बुधवार, 27 दिसंबर 2017

संत की परिभाषा 35

भगवान कपिल कहते हैं- मां! इस संसार का सारा धन वैभव मिल कर भी तुम्हें सुखी नहीं बना सकता है। आप सबसे पहले अपने मन को बस में करो।

यह मन बस में कैसे होगा?
भगवान बोले- जब संतों का सत्संग करोगी।

तो संत की पहचान क्या है बेटा? किस संत का संग करें, कैसे पता चले कि कौन संत है और कौन असंत है?

तब भगवान यहां पर संत के लक्षण बताते हैं।
तितिक्षव: कारुणिका: सुहृदः सर्वदेहिनाम। आजातशत्रवः शान्ता: साधवः साधुभूषणा:।।

माताजी जो तितिक्षु हो, सहनशील हो, मान अपमान में तुल्य हो। किसी ने माला पहनाया तो खुश नहीं है। किसी ने अपमानित किया तो दुखी नहीं है, उन्हें संत कहते हैं।

संत के हृदय में करुणा इतनी होती है कि किसी के कष्ट को वह देख ही नहीं सकता।
           ।।संत हृदय नवनीत समाना।।
जैसे अग्नि में के ताप से घी पिघल जाता है। वैसे ही दूसरों के दु:ख की अग्नि को देख संत का हृदय पिघल जाता है। प्राणीमात्र मेरे सखा है। ऐसी भावना बन जाती है, संसार में किसी को वह अपना शत्रु नहीं मानता। प्रत्येक प्राणी में उसे ईश्वर नजर आता है। वह किसी से बैर नहीं करता। अब भोजन करते समय हमारे ही दांतों से हमारी जिह्वा कट गई। अब हम किसे डांटे, किसे मारे; क्योंकि दांत भी हमारा और जिह्वा भी हमारी।

इसी प्रकार जब संत को कोई कष्ट देता है तो संत कहता है, इसने मुझे कष्ट दिया। पर यह भी तो ईश्वर का अंश है, जो अंश मुझमें है ईश्वर का, वही अंश इसमें भी है। तो सब में ईश्वर का दर्शन करने वाला किसी से बैर कैसे कर सकता है।
सीय राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोर जुग पाणी।।
यही संत का लक्षण है। ऐसे संत का संग और सत्पुरुष के समागम से, मेरे पराक्रम का यथार्थ ज्ञान कराने वाली एवं हृदय और कानों को प्रिय लगने वाली जो कथाएं हैं, उनका श्रवण करो। इसी से मोक्ष मार्ग में श्रद्धा प्रेम और भक्ति का क्रमशः विकास होगा। फिर मेरी सृष्टि लीला आदि के चिंतन से प्राप्त हुई भक्ति के द्वारा चरण पादुका का कटी प्रवेश का, फिर ऊदर का, फिर वक्ष स्थल का, हृदय में श्रीवत्स के चिन्ह का, कंठ में कौस्तुभ मणि का, चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म का और अंत में मुख कमल पर दृष्टि को एकाग्र करें।

भगवान की विशाल मछली के समान नेत्र का, शुक के समान नासिका का, बिंबा फल के समान उनके अधरों का, मधुर मुस्कान लिए मुख कमल का ध्यान जिसने कर लिया। उसके जीवन में फिर शोक के आंसू कभी आते ही नहीं। वह आनंद के सागर में सदा निमग्न हो जाता है। बहुत सुंदर उपदेश दिया।

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