सब मिलेगा, कोई कमी थोड़ी है हमारे यहां।
कदम जी बोले- ना मुझे दहेज तो बिल्कुल भी नहीं चाहिए, मेरी नजर में तो जो दहेज लेता है वह नासमझ है। तो फिर शर्त क्या है महाराज। शर्त यह है, कि जिस दिन हमारे यहां एक संतान हो गई हम बाबा जी बन जाएंगे। अर्थात घर छोड़ कर जंगल चले जाएंगे। अब इस शर्त पर तुम्हारी बेटी हम से विवाह करती है तो ठीक है। मनु महाराज मुड़कर बेटी की ओर देखने लगे, इशारा किया बेटी चलो घर वापस तुम्हारा विवाह हम किसी राजकुमार से करा देंगे। तुम तो राजकुमारी हो यह बाबा फक्कड़ के चक्कर में क्यों पड़ती हो। शादी हुई नहीं और शर्त करते हैं कि एक संतान हुई तो हम घर त्याग देंगे। भला ऐसा भी कभी होता है क्या करोगी ऐसे बाबा से विवाह करके। पर बेटी ने सर हिलाया पिताजी मुझे इनकी शर्त भी स्वीकार है। शर्त कोई सा भी हो पर विवाह तो मैं इन्हीं के साथ करूंगी। ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी इच्छा। ब्रह्मा जी आए यहां पर कदम और देवहूति का विवाह हुआ। सभी ने मंगल आशीर्वाद दिया और अब कर्दम जी ने विचार किया कि भगवान की बड़ी कृपा हुई जो हमारा विवाह संपन्न हुआ।
इसलिए उन्हें भी धन्यवाद दे-दे बाबा कर्दम जी ने भगवान को धन्यवाद देते हुए जैसे ही आंखे बंद करीं कि बाबा जी की समाधि लग गई। कई वर्षों तक समाधी लगी रही। देवहूती महारानी ने इधर विवाह के जितने आभूषण थे सब उतारा और सन्यासिनी जैसा अपना भेष बनाया। धन्य माता देवहूति का धैर्य जरा सिद्धांत दो देखिए देवहूति का।
एक राजा की बेटी जिसके एक आदेश से हजारों दास-दासियां नौकर-चाकर दौड़ पढते थे। वह राजकुमारी अपने महात्मा पति के साथ किस प्रकार निर्वाह कर रही है। इस प्रकार माता देवहूति अपने पति की सेवा कर रही हैं और महाराज कर्दम तपस्या में लीन है। हजारों वर्ष बीत गए तब एक दिन महाराज कर्दम जी की तपस्या पूरी हुई और अपने पास देवहूति को देखा तो बड़े प्रसन्न हुए देवहूति से बोले- कर्दम जी हम तुम्हारी सेवा से बड़े प्रसन्न है मांगो तुम्हें क्या चाहिए।
देवहूति ने कहा- महाराज! आप मेरे पति हैं और मैं आपकी अर्धांगिनी हूं जो आपका है वो मेरा है आपसे भला मैं क्या मांगू। पर ग्रहस्थ जीवन की सफलता संतान से है। इसलिए महाराज कम से कम एक संतान तो घर में होना ही चाहिए। कर्दम जी बोले देवी तुम चिंता मत करो। हाथ में कमंडल का जल लिया मन्त्र पड़ जैसे ही जल का छींटा मारा कर्दम जी के निकट ही एक विशाल विमान प्रगट हो गया। उस विमान का नाम था कामद
अर्थात कामना के अनुसार यह विमान भ्रमण करता था इस विमान के अंदर बगीचा, तालाब इत्यादि सारी सुख सुविधाएं थीं। बड़े-बड़े भवन भी हैं हजारों दास-दासियां कतारबद्ध खड़े हैं।
यह देखकर देवहूती तो आश्चर्य चकित रह गई, कि ऐसा विमान तो मैंने अपने पिताजी के घर पर भी नहीं देखा। परंतु विमान इतना सुंदर और शरीर इतना गंदा कैसे बैठूं? तो कर्दम जीने देवहूति के भावों को पढ़ लिया। बोले- देवी जाओ सबसे पहले तुम उस बिंदु सरोवर में स्नान करो। अब देवहूति जी ने जैसे ही गोता मारा देवहूति पुनः 16 वर्ष की कन्या के रूप में परिवर्तित हो गई। दासियों ने हल्दी चंदन केसर का उबटन लगाया और अप्सराओं जैसा दिव्य शरीर देवहूति का प्रकट कर दिया। महात्मा कर्दम जी भी तपोबल से एक नवयुवक का शरीर प्रगट कर लिया और फिर वर्षों वरस तक उस विमान में विचरण करते रहे। इस प्रकार कर्दम और देवहूति के यहाँ को 9 कन्याओं का जन्म हुआ।
यह कन्याएं कोई साधारण कन्याएं नहीं मैं तो कहता हूं कि ऐसी कन्या भगवान सबको दे। महात्मा करदम जी ने सोचा कि हमारा संकल्प तो था कि एक संतान हो तो ही हम बाबा बन जाएंगे पर यहां तो हमारे नौ संताने हो गई। चलो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अपना लंगोटा सोटा लोटा उठाया और चल दिए। तब देवहूति चरण पकड़ कर प्रार्थना करने लगीं, कि महाराज कहां जा रहे हो। कर्दम जी बोले-देवी! अब तो हम बाबा बनने चले, अब वन में जाकर तपस्या करेंगे। देवहूति ने कहा- महाराज! रोकूंगी नहीं, पर एक निवेदन अवश्य करूंगी।
बोले- वह क्या?
महाराज! आप तो जानते हैं कि बेटियां पराई होती हैं। विवाह होते ही अपने-अपने ससुराल चली जाएंगी। फिर मैं किसके सहारे रहूंगी। यदि पुत्र होता तो मुझे पुत्र का सहारा होता। इसलिए महाराज रुक जाइए।
तब कर्दम जी को याद आया ओ..हो देवी! तुमने खूब याद दिलाया। भगवान ने मुझे वचन दिया था कि तेरे यहां मैं बेटा बनकर आऊंगा। भगवान ने वचन दिया है तो वे अवश्य आएंगे। इसलिए अभी बाबा बनने का विचार कैंसिल।
अबकी बार जब देवहूति गर्भवती हुई, तो उनके यहां स्वयं नारायण पधारे और कालांतर में भगवान का अवतार कपिल देव जी के रुप में हुआ।
।।बोलो कपिल भगवान की जय।।
यह ब्लाॅग मैंने भागवत ज्ञान के लिए लिखना प्रारम्भ किया ताकि भागवत कथा का मूल ज्ञान हम सब जान सकें.. !
बुधवार, 27 दिसंबर 2017
कर्दम और देवहूति का विवाह 33
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